कुबंले का कोटला
२ नवम्बर २००८बैंगलोर में बिना विकेट और मोहाली में बिना मैच बैठे अनिल कुंबले ने कभी इस बात का इशारा नहीं किया कि वह इसी सीरीज़ में क्रिकेट को अलविदा कह देंगे. बल्कि दूसरे टेस्ट के दौरान जब उन्होंने कहा था कि अभी वह क्रिकेट खेल सकते हैं, तब भी यही लगा था कि कुंबले फ़िलहाल टीम इंडिया की जर्सी टांगने के मूड में नहीं हैं.
लेकिन शायद कुंबले ने अपनी ख़ूबसूरत गेंदबाज़ी की ही तरह इस क़दम का फ़ैसला भी कर लिया था. बस इंतज़ार था तो दिल्ली के कोटला का.
फ़िरोज़शाह कोटला ग्राउंड के मायने कुंबले के लिए महान यादों से जुड़ी है. यही वह जगह थी, जहां उन्होंने 1999 में पाकिस्तान की दूसरी पारी के सभी 10 विकेट निगल लिए थे और वह भी सिर्फ़ एक ही दिन में. इससे पहले एक पारी में सभी 10 विकेट लेने का कारनामा सिर्फ़ जिम लेकर ही कर पाए थे.
वैसे तो कुंबले 1990 में ही भारतीय टीम में शामिल हो गए थे, लेकिन उनकी जगह पक्की इसी कोटला ग्राउंड की वजह से हुई, जब उन्होंने 1992 में यहां खेले गए ईरानी ट्रॉफ़ी के मैच में बेमिसाल प्रदर्शन किया. उन्होंने मैच में 13 विकेट लिया था.
कुंबले ने अपने संन्यास के एलान के बाद जब ख़ुद कहा कि कोटला के साथ उनकी यादें जुड़ी हैं तो साफ़ था कि वह उन सात टेस्ट मैचों की बात कर रहे हैं, जिसमें उन्होंने यहां पूरे 58 विकेट लिए हैं. चार बार पांच विकेट और दो बार 10 विकेट.
कोटला पर दूसरे नंबर पर विकेट लेने वाले कपिलदेव ही हैं, जिन्होंने नौ मैचों में 32 विकेट लिए थे. कपिल का रिकॉर्ड तोड़ कर ही अनिल कुंबले भारत की तरफ़ से सबसे ज़्यादा विकेट लेने वाले गेंदबाज़ बने थे. कपिल को जहां 434 विकेट का सफ़र तय करने में 131 मैच का वक्त लगा था, वहीं कुंबले ने यह रिकॉर्ड 90 टेस्ट मैचों में ही बना दिया था.
ज़ाहिर है 38 साल की उम्र में थक चुके कुंबले क्रिकेट को अलविदा कहने का मन बना चुके थे लेकिन इसके लिए वह एक बेहतरीन जगह खोज रहे थे. भला फ़िरोज़शाह कोटला से बेहतर जगह उनके लिए क्या हो सकती थी.