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क्या बदलेगी माजुली की किस्मत

प्रभाकर१ अप्रैल २०१६

असम में ब्रह्मपुत्र नदी के बीच स्थित दुनिया का सबसे बड़ा नदी द्वीप माजुली एक बार फिर सुर्खियों में है. इसकी वजह यह है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने असम दौरे में अपनी पहली चुनावी रैली माजुली में ही की.

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Indien Flussinsel Majuli
तस्वीर: DW/B. Das

विधानसभा चुनावों में केंद्रीय मंत्री सर्बानंद सोनोवाल इस सीट से मैदान में हैं. भाजपा ने उनको अपना मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार बनाया है. सोनोवाल के मैदान में होने और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व के चुनाव प्रचार के लिए यहां पहुंचने से माजुली फिलहाल देश की सबसे प्रतिष्ठित सीट बन गई है. इससे स्थानीय लोगों में एक बार फिर उम्मीद की एक नई किरण पैदा हो रही है. केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने बीते महीने माजुली को मुख्यभूमि से जोड़ने के लिए ब्रह्मपुत्र पर एक पुल का शिलान्यास किया था. लेकिन राज्य में सत्तारुढ़ कांग्रेस ने इसे चुनावी स्टंट करार दिया. मुख्यमंत्री तरुण गोगोई उस शिलान्यास समारोह में भी नहीं गए थे.

Indien Flussinsel Majuli
तस्वीर: DW/B. Das

वजूद की लड़ाई

माजुली कई दशकों से अपने वजूद की लड़ाई लड़ रहा है. हर साल आने वाली बाढ़ इस द्वीप का बड़ा हिस्सा अपने साथ बहा ले जाती है. लेकिन एक के बाद एक सत्ता में आने वाली राजनीतिक पार्टियों ने समृध्द सांस्कृतिक विरासत वाले इस द्वीप को बचाने की दिशा में कभी कोई ठोस पहल नहीं की. पहले इसका क्षेत्रफल 1278 वर्ग किलोमीटर था. लेकिन साल दर साल आने वाली बाढ़ व भूमिकटाव के चलते अब यह घटकर 520 वर्ग किलोमीटर रह गया है. द्वीप के 23 गांवों में कोई 1.68 लाख लोग रहते हैं.

Indien Flussinsel Majuli
तस्वीर: DW/B. Das

विश्व धरोहरों की सूची में इसे शामिल कराने के तमाम प्रयास अब तक बेनतीजा रहे हैं. यूनेस्को की बैठकों के दौरान राज्य सरकार या तो ठीक से माजुली की पैरवी नहीं करती या फिर आधी-अधूरी जानकारी मुहैया कराती है. नतीजतन यह कोशिश परवान नहीं चढ़ सकी है. यह द्वीप अपने वैष्णव सत्रों के अलावा रास उत्सव, टेराकोटा और नदी पर्यटन के लिए मशहूर है. माजुली को मिनी असम और सत्रों की धरती भी कहा जाता है. असम में फैले लगभग 600 सत्रों में 65 माजुली में ही थे. राज्य में वैष्णव पूजास्थलों को सत्र कहा जाता है.

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तस्वीर: DW/B. Das

कठिन है राह

माजुली तक पहुंचना आसान नहीं है. जिला मुख्यालय जोरहाट से 13 किमी दूर निमताघाट से दिन में पांच बार माजुली के लिए बड़ी नावें चलती हैं. इस सफर में एक से डेढ़ घंटे लगते हैं. दरअसल बीजेपी सरकार ने इस द्वीप को मुख्य भूमि से जोड़ने के लिए ब्रिज बनाने का फैसला सोनोवाल की उम्मीदवारी तय होने के बाद ही किया. बाढ़ के दौरान इस द्वीप का संपर्क देश के बाकी हिस्सों से कटा रहता है. माजुली में आधी से ज्यादा आबादी मिसंग, देउरी व सोनोवाल काछारी जनजातियों की है. द्वीप के 1.1. लाख वोटरों में से लगभग 40 फीसदी सिर्फ मिसिंग तबके ही हैं. स्थानीय राजनीति पर भी इसी तबके का दबदबा रहा है.

Indien Flussinsel Majuli
तस्वीर: DW/B. Das

कांग्रेस के पूर्व मंत्री और इस सीट पर पार्टी के उम्मीदवार राजीव लोचन पेगू कहते हैं, सोनोवाल स्थानीय नहीं है. इसलिए वोटरों को लुभाने के लिए वह ब्रिज बनाने और माजुली को जिले का दर्जा देने के वादे कर रहे हैं. लेकिन सोनोवाल के लिए माजुली कोई नई जगह नहीं है. यह उनके संसदीय क्षेत्र लखीमपुर का ही हिस्सा है. सोनोवाल कहते हैं, "यहां प्राकृतिक सौंदर्य, ताजी हवा और धनी सांस्कृतिक विरासत है. मैं इसे पर्यटन के वैश्विक ठिकाने के तौर पर विकसित करना चाहता हूं."

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तस्वीर: DW/B. Das

हर साल आने वाली बाढ़ व भूमिकटाव से हजारों लोग बेघर हो जाते हैं. उनकी आजीविका के एकमात्र साधन खेत भी साल दर साल ब्रह्मपुत्र के पेट में समा रहे हैं. कानाईजान गांव के एक किसान गांधीराम पाएंग कहते हैं, "हमारा वोट तो उसी को मिलेगा जो हमें सम्मानजनक पुनर्वास का भरोसा देगा." एक स्कूल शिक्षक मंजीत पेगू कहते हैं, "हमें बाढ़ आने पर समुचित राहत नहीं मिलती. इस द्वीप पर समुचित सुविधाओं का भारी अभाव है." अब इन विधानसभा चुनावों ने माजुली के लोगों के मन में एक नई आस जगा दी है. लेकिन क्या सोनोवाल की जीत से माजुली की किस्मत भी बदलेगी, इस सवाल का जवाब तो वक्त ही देगा.

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तस्वीर: DW/B. Das