"का बरखा जब कृषि सुखानी"
९ नवम्बर २०१२डॉयचे वेले की पर्यावरण पर केन्द्रित एक खास रपट नहीं बरसा करेगा सावन पढ़ने के बाद घाघ की पुरानी कहावत "का बरखा जब कृषि सुखानी" याद आ गई.लगता है आने वाला कल ऐसा ही होगा.जब बारिश की जरूरत होगी तो बारिश नहीं होगी और जब जरूरत नहीं होगी तो बाढ़ आ जाएगी.वास्तव में बढ़ते औद्योगीकरण और लापरवाही के चलते प्राकृतिक संतुलन बिगड़ चुका है जिसे पटरी पर लाना एक चुनौती का काम है.एक तरफ विकास की अंधी दौड़ है तो दूसरी तरफ प्रकृति.ये एक युद्ध है प्रकृति बनाम विकास का. फिलहाल इस मुकाबले में विकास ही जीतता नजर आ रहा है,लेकिन अंतिम रूप से जीतना प्रकृति को ही है. बस यही सच लोगों को समझाना होगा. इलाहाबाद में अगले साल कुंभ मेले का आयोजन संगमतीर होगा. साफ-सफाई के लिहाज से उत्तर प्रदेश शासन द्वारा पूरे शहर में पॉलीथीन पर बैन लगा दिया गया है.सोचने वाली बात है कि पॉलिथीन का प्रयोग प्राकृतिक रूप से नुकसानदेह है,फिर पूरे राज्य में इस कानून का कठोरता से पालन क्यों नहीं किया जाता है.हम उसी पेड़ को काट रहे हैं जिस पर बैठे हैं तो आखिर भला हो कैसे. जब तक प्रयास का दामन हर कोई नहीं थामेगा तब तक बात अधूरी ही रहेगी. हमें समझना होगा कि प्रकृति ही हमारा ईश्वर है इसके बगैर जीवन नहीं.
रवि श्रीवास्तव, इंटरनेशनल फ्रेंडस क्लब, इलाहाबाद
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अमेरिका के राष्ट्रपति की खबर देखते ही DW ने दिल जीत लिया प्यारे डॉयचे वेले की वेबसाइट पर खबरों के अलावा विज्ञान जगत की रोजाना जानकारी पाकर बड़ी खुशी होती है आपको दीपावली की ढेरो बधाईयां हो.
कृपाराम कागा, बाड़मेर, राजस्थान
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प्रमोद महेश्वरी, फतेहपुर-शेखावाटी से ने दीपावली के शुभ अवसर पर यह कविता लिख भेजी हैः
शुभ दीपावली
जीवन और जगत को जगमग करने आता पर्व दीवाली ,
खुशी मनाने ख़ुशी बांटने आता है त्यौहार दीवाली
सुख बढ जाता दुःख घट जाता जब वह है बंट जाता,
इसी भाव की पावन ज्योति सदा जलाने आये दीवाली .
नन्हा दीया ज्यों तत्पर है अंधकार हरने धरती पर ,
मुट्ठी भर प्रकाश के बल पर लड़ता है वो तम से डटकर .
मावस की वो रात अंधेरी हो जाती है विवश हार पर ,
कोटि कोटि दीपों के सम्मुख उनकी इस सामूहिक जिद पर.
आओ मित्रों करें यत्न हम ज्योति पर्व के शुभ अवसर पर,
अंधकार कुछ तो कम कर दें, कम से कम एक घर रोशन कर.
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संकलनः विनोद चड्ढा
संपादनः आभा मोंढे