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कैसे रखे शहर साफ़

१२ मार्च २०१३

पिछले हफ्ते की फेसबुक प्रतियोगिता के विजेता का चयन कर दिया गया है. विषय था कैसे रखे शहर साफ़. और इस सप्ताह के विजेता हैं राहुल फ़राज़

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तस्वीर: Samih Amri

शहर कैसे साफ रखा जा सकता है, हमें इस विषय पर आपसे काफी सारे सुझाव मिले हैं. इनके लिए बहुत बहुत धन्यवाद. लेकिन इनाम हम केवल एक ही विजेता को दे सकते हैं और इस हफ्ते का इनाम जाता है राहुल फराज को, जिन्होंने कचरा साफ करने के लिए कुछ ठोस कदम पेश किए. हमने आपसे आए कुछ सुझाव यहां एकत्रित किए है. आइए जाने किस ने क्या क्या लिखा...

1. हम अपने घरों का कचरा आंगन में एक बड़े से डस्‍टबीन में रोज जमा करें और घर के सभी सदस्‍यों को डस्‍टबीन का उपयोग करने को बाध्‍य करें. किसी भी आयोजन के उपरांत ऐसी स्थिति पैदा ना होने दें कि आयोजन का कचरा वहीं पड़ा रहे. पॉलीथिन का प्रयोग पूर्णतः वर्जित करें. उसकी जगह घर से स्‍वयं एक झोला लेकर निकलें, क्‍योंकि जब तक ग्राहक पोलीथिन की भीख मांगता रहेगा तब तक दुकानदार को भी ग्राहक बनाये रखने के लिये उसे पोलीथीन देना पड़ेगा. जब हम इस प्रकार से कचरा एकत्र करने लगेंगे (डस्‍टबीन में) तो नगर निगम को भी उस कचरे को उठाकर ले जाने में सुविधा होगी, सफाई के लिये उन्‍हें ज्‍यादा वक्‍त नहीं लगेगा और कॉलोनी वासी नगर निगम पर भी दबाव बना सकेंगे कि उसके कर्मचारी पहले से इकट्ठा कॉलोनी का कचरा ले जाएं और सही जगह पर नष्‍ट करें. -राहुल फराज

Typisch Deutsch Mülltrennung
तस्वीर: Fotolia

2. सबसे पहले हमें खुद को बदलना होगा, हमें स्वयं जागरुक होना होगा और अपने बच्चों, दोस्तों एवं पड़ोसियों को भी जागरुक करना होगा, सरकार पर बिना निर्भर हुए हमें एक दूसरे के सहयोग से घर के आसपास, गली या मोहल्ले में जगह जगह छोटे डस्टबिन भी लगाने होंगे. साथ ही आबादी से बाहर हमें मिलकर एक ऐसी जगह निश्चित करनी होगी जहां नियमानुसार सप्ताह में एक या दो बार डस्टबिन का सारा कचरा इकट्ठा किया जा सके, घरों में पॉलीथीन का इस्तेमाल भी कम करना होगा और एक दूसरे पर साफ-सफाई को लेकर नजर भी रखनी होगी! - अलीजा खान

3. शहर और गांव की सबसे महत्वपूर्ण समस्या कचरा है चाहे वह किसी भी प्रकार का क्यों न हो. इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि लोगों में जागरूकता की कमी और स्थानीय सहयोग का आभाव. कचरा एकत्रित करने का निश्चित स्थान निर्धारित होना चाहिए. कचरे को शहर और बस्ती से दूर कही एकत्रित किया जाए. यदि वह रिसाइकल हो सकने वाला कचरा हो तो उन्हें अलग से एकत्रित किया जाए जिससे उसे पुनर्निर्मित करके फिर से उपयोग में लाया जा सकें. गली मुहल्ले में स्थान स्थान पर डस्टबिन का उपयोग किया जाए. आसपास के लोगों को जागरूक करें. कूड़े को बाहर खुले में न फेंका जाए तथा नालियों की नियमित साफ सफाई की जाए. आसपास का वातावरण हरा भरा रहे जिससे शुद्ध वायु मिल सके. प्लास्टिक का प्रयोग न किया जाए. कचरे से कुछ रासायनिक खाद भी बनायीं जाने लगी है जिसका उपयोग किसान अपने खेतो में फसल उगाने में कर सकता है. गांवों में प्रायः निकलने वाला कचरे का सीधे जैविक खाद के रूप में उपयोग हो सकता है जिससे आसपास साफ सफाई भी रहेगी और कचरे का भी उपयोग हो जायेगा. इस प्रकार हमारा गांव, शहर, मुहल्ला साफ सुथरा बना रहेगा. -कुलदीप कुमार मिश्रा

4. शहरो में जो कचरा होता है उसे वर्गीकृत करें तो हम पाते हैं कि प्लास्टिक, कांच, धातुएं, कागज आदि ऐसा कचरा होता है जिसे रिसाइकिल किया जाना चाहिए. शेष बहुत सा कचरा बायोमास होता है जिसे सड़ाकर या अन्य विधियों से ईंधन के रूप में प्रयुक्त किया जाना चाहिए. ऐसे कचरे से बिजली भी बनाई जा सकती है. किस शहर में किस तरह का कितना कचरा उत्पन्न हो रहा है, इसके अध्ययन व तदानुसार योजनाएं बनाने की जरूरत है. नागरिको को घरो में ही अलग अलग तरह के कचरे अलग अलग संग्रहित करने हेतु अभियान चलाकर प्रेरणा व आर्थिक प्रोत्साहन भी दिया जाना उचित होगा. व्यक्तिगत स्तर पर बहुत बड़े प्रोजेक्ट भले ही नहीं लिये जा सकते पर सहज ही घर के आहाते में एक गड्ढ़े में बायोमास कचरा डाला जा सकता है, जिससे हमारे गार्डन के लिये खाद हम स्वयं बना सकते हैं. ऐसा कचरा जो रिसाइकिल हो सकता है उसे अलग से एक डब्बे में एकत्रित करके प्रति माह कबाड़ी को दिया जा सकता है. हमारे घर में हम यही करते हैं.- विवेक रंजन श्रीवास्तव


5. गांव की सफाई के लिए एक युवा टोली बनाकर सम्पर्क स्थल पर प्रति सप्ताह अपने अपने संसाधनो के साथ एकत्र होंगे. सफाई के लिए ध्यान देने वाली जगह होंगी. जल निकास की अवरुद्ध नालियां, संकरी गलियों में जलभराव का निष्पादन, जल के स्रोत- नल, कुआं, तालाब, पोखर तथा जानवरों के बाड़े. प्राप्त कचरे का उचित निस्तारण - लोहा, प्लास्टिक, पेपर, कबाडी को बेचकर छिडकने के लिए चूना लाना तथा कचरों को जलाने के बजाए गड्ढे में डाल देना. खुले में शौच को मना करना और जिनके यहां शौचालय नहीं है उनके यहां पूर्ण अनुदानित शौचालय का निर्माण करवाना. - अनिल कुमार द्विवेदी, अमेठी, उ॰प्र॰

6. सड़क पर फैली गंदगी को देखकर नाक मुंह सिकोड़ने के बजाय साफ सफाई को लेकर सबसे पहले हमें स्वयं और अपने बच्चों को जागरुक करना होगा, अपने मित्रों एवं पड़ोसियों को भी यह समझाना होगा कि जिस तरह गंदगी से हमारा घर अच्छा नहीं लगता उसी तरह रोड पर फैला कचड़ा भी हमारे समाज को अशोभनीय बना देता है. उसके बाद हमें मिलकर एक निश्चित जगह पर कचरा डालने का नियम बनाना होगा. साथ ही अपने घर की तरह समाज को साफ सुथरा रखने का संकल्प भी लेना होगा, जाहिर है जब हम बदलेंगे युग बदलेगा, हम सुधरेंगे युग सुधरेगा! - आबिद अली मंसूरी,बरेली, उत्तर प्रदेश

7. बगैर सरकारी सहायता के भी हम मिल जुल कर आपसी सहयोग के जरिए अपने शहर को साफ सुथरा रख सकते हैं. बस आवश्यकता है तो थोड़े से प्रयास और सजकता की. मेरे विचार से हमें अपने शहरों में 50-50 घरों का मकान नम्बरों के हिसाब से ग्रुप बनाना चाहिए और फिर प्रत्येक ग्रुप में एक साफ सफाई समिति बने, जिसमें 20 सदस्य हों. मोहल्ले के 10 एक्टिव और सोशल सीनियर सिटिजन का चुनाव किया जाए जो सभी को कूड़ेदान में कूड़ा फेंकने के लिए प्रोत्साहित करेगी और दूसरा ग्रुप मोहल्ले में बिखरे इधर-उधर के कूड़े को शिकायतें मिलने पर स्वयं के प्रयासों से उन्हें उठवाएगा. इस कार्य हेतु समिति एक न्यूनतम चंदा भी निर्धारित कर वसूल कर सकती है.- नलिनी अस्थाना, इलाहबाद


8. हर नागरिक का यह कर्त्तव्य है कि अपने गांव, मोहल्ले और शहर को साफ़ सुथरा रखे, लेकिन अफसोस कि वे अपने घर को तो साफ रख लेते हैं मगर बाहर की सफाई पर उनका ध्यान बिलकुल ही नहीं जाता. हमने देखा है गलियों, सड़कों और चौराहों पर कूड़े करकट का एक अम्बार सा लगा रहता है और वह कई कई दिनों तक इस उम्मीद पर पड़ा रहता है कि नगर पालिका के कर्मचारी आएंगे और इसे साफ करेंगे. हम यह बिल्कुल नही सोचते कि अपने घर के सामने कुडों का अम्बार लगाने से हमारा ही नुकसान है. -फैज़ान अहमद अंसारी, आजमगढ़, उत्तर प्रदेश

9. इसके लिए हमें सरकार पर निर्भर ना होकर खुद को जागरूक और समाज को जागरूक बनना होगा, हम लोग आम तौर पर अपने घर का कचरा कूड़ा घर के बाहर खुले में फेक देते है, अगर डस्ट बिन है तो भी. हमें अपने आस पास के क्षेत्र को अपना घर समझकर साफ करना होगा, कचरा को एक निश्चित स्थान पर फेकना चाहिए, बच्चो को भी ये आदत डलवानी चाहिए. -ऋषि शुक्ला

संकलनः विनोद चड्ढा

संपादनः मानसी गोपालकृष्णन