क्या मलेशिया को बदल रहा है सऊदी अरब?
१ जनवरी २०१८हाल के घटनाक्रमों ने इस नजदीकी पर सवाल खड़े किए हैं. मानवाधिकार समूहों की मानें तो मलेशिया में नास्तिकों और समलैंगिक समुदाय को लेकर बैर बढ़ रहा है. इस्लामी नेताओं के विरोध के चलते मलेशिया में दो बियर फेस्टिवल रद्द कर दिए गए. साथ ही एक कट्टरपंथी उपदेशक जो भारत में नफरत फैलाने के आरोपों को झेल रहा है, उसे भी मलेशिया में आधिकारिक संरक्षण दिया गया है.
मलेशिया में सरकार ने ऐसे संसदीय बिल का समर्थन किया है जो मलेशिया के कलांतन राज्य में मुस्लिमों पर लागू किए जाने वाले शरिया कानूनों का दायरा बढ़ाता हैं. यूं तो मलेशियाई राजशाही किसी सार्वजनिक मसले पर दखल नहीं देती लेकिन जब धार्मिक अधिकारियों ने केवल मुसलमानों के लिए चलाए जाने वाली लॉन्ड्री की दुकान का समर्थन किया, तो राजशाही ने भी धार्मिक सहिष्णुता की मांग की.
मलय संस्कृति पर वार?
लेकिन मलेशिया के पूर्व प्रधानमंत्री महाथिर मोहम्मद की बेटी मरीना महाथिर सार्वजनिक रूप से मलेशियाई सरकार पर सऊदी अरब से प्रभावित होने का आरोप लगाती हैं. साथ ही सरकार के इन कदमों की निंदा भी करती हैं. मरीना देश में एक नागरिक अधिकार समूह की प्रमुख हैं. उन्होंने समाचार एजेंसी रॉयटर्स से कहा, "देश में इस्लाम का प्रभाव बढ़ रहा है, हमारी पारंपरिक मलय संस्कृति की कीमत पर इस्लाम का प्रचार-प्रसार किया जा रहा है."
मरीना के पिता महाथिर मोहम्मद की उम्र 93 साल है और वे प्रमुख विपक्षी गठबंधन के प्रमुख हैं. सऊदी अरब के कट्टरपंथी वहाबी समुदाय की नीतियों का प्रभाव मलेशिया और पड़ोसी देश इंडोनेशिया पर भी नजर आता रहा है. लेकिन पिछले एक दशक के दौरान खासकर साल 2009 में नजीब रजाक के प्रधानमंत्री पद संभालने के बाद से यह प्रभाव काफी बढ़ा है. नजीब सरकार ने सऊदी अरब के साथ रिश्तों को मजबूत करने पर काफी जोर दिया है.
विदेशी निवेशकों की चिंता
दोनों पक्षों के बीच संबंध उस वक्त उजागर हुए जब साल 2013 के दौरान नजीब के खाते में 70 करोड़ डॉलर होने की बात सामने आई. नजीब ने कहा कि यह उन्हें सऊदी अरब के शाही परिवार से डोनेशन के रूप में प्राप्त हुए थे. आरोपों का खंडन करते हुए नजीब ने यह भी कहा कि उन्होंने कहीं पैसा निवेश किया था. हालांकि मलेशिया के एटॉर्नी जनरल ने किसी गलत काम की बात से इनकार किया. मलेशिया में इस्लाम का बतौर ब्रांड के रूप में हो रहा उभार यहां के मध्यम आय वर्ग और उभरते बाजारों की चिंता बढ़ा रहा है. यहां तक कि देश की गैर-मुस्लिम जनसंख्या मसलन चीनी लोग, जिनकी यहां की जनसंख्या में एक चौथाई की हिस्सेदारी है, खासे चिंतित नजर आते हैं. गैर मुस्लिम समुदाय यहां के वाणिज्य क्षेत्र में जबरदस्त धमक रखता है.
साथ ही विदेशी निवेशकों के लिए भी अब यह मसला चिंता का कारण बन रहा है. मलेशिया के स्थानीय बॉन्ड बाजार में विदेशी निवेशकों की आधी से भी अधिक हिस्सेदारी है. निवेशकों ने साल 2017 के शुरुआती 9 महीनों में तकरीबन 8.95 अरब डॉलर का निवेश किया था. हालांकि मलेशियाई सरकार इस्लामी रूढ़िवाद के वहाबी तौर तरीकों के प्रोत्साहन से इनकार करती है. लेकिन हाल के दिनों में उठे धार्मिक विवादों पर प्रधानमंत्री नजीब रजाक की खामोशी भी तमाम सवाल उठाती है. आलोचक इस मुद्दे पर प्रधानमंत्री की आलोचना करते हैं. साल 2018 के मध्य में देश में आम चुनाव होने हैं.
तालीम पर सवाल
बीते सालों में मलेशिया में उग्रवाद और आतंकवाद बढ़ा है. साल 2013 से 2016 के बीच तकरीबन 250 लोगों को इस्लामिक स्टेट के साथ संबंधों के चलते गिरफ्तार किया गया. इनमें से कई इस्लामिक कट्टरपंथ के समर्थक हैं. सऊदी अरब के राजा के मलेशिया दौरे के बाद इस साल मलेशिया ने "किंग सलमान सेंटर फॉर इंटरनेशनल पीस" बनाने की घोषणा की. वहीं सऊदी अरब भी लंबे समय से मलेशिया में मस्जिदों और स्कूलों को पैसा देता रहा है, साथ ही मलेशियाई छात्रों को सऊदी अरब में पढ़ने के लिए स्कॉलरशिप भी दी जाती है.
मॉडरेट थिंक टैंक, इस्लामिक रेनेसांस फ्रंट के निदेशक और चैयरमेन फारुक मूसा कहते हैं कि मलेशियाई छात्रों को जो तालीम दी जा रही है वह सहिष्णु नहीं है. छात्रों को सिखाया जा रहा है कि वे धर्म पर विश्वास न करने वाले (अल-कुफर) से दोस्ती न करें, फिर चाहे वह उनका निकटतम रिश्तेदार ही क्यों न हो. उन्होंने कहा कि सोशल मीडिया का आम जीवन में बढ़ता दखल इस तरह के प्रभावों को और भी बढ़ा रहा है. लेकिन सरकार इन आरोपों को खारिज करती है. मलेशिया सरकार के मंत्री अब्दुल अजीज कहते हैं, "सरकार वहाबी समुदाय की नीतियों को प्रोत्साहन नहीं दे रही है, बल्कि सरकार उन सिद्धांतों को प्रोत्साहन दे रही है जो मलेशिया के बहु-सांस्कृतिक समाज में संतुलन रख सकें."
एए/आईबी (रॉयटर्स)