1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

कैसी है फिल्म नो वन किल्ड जेसिका

८ जनवरी २०११

आम इंसान को इंसाफ नहीं मिलने की कहानी पर बॉलीवुड में कई फिल्में बन चुकी हैं, लेकिन ‘नो वन किल्ड जेसिका’ इसलिए प्रभावित करती है कि यह एक सत्य घटना पर आधारित है.

https://p.dw.com/p/zv0Z
तस्वीर: DW/Prabhakar Mani Tewari

नो वन किल्ड जेसिका उन फिल्मों से इसलिए भी अलग है क्योंकि इसमें कोई ऐसा हीरो नहीं है जो कानून हाथ में लेकर अपराधियों को सबक सीखा सके. यहां जेसिका के लिए एक टीवी चैनल की पत्रकार देशवासियों को अपने साथ करती है और अपराधी को सजा दिलवाती है.

Indische Schauspielerin Rani Mukherjee
तस्वीर: AP

जेसिका को सिर्फ इसलिए गोली मार दी गई क्योंकि उसने समय खत्म होने के बाद ड्रिंक सर्व करने से इनकार कर दिया था. हत्यारे पर शराब के नशे से ज्यादा नशा इस बात का था कि वह मंत्री का बेटा है. उसके लिए जान की कीमत एक ड्रिंक से कम थी.

फिल्म में दिखाया गया है कि टीवी चैनल पर काम करने वाली मीरा को धक्का पहुंचता है कि जेसिका का हत्यारा बेगुनाह साबित हो गया. वह मामले को अपने हाथ में लेती है. गवाहों के स्टिंग ऑपरेशन करती है और जनता के बीच इस मामले को ले जाती है. चारों तरफ से दबाव बनता है और आखिरकार हत्यारे को उम्रकैद की सजा मिलती है.

फिल्म यह दिखाती है कि यदि मीडिया अपनी भूमिका सही तरह से निभाए तो कई लोगों के लिए यह मददगार साबित हो सकता है. साथ ही लोग कोर्ट, पुलिस, प्रशासन से इतने भयभीत हैं कि वे चाहकर पचड़े में नहीं पड़ना चाहते हैं. इसके लिए बहुत सारा समय देना पड़ता है जो हर किसी के बस की बात नहीं है. फिल्म सिस्टम पर भी सवाल उठाती जिसमें ताकतवर आदमी सब कुछ अपने पक्ष में कर लेता है.

राजकुमार गुप्ता ने फिल्म का निर्देशन किया है और आधी हकीकत आधा फसाना के आधार पर स्क्रीनप्ले भी लिखा है. उन्होंने कई नाम बदल दिए हैं. एक वास्तविक घटना पर आधारित फिल्म को उन्होंने डॉक्यूमेंट्री नहीं बनने दिया है, बल्कि एक थ्रिलर की तरह इस घटना को पेश किया है. लेकिन कहीं-कहीं फिल्म वास्तविकता से दूर होने लगती है.

इंटरवल के पहले फिल्म तेजी से भागती है, लेकिन दूसरे हिस्स में संपादन की सख्त जरूरत है. रंग दे बसंती से प्रेरित इंडिया गेट पर मोमबत्ती वाले दृश्य बहुत लंबे हो गए हैं. कुछ गानों को भी कम किया जा सकता है जो फिल्म की स्पीड में ब्रेकर का काम करते हैं.

सारे कलाकारों के बेहतरीन अभिनय के कारण भी फिल्म अच्छी लगती है. रानी मुखर्जी के किरदार को हीरो बनाने के चक्कर में यह थोड़ा लाउड हो गया है. फिर भी होंठों पर सिगरेट और अपशब्द बकती हुई एक बिंदास लड़की का चरित्र रानी ने बेहतरीन तरीके से निभाया है.

रानी का कैरेक्टर मुखर है तो विद्या बालन का खामोश. विद्या ने सबरीना के किरदार को विश्वसनीय तरीके से निभाया है. उन्होंने कम संवाद बोले हैं और अपने चेहरे के भावों से असहायता, दर्द, और आक्रोश को व्यक्त किया है. इंस्पेक्टर बने राजेश शर्मा और जेसिका बनीं मायरा भी प्रभावित करती हैं.

अमित त्रिवेदी ने फिल्म के मूड के अनुरुप अच्छा संगीत दिया है. ‘दिल्ली' तो पहली बार सुनते ही अच्‍छा लगने लगता है. फिल्म के संवाद उम्दा हैं. जेसिका को किस तरह न्याय मिला, यह जानने के लिए फिल्म देखी जा सकती है. साथ ही उन जेसिकाओं को भी खयाल आता है, जिन्हें अब तक न्याय नहीं मिल पाया है.

सौजन्यः वेबदुनिया

संपादनः वी कुमार

इस विषय पर और जानकारी को स्किप करें

इस विषय पर और जानकारी

और रिपोर्टें देखें