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किन्नरों को सम्मान देने की कोशिश

१६ सितम्बर २०१२

लिपिस्टिक और आयलाइनर के लिए मुहब्बत का सैफुल इस्लाम के लिए मतलब है ताउम्र मजाक का पात्र बनना और भेदभाव का शिकार होना. लेकिन अब वह बांग्लादेश में सम्माननीय जीवन बिता रहे हैं. शुक्र है ट्रेनिंग का.

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तस्वीर: AP

बांग्लादेश में किन्नरों के लिए शुरू की गई खास स्कीम के कारण सैफुल इस्लाम जैसे लोग सम्मान का जीवन जी पा रहे हैं और पसंद का काम भी कर पा रहे हैं.

दक्षिण एशिया में वैसे भी किन्नरों के लिए जीवन आसान नहीं. परिवार उन्हें निकाल देते हैं. फिर वे भीख मांगने, ड्रग्स का धंधा या देह व्यापार में लग जाते हैं. एक ऐसा चक्र जिससे निकलना कई लोगों के लिए जीवन भर संभव नहीं हो पाता.

लेकिन सैफुल इस्लाम की दुनिया अब बदल गई है. हर सुबह वह जीन्स, टीशर्ट पहन हल्का सा मेकअप करते हैं और काम करने जाते हैं. ढाका के एटीएन बांग्ला चैनल के ऑफिस में. यह बांग्लादेश का सबसे बड़ा निजी टीवी चैनल है. "मेरे काम की सबसे अच्छी बात यह है कि मेरे साथ काम करने वाले मुझसे इंसान की तरह व्यवहार करते हैं. एक किन्नर के लिए यह बड़ी बात है. जब मेरे साथ तीन और किन्नरों ने यहां काम शुरू किया तो लोग इकट्ठा हो जाते थे. कुछ हमें चिढ़ाते थे. लेकिन अब सब कुछ सामान्य है. हम किसी और स्टाफ की ही तरह हैं." इस्लाम आठ महीने से यहां काम कर रहे हैं. उन्होंने किन्नरों के लिए बनाई गई सरकारी योजना का फायदा उठाया.

विडीयोग्राफी सीखने के लिए पिछले साल तीस किन्नरों में उनका भी चुनाव हुआ. इसके अलावा सिलाई, ब्यूटी पार्लर से जुड़े प्रशिक्षण भी दिए जा रहे हैं. छह महीने की ट्रेनिंग के बाद इस्लाम के दोस्त बॉबी और चंचल को एटीएन बांग्ला में वीडियो एडिटर के तौर पर काम मिला है. जबकि इस्लाम और ओपू यहां मेकअप आर्टिस्ट हैं.

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ट्रांसजेडर्स के लिए अधिकारों की मांगतस्वीर: AP

बुरा बचपन

इस्लाम कहते हैं कि उनका जीवन किसी आश्चर्य से कम नहीं है. हमने कभी नहीं सोचा था कि किसी दिन हम सामान्य लोगों के साथ काम कर सकेंगे. ढाका के मध्यवर्ग में पैदा हुए इस्लाम को बचपन में अकसर डांट और मार खानी पड़ती क्योंकि उन्हें लड़कियों के कपड़े अच्छे लगते थे. "मुझे साड़ी और चूड़ियां पहने देख मेरे भाई इतने गुस्से में आ जाते कि वह मुझे बेंत से मारते और मुझे भूखा रखते."

18 साल की उम्र में इस्लाम ने भी वही किया जो हजारों दक्षिण एशियाई किन्नर करते हैं. वह घर से भाग गए और हिजड़ा समुदाय में रहने लगे, जहां उन्हें अपनी पसंद के कपड़े पहनने की आजादी थी.

सामान्य तौर पर किन्नर शादी, पैदाइश या दूसरे समारोहों में पहुंच, गा बजा कर पैसे कमाते हैं. यहां होने वाले अत्याचार से भी पार पाना मुश्किल था. अब इस्लाम सम्मान से हर महीने 10 हजार टका सैलेरी लेते हैं. अब वह अपनी मां के साथ रहते हैं, "अब मैंने किन्नरों का मुहल्ला छोड़ दिया है और अपनी मां के साथ रह रहा हूं. इस नौकरी से पहले मेरा लोगों से विश्वास ही उठ गया था."

सरकारी अधिकारी एबादुर रहमान किन्नरों के लिए इस प्रोजेक्ट के तहत प्रशिक्षण का इंतजाम करते हैं. उनका कहना है कि पहले बैच में तैयार हुए लोगों से उनका उत्साह बढ़ा है. और वह अब और भी क्षेत्रों में ट्रेनिंग के बारे में सोच रहे हैं. "निजी क्षेत्र के कई लोगों ने हमसे संपर्क किया कि वह किन्नरों को रखना चाहते हैं. इनमें गारमेंट फ्रैक्ट्री सबसे आगे है क्योंकि उनके पास कर्मचारियों की कमी है."

सरकार ने बूढ़े किन्नरों के लिए मासिक वजीफे की सुविधा दी और उनके लिए एक खास प्रशिक्षण केंद्र शुरू किया. इस समुदाय के लिए सालों से काम कर रही पिंकी शिकदेर इस बदलाव का स्वागत करती हैं. बांग्लादेश में करीब डेढ़ लाख किन्नर हैं. पिंकी कहती हैं, "हम बहुत खुश हैं कि देश हमारे बारे में सोच रहा है. खास कर ऐसे देश में जहां महिलाओं को भी पूरे अधिकार नहीं मिलते हैं. लेकिन हम अभी यात्रा की शुरुआत में हैं. अभी कुछ ही प्रोजेक्ट हैं और बहुत कम को नौकरियां मिली हैं. अभी बहुत जरूरत है और यह समस्या कई सौ साल पुरानी है."

एएम/एजेए (एएफपी)