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समाज

क्या अकेले नहीं जा सकते स्विट्जरलैंड

अपूर्वा अग्रवाल
१५ जून २०१७

स्विट्जरलैंड विश्व के खूबसूरत देशों में से एक है. यहां हर साल दुनिया भर के हजारो-लाखों सैलानी घूमने आते हैं और भारतीयों के बीच भी यह बहुत पॉपुलर है लेकिन भारतीय इसे एक अलग ही चश्मे से देखते हैं. लेकिन क्यों...

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Schweiz | Schynige Platte Bahn
तस्वीर: picture alliance/Prisma/C. Sonderegger

स्विट्जरलैंड, ये शब्द मेरे जहन में कब आया ये तो ठीक-ठीक याद नहीं आता लेकिन फिल्मों ने बचपन से ही इसकी तस्वीर नजरों के सामने बनाना शुरू कर दी थी. तस्वीरों में रंग इतने गहरे थे कि मुझे उनकी आवाज भी आने लगी और जब-जब कभी स्विस या स्विट्जरलैंड शब्द सुनने में आता तो मेरा मन अपने आप कह देता ´वाह, कितना हसीन.' हालांकि सिर्फ तस्वीरें नहीं थी वो राहुल भी था जिसे अपनी सिमरन से यहीं मोहब्बत हुई... उसके बाद तो न जाने कितने प्रेम करने वाले डॉन बस यस बॉस कहते हुए सिर हिलाते हुए स्विस वादियों में चले आये और बना दिया इसे मोहब्बत की नगरी...स्विस नाम पर मोहब्बत की जो स्टैम्प भारत में लगी है वह इतनी गहरी है कि जिस भी भारतीय को मैंने बताया कि मैं स्विट्जरलैंड जा रही हूं उसने सलाह-वलाह देने से पहले यही कहा... अकेले... अकेले क्या करोगी जाकर... या फिर, वहां तो लोग शादी के बाद जाते हैं. हालांकि ये ख्याल मेरे जहन में कितने भीतर तक बैठा था ये मुझे नहीं पता लेकिन स्विट्जरलैंड कभी मेरी घूमने की लिस्ट में नहीं था... वो तो यूरोविंग्स की ब्लाइंड बुकिंग ने स्विस यात्रा मेरे लिये तय की थी इसलिये वहां जाने का मौका मिल गया.

स्विट्जरलैंड से आने के बाद सोचती रही कि पिछले तीन महीने से यूरोप घूम रही हूं लेकिन कभी यहां जाने का मन क्यों नहीं हुआ था... बर्न घूमते हुए मैं सोचती रही कि क्यों मैं भी यहां अकेले नहीं आना चाहती थी... इतनी स्टीरियोटाइपिंग क्यों थी मेरे दिमाग में.

Schweiz | Genf Parc des Bastions
तस्वीर: picture-allianc/dpa/T. Eisenhuth

खैर इसका जवाब मुझे मिला बाजेल से इंटरलाकेन और फिर जेनेवा जाते हुए... झील के किनारे बसे इन शहरों की खूबसूरती इनके रास्तों में है जहां सरसों के पीले फूल हरे धरातल पर एक गलीचे से नजर आते हैं. मिट्टी का असली रंग बचपन में ही नहीं जाना होता और पहली बार आंखें यहीं खोली होती तो मेरे लिये मिट्टी का रंग काला नहीं हरा ही होता. रास्ते के नजारे ऐसे, जिसे देखकर लगता कि पुराने कैलेंडर देख रहे हैं जिनमें प्रकृति की बेहद ही सुंदर तस्वीरें होती थी. यहां मैं कैमरे को आड़े-तिरछे कैसे भी क्लिक करती तस्वीरें ऐसी आती जिसे देखकर मुझे धोखा हो जाता कि मैं क्या इतनी कमाल फोटोग्राफर हूं.

Schweiz | Bern Übersicht
तस्वीर: picture alliance/prisma/C. Sonderegger

मैंने अपनी यात्रा बाजेल से शुरू की थी. इसके बाद इंटरलाकेन, बर्न होते हुये जेनेवा पहुंची थी. चार दिन में करीब 40 बार मैंने यहां अकेले आने के निर्णय को ठीक महसूस किया. क्योंकि यहां महज खूबसूरत नजारे नहीं, बल्कि अनूठा अनुभव भी है. अनुभव भाषाई मिश्रण का, अंतरराष्ट्रीयता का. मेरे हिसाब से सोचूं तो स्विट्जरलैंड के पास आपका डर खत्म करने का तरीका भी है और सपने भुनाने का सलीका भी. दरअसल इस देश को बॉलीवुड ने सपनों के कोम्बो पैकेज के रूप में बेचा है और मानना पड़ेगा कि यहां की जमीन ने इसे भुनाया भी है. यही कारण है कि अधिकतर भारतीय जोड़े यहां हनीमून पर या गाहे-बेगाहे अपनी मोहब्बत जताने आते हैं.

Schweiz | Allmendhubel bei Mürren
तस्वीर: picture alliance/Prisma/C. Sonderegger

दरअसल ये देश सपने बेचता है. तभी तो फिल्मों में दिखने वाला हसीन स्विट्जरलैंड आज लोगों की ख्वाहिश और तमन्ना बन गया है. यहां सपना नजर आता है सुकून का, दिन भर की भाग दौड़ के बाद आंख बंद कर जिस सुकून की तमन्ना एक आम इंसान करता है, यहां उसे वह मिलता है. कौन नहीं चाहता की घर दरिया किनारे हो, हरियाली ही हरियाली हो, आर्थिक स्थिति में गर्माहट हो और हवा में सरसराहट... स्वास्थ्य चंगा हो और आसपास न कोई दंगा हो.

लेकिन एक आम आदमी रोजाना की भाग-दौड़ में इतना थक जाता है कि उसे कभी-कभी इन सपनों के लिए भी फुर्सत नहीं मिलती. ऐसे में जब सपनों के लिए भी लोगों को अपनी मोहब्बत का साथ मिल जाता है तो जिदंगी और हसीन लगने लगती है. रास्ते लंबे लेकिन हसीन हो जाते हैं और सपने भी मैं से हम हो जाते हैं.

Schweiz | Genf Übersicht
तस्वीर: picture alliance/Arco Images/Photopress

यहां के होस्टल मालिक बताते हैं कि यूरोप एक सोलो ट्रैवलिंग डेस्टिनेशन के रूप में भारत में खूब पॉपुलर हुआ है लेकिन स्विट्जरलैंड भारतीय सोलो ट्रैवलर्स की लिस्ट में अब तक जगह नहीं बना पाया है. यहां लोग अपने परिवार के साथ ही आते हैं या अधिकतर हनीमून कपल्स यहां आते हैं क्योंकि बॉलीवुड ने उन्हें यही दिखाया है. यहां पर बर्फ से ढंके पहाड़ हैं, शिमला और मनाली की तरह, तो यहां के फार्म में घूमती तंदरुस्त गायें दिल्ली की राजनीतिक गलियारों की याद दिलाने के लिए काफी हैं. मेरा मकसद स्विट्जरलैंड की वादियों को कम आंकना नहीं है लेकिन यह जताना जरूर है कि बॉलीवुड के बाहर भी एक स्विट्जरलैंड है, जिसे अकेले महसूस किया जा सकता है... जहां घूमा जा सकता है और इसका बखूबी आनंद उठाया जा सकता है.