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काई से बनेंगे घर और फर्नीचर

८ अक्टूबर २०१२

बढ़ती आबादी के कारण संसाधनों की कमी हो रही है और विकल्प की तलाश हो रही है. अब घरों में पैदा होने वाले जैविक कचरे से भविष्य के घर और कुर्सियां तथा बिस्तर जैसे फर्नीचर बनाए जाएंगे.

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तस्वीर: picture-alliance/dpa

न्यू यॉर्क यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर मिचेल योआखिम का कहना है कि भविष्य में ककुरमुत्तों से कुर्सियां बनेंगी, काई से बिस्तर और ऑर्गेनिक पदार्थों से पूरे पूरे घर बनेंगे. और यह सब कोई दूर का सपना नहीं है, बल्कि जल्द ही संभव होगा. लंदन में एक सम्मेलन में प्रोफेसर योआखिम ने कहा, "हम अगले 100 साल के अंदर इंटीरियर के लिए नए वास्तुकला के हल पा लेंगे."

कोलंबिया यूनिवर्सिटी में समाजशास्त्र की प्रोफेसर और शहरों के विकास की जानकार सास्किया सासेन का भी मानना है कि फैक्टरियों में चीजें बनाने के बदले जैविक दुनिया की संभावनाओं का इस्तेमाल करना होगा. वे कहती हैं, "निर्माण, इंजीनियरिंग और आर्किटेक्चर के क्षेत्र में इस समय हो रही क्रांति अभूतपूर्व है."

प्रोफेसर योआखिम का मानना है कि इंसान अपना फर्नीचर उपजाने लगेंगे. बायोलॉजी टेक्नॉलॉजी बन जाएगी और लंबे परिवहन के साथ बड़े पैमाने पर होने वाला उत्पादन पुरानी बात हो जाएगी. उनकी जगह लोगों के अपने डिजाइन के आधार पर काई या फंगस से बने माल ले लेंगे.

जैविक चीजों से सामान भले ही बनने लगें लेकिन प्रोफेसर योआखिम यह नहीं मानते कि इसका मतलब पुराने समय में वापसी है, "सिंथेटिक बायोलॉजी के जरिए हम पहले से कहीं अधिक प्रगतिशील हो जाएंगे." वह कहते हैं, "जीवविज्ञानी और वास्तुशिल्पी को साथ रख दीजिए, कुर्सी का डिजाइन चुनिए, सांचा बनाइए, काई को इसमें बढ़ने दीजिए, बाद में कड़ा करने वाले तत्व से इसे ठोस बना दीजिए." और यह हर चीज के साथ हो सकता है.

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तस्वीर: picture-alliance/dpa

इस समय भी एक कंपनी है जो फंगस से पैकेजिंग का सामान तैयार करती है.प्रोफेसर योआखिम इसमें सिर्फ फायदा ही देखते हैं. घर जीवित पौधों से बनाए जाएंगे, जहरीला कॉर्बन डाई ऑक्साइड ऑक्सीजन में बदलेगा. इसके अलावा टूटे फर्नीचर को दूसरे जानवरों को खिलाने के काम में लाया जा सकेगा. योआखिम की राय में अगले 40-50 वर्षों में परिवर्तन बाजार में दिखने लगेगा.

सासेन का ध्यान बड़े शहरों में जीवन को प्रभावित करने वाली चुनौतियों पर है. उनका कहना है कि भारत, मेक्सिको और ब्राजील जैसे देशों में महानगरों के आसपास बड़े बड़े उप महानगर उभरे हैं, जिसका नतीजा बड़ी झुग्गियों, ट्रांसपोर्ट की मुश्किलों और पानी की कमी के रूप में सामने आया है. ये शहरीकरण की चुनौतियां हैं. सासेन कहती हैं, "यदी हम मेगासिटी के भविष्य के बारे में बात करना चाहते हैं तो इन समस्याओं का हल खोजना होगा. हमें भविष्य में प्रकृति से बचने के बदले उसके साथ काम करना होगा."

प्रोफेसर योआखिम का कहना है कि शहर और टेक्नॉलॉजी के तेज बदलाव के साथ लोग और उनकी जरूरतें भी बदलेंगी. लोगों के साथ संपर्क सबसे बड़ी इच्छा होगी, इसलिए जरूरत पड़ने पर शांत माहौल में जाने की इच्छा भी बढ़ेगी. और ये निजी इलाका भविष्य में स्टील, शीशे और कंक्रीट का नहीं होगा बल्कि अल्गी का होगा.

एमजे/एजेए (डीपीए)

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