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कैंपस रेडियो अब सारे जर्मनी के लिए

७ मई २००९

इलेक्ट्रॉनिक मीडिया आज सारी दुनिया में लोगों के जीवन पर निर्णायक प्रभाव डाल रहा है. कहीं वह सारी दुनिया को जोड़ रहा है, तो कहीं कैंपस और कम्युनिटी रेडियो व टेलिविज़न के ज़रिये लोगों को अपने माहौल के प्रति सचेत कर रहा है.

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सभी छात्रों तक पहुंचने की चुनौतीतस्वीर: picture alliance/dpa

जर्मनी के विश्वविद्यालयों में टेलिविज़न के 18 प्रोजेक्ट हैं. कैंपस के शैक्षणिक व सांस्कृतिक माहौल को बढ़ावा देना इनका उद्देश्य था, लेकिन पाया गया कि सारे देश में तो दूर, अपने-अपने कैंपसों में भी ये लोकप्रिय नहीं हैं. अब इन्हें आपस में जोड़कर एक देशव्यापी कैंपस टीवी बनाने की पेशकश की गई है. लेकिन इन कार्यक्रमों का उद्देश्य क्या है? वाइमार विश्वविद्यालय के कैंपस चैनल के प्रोजेक्ट कोआर्डिनेटर वोल्फ़राम ह्योने इसके दोहरे चरित्र की ओर ध्यान आकर्षित करते हैं.

"हम कोशिश करते हैं कि समाज विज्ञान के ऐसे कठिन विषयों को प्रस्तुत किया जाए, आम टीवी चैनलों में जिनकी चर्चा नहीं होती. साथ ही हमारी कोशिश रहती है कि इन विषयों को लोकप्रिय ढंग से पेश किया जाए, और साथ ही उनमें हल्कापन न आ जाए". - वोल्फ़राम ह्योने


और अब देशव्यापी स्तर पर ऐसा करने का इरादा है, जैसा कि लाइपज़िग के मीडिया विभाग के प्रोफ़ेसर रयुडिगर श्टाइनमेत्ज़ इस महत्वाकांक्षी योजना पर प्रकाश डालते हुए कहते हैं.


"हम विश्वविद्यालयों को, उनके ज्ञान, उनके शोध और उनसे जुड़े हुए लोगों को आम जनता के बीच लाना चाहते हैं. मुख्य इरादा है ज्ञान, शिक्षा और संस्कृति का परिचय देना. इसमें कैंपसों की संस्कृति भी शामिल है". - रयुडिगर श्टाइनमेत्ज़


सन 2010 तक एक वेब पोर्टल तैयार किया जाएगा, जिसमें सभी 18 टीवी प्रोजेक्ट होंगे. बाद में एक केबुल नेटवर्क में उन्हें जोड़कर पेश किया जाएगा. लेकिन यह यू ट्युब जैसा नहीं होगा, एक सामान्य अवधारणा के तहत इन्हें जोड़ा जाएगा. लेकिन वाइमार के वोल्फ़राम ह्योने के मन में कुछ संदेह है.


"एक ब्रैंड का मतलब हमेशा अंतरों को मिटा देना होता है, और मेरे ख़्याल से यह कोई अच्छी बात नहीं होगी. ज़ाहिर है कि सहयोग से सीनर्जी एफ़ेक्ट होता है. लेकिन मुझे कुल मिलाकर समझ में नहीं आ रहा है कि यह कैसे होगा. और अंतरों को मिटा देने से गुणवत्ता पर असर पड़ता है, कार्यक्रमों का निजी चरित्र नहीं रह जाता". - वोल्फ़राम ह्योने


सारे जर्मनी के लिए एक कैंपस रेडियो - फ़िलहाल यह एक योजना ही है. और प्रतिस्पर्धी विश्वविद्यालय सहयोग के ऐसे प्रोजेक्ट के लिए धन मुहैया करेंगे या नहीं, यह भी देखना है.

लेखक - मैक्सिमिलियन ग्रोसर/रति अग्निहोत्री

संपादन - उज्ज्वल भट्टाचार्य