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काम नहीं, नाम में फंसी सरकार

२७ जुलाई २०१२

उत्तर प्रदेश सरकार ने कुछ ऐसे जिलों का नाम फिर बदल दिया है, जिन्हें पिछली बार मायावती ने मुख्यमंत्री बनने के बाद बदला था. नाम के खेल में लगी सरकारें असली मुद्दे को पीछे छोड़ रही हैं.

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तस्वीर: DW

अखिलेश यादव के नेतृत्व वाली समाजववादी पार्टी की सरकार ने मायावती के बनाए गए पंचशील नगर को बदलकर हापुड़ कर दिया है. इसी तरह प्रबुद्ध नगर को शामली, भीमनगर को संभल, ज्योति बा फुले नगर को अमरोहा ََऔर छत्रपति शाहूजी नगर का नाम अमेठी कर दिया है. एसपी सरकार ने कांशीराम नगर और राम बाई नगर का नाम भी बदल दिया है.लखनऊ विश्वविद्यालय के प्रोफेसर एसएन सिंह इसे ऐतिहासिक पहचान का संकट करार देते हैं, ''अंग्रेजों ने कभी किसी शहर का नाम अपनी सांस्कृतिक विरासत पर नहीं, बल्कि यहीं की जड़ों से निकाल कर रखा. मसलन नैनीताल इसमें 'ताल' तो खालिस भारतीय है. इस तरह का नामकरण सबको ठीक लगता है."

अखिलेश यादव की सरकार ने जिलों के ही नाम नहीं बदले बल्कि मायावती सरकार की योजनाओं का भी नाम बदल दिया है. जैसे महामाया गरीब आर्थिक मदद योजना का नाम बदल कर कन्या विद्या धन कर दिया. डॉक्टर अंबेडकर ग्राम विकास योजना का नाम बदल कर लोहिया ग्राम विकास योजना कर दिया. पूर्व मुख्यमंत्री और बीएसपी नेता मायावती ने इस पर तीखी प्रतिक्रिया दी है. उन्होंने समाजवादी सरकार के इस फैसले को "दलित, पिछड़े, संतों और महापुरुषों का अपमान" बताया है. उन्होंने कहा, "इस फैसले की जितनी निंदा की जाए कम है."

हालांकि जब बीएसपी सरकार सत्ता में थी तो उसने भी जिलों का नाम बदलने में कमी नहीं की थी. कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के संसदीय क्षेत्र रायबरेली जिले की तिलोई और सलोन तहसीलों को काटकर अमेठी में शामिल कर दिया गया था और उसका नाम छत्रपति शाहूजी नगर हो गया था. इसी तरह मायावती ने मुजफ्फरनगर जिले की तहसील शामली को प्रबुद्ध नगर बना दिया था. अब समाजवादी पार्टी की सरकार ने फिर से उसी नाम को लागू कर दिया है. हालांकि पुरानी पहचान मिलने से शामली के लोग खुश हैं पर वे जिला बनाने के पक्ष में नहीं हैं. व्यवसायी तेजपाल मलिक का कहना है, "स्टील मिल, कागज मिल, चीनी मिल और एशिया की सबसे बड़ी गुड मंडी वगैरा सभी कुछ तो मुजफ्फरनगर में हैं.  फिर इसे जिला बनाकर मिलेगा क्या."

Mayawati Mumari
तस्वीर: AP

लखनऊ की प्रतिष्ठित किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी नाम बदलने की राजनीति का चौथी बार शिकार बनी है. पहली बार मायावती सरकार ने इसका नाम 2000 में छत्रपति शाहूजी महाराज चिकित्सा विश्वविद्यालय किया. इसके बाद दिसंबर 2003 में किंग जॉर्ज एलुमिनाई की मांग पर मुलायम सिंह की सरकार ने इसका पुराना नाम बहाल कर दिया. 2007 में बीएसपी की सरकार बनते ही इसका नाम फिर से छत्रपति शाहूजी महाराज चिकित्सा विश्विद्यालय कर दिया गया. अब 2012  में फिर से किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी कर दिया.

करोड़ों का खर्च, लोगों के वारे न्यारे

राजस्व विभाग के सूत्रों के मुताबिक एक नया जिला बनाने में औसतन 20-25 करोड़ रुपये का खर्च आता है. एक जिले का नाम बदलने पर तीन से पांच करोड़ रुपये का खर्च अनुमानित है. केजीएमयू नाम बहाल होने पर लगभग सात करोड़ के खर्च का अनुमान लगाया जा रहा है. ये खर्च साइन बोर्ड, स्टेशनरी, इंटीरियर, ब्रोशर, विकास पुस्तिकाओं और निर्माण पर आता है.

शामली के जिला बनने से पहले और जिला बनने के बाद के राजस्व में एक प्रतिशत की बढ़ोत्तरी दर्ज की गई है. जबकि सरकारी खर्च इससे कई गुना अधिक बढ़ गया है. इस प्रशासनिक बदलाव का सबसे अधिक फायदा बिल्डर और ठेकेदारों की लॉबी को होता है. कांग्रेस के एक नेता नाम न छापने शर्त पर इसे भी धन कमाने की एक चाल बताते हैं.

रिपोर्ट : एस. वहीद, लखनऊ

संपादनः ए जमाल

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