क्या सारे मैसेज पढ़ना चाहती है सरकार?
२२ सितम्बर २०१५आपको अपने मोबाइल या किसी और डिवाइस के जरिए भेजे और मिले सभी इन्क्रिप्टेड मैसेज को 90 दिनों तक ना मिटाना अनिवार्य करने का प्रस्ताव था. सरकार के न्यू इनक्रिप्शन पॉलिसी के एक ड्राफ्ट में कहा गया था कि आप 90 दिन पुराने सारे मैसेज प्लेन टेक्स्ट के रूप में सुरक्षित रखें और सुरक्षा एजेंसियों के कहने पर उन्हें सौंप दें. ऐसे संदेश संभाल के ना रखने या मांगे जाने पर उसे पेश करने में असफल रहने पर जेल की सजा जैसी कानूनी कार्रवाई का प्रस्ताव था.
वॉट्सऐप, गूगल हैंगआउट, एप्पल, ब्लैकबेरी मैसेजिंग, अमेजन, फ्लिपकार्ट, स्नैपचैट और ऑनलाइन बैंकिंग गेटवे चलाने वाली कंपनियां किसी न किसी तरह के इन्क्रिप्शन का इस्तेमाल करती हैं. इनमें से अधिकतर के सर्वर भारत में नहीं हैं. अधिकतर कंपनियां भारत में रजिस्टर्ड तक नहीं हैं. लेकिन इनका बड़ा यूज़र बेस भारत में है, जो ड्राफ्ट पॉलिसी के मंजूर हो जाने पर नए नियमों के दायरे में आ सकते हैं.
सरकार के इलेक्ट्रॉनिक्स एवं आईटी विभाग द्वारा बनाई गई इस नई ड्राफ्ट पॉलिसी पर 16 अक्टूबर तक पब्लिक से राय मांगी गई है. लेकिन ड्राफ्ट के पेश होते ही सोशल मीडिया पर लोगों ने सरकार को निशाने पर लेना शुरू कर दिया. इन्क्रिप्टेड मैसेज का इस्तेमाल पहले मिलिट्री या डिप्लोमैटिक कम्युनिकेशन में होता था. लेकिन कई इंटरनेट बेस्ड मैसेजिंग सर्विसेस देने वाली कंपनियां अब आम यूजर्स के लिए इन्क्रिप्शन का इस्तेमाल करने लगी हैं.
इस प्रस्तावित नीति के दायरे में आम नागरिकों समेत, सभी सरकारी विभागों और शिक्षण संस्थानों के सभी आधिकारिक या व्यक्तिगत संदेश भी आते हैं. इस नई इनक्रिप्शन पॉलिसी को आईटी ऐक्ट 2000 के सेक्शन 84 ए में जोड़ा जाना है. साइबर इनीशिएटिव के प्रमुख अरुन सुकुमार नागरिकों की प्राइवेसी के अधिकार पर चिंता जताते हुए कहते हैं कि सरकार नई तकनीक को नियंत्रित करने के लिए पुरानी मानसिकता का पालन कर रही है.
'सेव द इंटरनेट' फोरम के वॉलंटियर और मीडियानामा के संस्थापक निखिल पाहवा कहते हैं कि इसमें सबसे बड़ी समस्या आम यूजर को सारे इनक्रिप्टेड डाटा की प्लेन टेक्स्ट कॉपी रखने के लिए जिम्मेदार ठहराने में है, जबकि देश के 99.99 फीसदी यूजरों को पता ही नहीं कि प्लेन टेक्स्ट फार्मेट होता क्या है. इससे हर नागरिक को संविधान में प्रदत्त निजता के अधिकार पर भी सवाल खड़े होंगे. इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर एसोसिएशन ऑफ इंडिया (ISPAI) के अध्यक्ष राजेश छारिया का भी मानना है कि कि उपभोक्ता पर इसकी जिम्मेदारी डालना स्वीकार्य नहीं होना चाहिए.