कैंसर से लड़ेगा वायरस
२० मार्च २०१४इलाज के लिए दवा की जगह वायरस, सुनने में यह बात अजीब सी लगती है, पर जर्मनी की ट्यूबिंगन यूनिवर्सिटी के उलरिष लाउअर की मानें तो ऐसा सौ साल से भी पहले से किया जा रहा है. वह बताते हैं कि कैंसर वाली कोशिकाओं में घुस जाने के बाद वायरस की संख्या तेजी से कई गुना बढ़ने लगती है और वे कोशिकाओं को बीमार कर देते हैं. इसे ऑन्कोलिसिस कहते हैं, "इस तरह संख्या बढ़ने से कैंसर वाली कोशिकाएं मर जाती हैं." उन्होंने बताया कि ऐसा कई मामलों में देखा गया है कि जब कैंसर पीड़ित व्यक्ति को वायरस के कारण कोई बीमारी होती है, तब उनके कैंसर वाले ट्यूमर का आकार छोटा होने लगता है, "कई बार तो वे पूरी तरह खत्म ही हो जाते हैं."
ट्यूबिंगन यूनिवर्सिटी में अब इस तरह के टीके पर शोध हो रहा है जो कैंसर से बचा सके. चेचक से बचाने के लिए बचपन में जो टीका दिया जाता है, वह भी इसी सिद्धांत पर बनाया गया है. इस प्रोजेक्ट में जर्मनी का शिक्षा और शोध मंत्रालय निवेश कर रहा है. डॉयचे वेले से बातचीत में लाउअर ने बताया, "पहली बार ऐसा हो रहा है कि हम वायरस में इस तरह के बदलाव ला रहे हैं कि वे ट्यूमर से लड़ सकें." उन्होंने बताया कि किसी भी इंफेक्शन को खत्म करने के लिए पहला कदम यही होता है कि कोशिका में घुसा जा सके, "इसके लिए वायरस को एक रिसेप्टर की जरूरत होगी जो कोशिका का दरवाजा खोल दे और हमने ऐसा रिसेप्टर तैयार कर लिया है, जो वायरस के लिए केवल उन्हीं कोशिकाओं का दरवाजा खोलेगा जिनमें कैंसर है." यानि शरीर की बाकी कोशिकाओं को कोई नुकसान नहीं पहुंचेगा.
शरीर में 'सुसाइड जीन्स'
वैज्ञानिकों को अधिकतर वायरसों के आनुवंशिक ढांचे की जानकारी है. इसी के चलते वे इनमें बदलाव भी कर पा रहे हैं. वायरस के जरिये शरीर में 'सुसाइड जीन्स' डाले जाएंगे. मिसाल के तौर पर जब खसरे के वायरस को शरीर में भेजा जाएगा तो वह खास तरह के रिसेप्टर को पहचान कर कैंसर की कोशिका में जा घुसेगा. इसके बाद सुसाइड जीन्स के कारण कोशिका खुद को ही नष्ट कर देगी. कैंसर होने के बाद तो ऐसा किया ही जा सकता है, पर अब यूनिवर्सिटी इस दिशा में काम कर रही है कि अगर बचपन में ही इस तरह का टीका दे दिया जाए तो शरीर की प्रतिरोधक क्षमता कुछ ऐसी हो जाएगी कि कैंसर बनने ही नहीं देगी.
फिलहाल ऑन्कोलिसिस की यह प्रक्रिया उन्हीं लोगों पर आजमाई जा रही है जो पहले से ही रेडिएशन थेरेपी और कीमोथेरेपी करा रहे हैं. हालांकि अब तक इस तरह के इलाज के बुरे असर के बारे में कोई रिपोर्ट नहीं आई है लेकिन वैज्ञानिकों का कहना है कि वे इस ओर भी ध्यान दे रहे हैं. "हमें अभी खतरों के बारे में नतीजों पर पहुंचना है, पर रिसर्च अभी शुरुआती चरण में है." लेकिन उनका भरोसा है कि इलाज का यह तरीका भी उतना ही सुरक्षित रहेगा जितना खसरे का टीका.
रिपोर्ट: गुडरुन हाइजे/आईबी
संपादन: महेश झा