"किन्नरों को नहीं दिया जाता बराबरी का दर्जा"
२१ सितम्बर २०१२डीडब्ल्यू हिंदी की वेबसाइट पर और टीवी शो मंथन द्वारा इतनी रोचक और ज्ञानवर्धक जानकारियां देने के लिए मैं आप सभी को धन्यवाद कहना चाहता हूं. यह हमारे ग्रामीण दर्शकों के लिए बहुत ही अच्छा कार्यक्रम है. कृपया इस प्रसारण का समय और संख्या बढाने की कोशिश करे.
गोविन्द त्रिपाठी,ओरई,उत्तर प्रदेश
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दक्षिण एशिया के देशों की बात की जाए तो इनमें से एक भारत भी है जहां किन्नरों को या तो मात्र हास्य पात्र के रूप में देखा जाता है या फिर वासना की नजरों से. यहां किन्नरों को बराबरी का दर्जा नहीं दिया जाता. शायद,यही वजह है कि किन्नरों को अपनी आजीविका चलाने के लिए-बस,ट्रेन या शादी-बारात जैसे खुशियों भरे मौकों पर उगाही करने के साथ-साथ देह व्यापार या कई अन्य गलत धंधों का सहारा भी लेना पड़ता है. यहां किन्नर चंद रूपयों की खातिर दुआएं देने या अपमानित करने में भी पीछे नहीं हटते, अगर कोई प्यार से ना माने तो लोगों की जेबें ढीली कराने का तरीक़ा भी इन्हें बखूबी आता है. बराबरी का दर्जा न मिलने के बाद भी ऐसा नहीं है कि किन्नरों की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं.संघर्ष भरा जीवन तो है ही,साथ ही भरपूर पैसा भी है, लेकिन इज्जत और सम्मान नहीं..!
डीडब्ल्यू की हिंदी वेबसाइट पर किन्नरों को सम्मान देने की कोशिश, इस आर्टिकल के अंतर्गत बांग्लादेश में किन्नरों के लिए शुरू की गयी खास स्कीम के बारे में पढ़ने को मिला. सैफुल इस्लाम और उनके साथियों की यह कहानी काफी दिलचस्प है. बांग्लादेश में किन्नरों के हक में की गयी यह पहल सच में काबिल-ए-तारीफ है. डॉयचे वेले हिंदी ने इस रिपोर्ट के माध्यम से किन्नरों के जीवन पर काफी सटीक जानकारी अपने पाठकों तक पहुंचाई. इसके लिए शुक्रिया.
आबिद अली मंसूरी, देश प्रेमी रेडियो लिस्नर्स क्लब, बरेली, उत्तर प्रदेश
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विवादित वीडियो जर्मनी में दिखाने की धमकी - यह असहिष्णुता का दौर है. जहां हर व्यक्ति केवल अपने आपको सही ठहरता है, वहां दूसरों पर ऊंगली उठाने का तो अधिकार रखता है, पर उस पर ऊंगली उठाने का अधिकार किसी को नहीं देता. बड़ा अचरज होता है कि शिक्षा के इस दौर में भी धार्मिक उन्माद और कट्टरता अशिक्षा के जमाने से कहीं ज्यादा उग्र है.
भूख हड़ताल से कोई गांधी नहीं होता - गांधी दर्शन आज भी उतना ही प्रासंगिक है जितना गांधी के समय था. वह शाश्वत है. अतः न तो मर सकता है और ना ही उसका महत्त्व कम हो सकता है. सिर्फ उसका पालन उतनी ही सच्चाई और ईमानदारी से हो जितना गांधी करते थे.
शातिर होते हैं मच्छर - इस आलेख को पढ़कर बहुत साल पहले का एक चुटकुला याद आ गया - एक विदेशी किसी होटल (भारत में) में आकर रुका, लेकिन वहां मच्छर बहुत अधिक थे. वह परेशान हो उठा. आखिर उसने सोचा कि यदि मैं लाइट बंद कर दूं तो मच्छरों को अंधेरे में दिखाई नहीं दूंगा और मच्छर काट नहीं सकेंगे.उसने लाइट बंद कर दी. कुछ ही मिनटों बाद कोई जुगनू वहां आ गया. विदेशी को बड़ा अचरज हुआ, बोला कि भारत के मच्छर तो बहुत शातिर हैं. लालटेन लेकर ढूंढने आ गया और उसने तुरंत होटल छोड़ने का फैसला किया.
प्रमोद महेश्वरी, फतेहपुर-शेखावाटी, राजस्थान
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मोबइल से मैं जब आपसे जुड़ता हूं तो कभी पगडंडी से गुजरते हुए या पड़ोसी के यहां चाय पीते हुए या फिर बागों की तरफ हुआ तो आम महुआ की जड़ पर बैठ कर डीडब्ल्यू का मजा लेता रहता हूं.
विदेशी निवेश का जवाब भारत बंद - एफडीआई का रोल भी कोई नही देखना चाहते है. छोटे या बडे शहरों में छोटी दुकानों पर जो शर्ट 300 रुपये की मिलती है, वही शर्ट बडे शोरूम में चमक दमक पैकिंग के साथ 500 की मिलती है. एफडीआई के तहत छोटी दुकानों का खात्मा हो जाएगा. मध्यम और गरीब वर्ग के लिए ये सस्ता होते हुए भी मंहगा सौदा साबित होगा.
अनिल कुमार द्विवेदी, सैदापुर अमेठी, उत्तर प्रदेश
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संकलनः विनोद चड्ढा
संपादनः ईशा भाटिया