कैसा है शरणार्थियों का रमजान
दुनिया भर के मुसलमानों के लिए रमजान का महीना श्रद्धा और त्याग का संदेश लेकर आता है. संकटग्रस्त देशों सीरिया, इराक और अफगानिस्तान के कई मुसलमान अपने दिन रिफ्यूजी कैंपों में बिताने को मजबूर हैं.
प्रार्थना का महीना
अपने परिवार के टेंट के बाहर बैठी अफगानिस्तान की फरीदा इफ्तार के पहले के घंटे अपनी छोटी सी कुरान पढ़ते हुए बिताती है. सूर्य के उगने और अस्त होने के बीच रोजे रखने वाले मुसलमान खाना-पानी कुछ भी नहीं लेते. एथेंस के बाहर रित्सोना में बसे शिविर में करीब 800 लोग रह रहे हैं.
पैकेट तैयार करते
श्टेफनी पोप (बाएं) इको 100 नाम की संस्था से जुडी स्वयंसेवी हैं. उनकी संस्था रिफ्यूजियों की मदद के लिए काम करती है. साथ में सुलेमान इनिड दमिश्क से आए एक रिफ्यूजी हैं. दोनों मिलकर खजूर से भरे करीब 150 बैग तैयार कर रहे हैं, पानी के साथ इन्हें खाकर पारंपरिक रूप से रोजा तोड़ा जाता है.
दान का सरप्राइज
सीरिया के दो लड़के संयुक्त अरब अमीरात के दूतावास से भेजी गई भेंट लेते हुए. रित्सोना शरणार्थी कैंप में किसी को इसकी उम्मीद नहीं थी कि तभी वहां 100 किलो सूखे खजूर पहुंचे.
खास जरूरतें पूरी
कई स्वयंसेवी खाने की चीजें बांटने के काम में लगे हैं. रमजान के महीने में आम भोजन के अलावा खास चीजें जैसे दही से बनने वाला पेय आयरान, खजूर और अनार का जूस भी बांटा जा रहा है.
जैसे तैसे जुगाड़
कैंपों में सारी सुविधाओं से लैस किचन की सुविधा ना होने के कारण जो मिले उससे काम चलाया जाता है. जैसे सीरिया के कामिश्लो से आई नाजा हुरु लकड़ी जलाकर किसी तरह चावल पकाती हुई. उनके परिवार के 9 लोग कैंप में हैं.
परिवार का साथ
नाजा का दामाद हसन रसूल खुद भी चार बच्चों का पिता है. पास के ही एक टेंट से आते संगीत को सुनकर अपने बेटे के साथ डांस करते हुए.
रोजा तोड़ना
नाजा का परिवार शाम को रोजा तोड़ने के लिए एक साथ इफ्तार करने बैठता है. घर में बना चावल और साथ में सूप. इसके अलावा ग्रीस में उन्हें सलाद और बैंगन भी मिल गया था. यह सब परिवार मिल बांट कर खाता है.
प्रार्थना का वक्त
शरणार्थी कैंप में ही एक खाली पड़े मकान में अस्थाई मस्जिद बना दी गई है. उसी मस्जिद की दीवार पर रखी कुरान को लेकर नमाज पढ़ने की तैयारी में एक रोजेदार.
ऐसे ढलता है दिन
रात होने से पहले दिन की आखिरी नमाज पढ़ने बैठा एक मुसलमान व्यक्ति. रित्सोना कैंप में रहते हुए भी रमजान का महीना पूरी श्रद्धा और प्रार्थना से बिताते हैं शरणार्थी.