पाकिस्तानी सेना प्रमुख से लगाई तख्तापलट की गुहार
१५ जुलाई २०१६राजधानी इस्लामाबाद समेत लाहौर, कराची, रावलपिंडी जैसे कई पाकिस्तानी शहरों में अचानक एक रात में पोस्टर चिपका दिए गए. इसमें खास बात ये है कि पोस्टर में कोई आम इश्तेहार नहीं बल्कि पाकिस्तान की सरकार के खिलाफ कू करने की अपील है. पाकिस्तान में बेहद शक्तिशाली मानी जाने वाली सेना के प्रमुख राहील शरीफ की बड़ी तस्वीर और उनसे यह गुजारिश करने वाले पोस्टर खूब चर्चा में है. पाकिस्तान बनने के समय से अब तक की अवधि में करीब आधे समय तो देश में सेना ने ही शासन किया है.
तमाम शहरों के सेना की छावनी वाले इलाकों में खास तौर पर चिपकाए गए पोस्टरों में यह अपील "मूव ऑन पाकिस्तान" नाम की एक गुमनाम सी राजनीतिक पार्टी की ओर से की गई है. इस पार्टी का गठन 2013 में हुआ था. पोस्टर में लिखा है, "जाने की बातें अब पुरानी हुईं, खुदा के लिए अब आ ही जाएं." इसमें जाने की बात का इशारा सेना प्रमुख जनरल शरीफ की ओर है, जो इसी साल खत्म हो रहे अपने कार्यकाल के बाद पद छोड़ने का ऐलान कर चुके हैं.
मूव ऑन पाकिस्तान पार्टी के मुख्य आयोजक अली हाशमी ने समाचार एजेंसी एएफपी से बातचीत में कहा, "इस भ्रष्ट्र सरकार से तो तानाशाही कहीं बेहतर है." सेना प्रमुख को सत्ता में बने रहने का तर्क देते हाशमी कहते हैं, "जिस तरह जनरल राहील शरीफ आतंकवाद और भ्रष्टाचार से निपटे हैं, इसकी कोई गारंटी नहीं कि अगला आदमी भी उनके जितना प्रभावशाली होगा."
खबरें हैं कि नवंबर में तीन साल का कार्यकाल पूरा करने वाले लोकप्रिय जनरल शरीफ की जगह पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ नया प्रमुख लाने की तैयारी में हैं. कई पाकिस्तानी जनरल शरीफ को देश की रक्षा स्थिति सुधारने का श्रेय देते हैं. कई समर्थक उनके नाम पर ट्विटर पर #ThankYouRaheelSharif और #PakLovesGenRaheel जैसे हैशटैग चलाते रहते हैं. इसके उलट, प्रधानंत्री नवाज शरीफ और उनकी सरकार पर लगातार भष्ट्र और निकम्मे होने के आरोप लगते रहते हैं.
तमाम लोकप्रियता के बावजूद आर्मी चीफ जनरल शरीफ ने इस साल जनवरी में कार्यकाल खत्म होने पर पद से हट जाने की घोषणा कर दी. लोकतंत्रिक व्यवस्था के प्रति सम्मान दिखाने के कारण और कई लोग उनके प्रशंसक बन गए. उनके पहले आर्मी चीफ रहे तीन जनरलों ने बिल्कुल इसके उलट कदम उठाए थे.
पोस्टरों पर सरकार की ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली है. सेना ने भी इसके पीछे अपना हाथ ना होने की बात कही. पाकिस्तान के कई राजनीतिक विश्लेषक नहीं मानते कि वर्तमान राजनैतिक ढांचे को फिलहाल कोई खतरा है. पोस्टरों को गंभीरता से ना लेते हुए वे सरकार का तख्तापलट करवाने के किसी संगठित प्रयास की तैयारी को खारिज कर रहे हैं.
69 सालों के पाकिस्तान के इतिहास में आधे से भी अधिक वक्त देश सेना के शासन में रहा है. लोकतांत्रिक रूस से जनता की चुनी हुई सरकार के होते हुए भी देश की रक्षा और विदेश नीति पर सेना का नियंत्रण रहा है. आज पाकिस्तान को अपने ही देश में पैदा हुए आतंकियों पर काबू पाने में काफी मशक्कत करनी पड़ रही है. इसके अलावा पड़ोसी देशों भारत और अफगानिस्तान के साथ संबंधों को संतुलित करके चलना जनरल शरीफ की जगह आने वाले अगले आर्मी चीफ के सामने बड़ी चुनौतियां होंगी.