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कितनी सुरक्षित साइबर सुरक्षा नीति

४ जुलाई २०१३

भारत सरकार ने अपनी राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा नीति एक ऐसे समय घोषित की है जब अमेरिका के साइबर जासूसी करने पर जबर्दस्त विवाद छिड़ा हुआ है और खबर है कि भारत का इन देशों में पांचवां स्थान है.

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तस्वीर: DW/J.Impey

जर्मनी और फ्रांस जैसे अमेरिका के मित्र देश भी इस जासूसी का शिकार बने हैं और उन्होंने इस के खिलाफ कड़ा विरोध जताया है. भारत के विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद ने इसे जासूसी मानने से ही इंकार कर दिया है और केवल “सूचना एकत्रित करने का प्रयास” कह कर इसका परोक्ष रूप से बचाव ही किया है. साथ ही भारत ने साइबर जासूसी के क्षेत्र में अमेरिका के विराट तंत्र को बेनकाब करने वाले एडवर्ड स्नोडेन को राजनीतिक शरण देने से भी इंकार कर दिया है. इन दोनों ही निर्णयों की आलोचना हो रही है. शरण देने से इंकार करने की आलोचना करने वाले तो फिर भी कम हैं, लेकिन अमेरिका में भारतीय दूतावास और दूसरे राजनयिक कार्यालयों की इलेक्ट्रॉनिक जासूसी की लीपा पोती करने पर व्यापक रूप से क्षोभ प्रकट किया जा रहा है और पूछा जा रहा है कि जब जर्मनी जैसा अमेरिका का नजदीकी सहयोगी देश अपनी संप्रभुता पर आंच का कड़ा विरोध कर रहा है, तब भारत इतना लचर और लाचार रवैया क्यों अपना रहा है?

इसी बीच संचार मंत्री कपिल सिब्बल ने राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा नीति की घोषणा कर डाली है. विडम्बना यह है कि जहां एक ओर इस नीति की घोषणा पर प्रसन्नता व्यक्त की जा रही है वहीं इसने कुछ गंभीर आशंकाएं भी पैदा कर दी हैं. सुरक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि 26 नवम्बर, 2008 को मुंबई में पाकिस्तानी आतंकवादियों के हमले के शीघ्र बाद ही इस प्रकार की नीति की घोषणा हो जानी चाहिए थी. नीति का उद्देश्य सरकारी और निजी साइबर सम्पत्तियों को संभावित खतरों से बचाना है. इस प्रतिरक्षात्मक रणनीति के साथ-साथ आक्रामक रणनीति तैयार करना भी इसके उद्देश्यों में शामिल है ताकि साइबर सूचनाएं हासिल की जा सकें, यानि मोबाइल फोन पर होने वाली बातचीत और भेजे जाने वाले संदेशों और चित्रों, इंटरनेट पर वेबसाइटों, ई-मेल, सामाजिक मीडिया पर होने वाली गतिविधियों सभी के बारे में जानकारी प्राप्त हो जाये. खबर है कि इस काम के लिए सरकार पांच लाख साइबर लड़ाकों यानि पेशेवर साइबरकर्मियों को प्रशिक्षित और नियुक्त करेगी. यानि आभासी दुनिया के सभी रहस्य मुट्ठी में करना इस कार्यक्रम का लक्ष्य होगा.

इस सच्चाई से कोई इंकार नहीं कर सकता कि इस समय साइबर आक्रमणों का खतरा इस क्षेत्र में क्षमतावान देशों की ओर से तो है ही इसके साथ ही गैर-सरकारी संगठनों, मसलन आतंकवादी गतिविधियों में लिप्त गुटों की ओर से भी यह खतरा कोई कम नहीं है. पिछले तीन दशकों के भीतर भारत सूचना तकनीकी के क्षेत्र में विश्व में एक प्रमुख देश के रूप में उभरा है. इसके कारण उसकी सूचना तकनीकी कंपनियों पर अनेक देशों, कंपनियों और अन्य अवांछित तत्वों की निगाह है. अब परमाणु संयंत्र और विद्युत ग्रिड आदि भी कम्प्यूटरों द्वारा ही संचालित होते हैं. यदि किसी साइबर आक्रमण में इनके साथ छेड़छाड़ कर दी जाये तो इसके भयंकर परिणाम निकल सकते हैं. इसलिए एक समग्र साइबर सुरक्षा नीति और ढांचे की जरूरत बहुत समय से महसूस की जा रही थी. यही कारण है कि इस नीति का स्वागत हुआ है.

यह भी ध्यान देने की बात है कि नीति में केवल सरकार ने अपने लक्ष्य और मंतव्य ही बताए हैं, उन्हें किस तरह हासिल किया जाएगा इस बारे में वह ज्यादातर मौन है. केवल कुछ संगठनों को स्थापित करने के बारे में उल्लेख किया गया है जो दिन-रात साइबर चौकसी करेंगे और राष्ट्रीय एवं क्षेत्रीय स्तर पर समन्वित ढंग से काम करेंगे.

इसी के साथ नागरिकों की निजता और उनके बुनियादी लोकतांत्रिक अधिकारों की सुरक्षा के बारे में भी चिंता शुरू हो गई है. अनेक लोगों को लग रहा है कि जब सरकार अमेरिकी जासूसी को एक मामूली बात मानकर कोई महत्व नहीं देती, तो फिर वह अपनी संस्थाओं द्वारा भारतीय नागरिकों की हर गतिविधि पर निगाह रखने को कैसे महत्वपूर्ण और अवांछित समझेगी. आशंका यह है कि यदि इलेक्ट्रॉनिक संचार तंत्र के जरिये होने वाली हर गतिविधि सरकारी एजेंसियों की नजर में होगी, तो फिर किसी की भी निजता या प्राइवेसी का क्या अर्थ रह जाएगा? क्या इससे सरकार के हाथों में असाधारण शक्ति नहीं आ जाएगी जिसका वह कभी भी और किसी भी तरीके से दुरुपयोग कर सकती है. हालांकि आपातकाल को लगे अब अड़तीस साल हो चुके हैं, लेकिन लोकतंत्र के अपनी राह से भटकने का यह अनुभव लोग भूले नहीं हैं. लोकतंत्र में सरकार के हाथों में एक सीमा और मर्यादा के भीतर ही अधिकार होना चाहिए. इसे सुनिश्चित करने के लिए ही व्यवस्था के विभिन्न अंग उस पर अंकुश रखते हैं॰ लेकिन सूचना के इस केन्द्रीकरण का लोकतंत्र पर घातक प्रभाव भी पड़ सकता है॰ आशा की जानी चाहिये कि भारत सरकार नागरिकों की इस आशंका को पुष्ट करने वाले कदम नहीं उठाएगी और साइबर सुरक्षा की आड़ में उनकी निजता को असुरक्षित नहीं करेगी॰

ब्लॉगः कुलदीप कुमार, दिल्ली

संपादनः एन रंजन

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