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''क़ुरान जलाने'' के मामले में काबुल में प्रदर्शन

२५ अक्टूबर २००९

अफ़ग़ानिस्तान में चुनावों में धांधली का विवाद थमा भी नहीं था कि एक नया बखेड़ा शुरू हो गया है. मामला है पवित्र क़ुरान की एक प्रति को कथित रूप से आग के हवाले करने का. घटना में तालिबान की साज़िश भी देखी जा रही है.

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ग्वांटानामों की जेल में हुई कथित घटना पर 2005 में भी हुआ था अफ़ग़ानिस्तान में बवालतस्वीर: AP

राजधानी काबुल में लोग सड़कों पर उतर आए. उनका गुस्सा इस बात पर है कि देश में तैनात विदेशी सैनिकों ने क़ुरान की एक प्रति को कथित रूप से जला दिया. क़ाबुल यूनिवर्सिटी के सैकड़ों छात्रों ने प्रदर्शनों की अगुवाई की, अमेरिका विरोधी नारे लगाए और अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा का पुतला फूंका.

अमेरिका की अगुवाई वाली गठबंधन सेना ने आरोपों का खंडन किया है. उसका कहना है कि ये मामला वारदाक सूबे में सामने क़रीब दो सप्ताह पहले सामने आया था लेकिन इसमें विदेशी सैनिकों की भूमिका का आरोप ग़लत पाया गाया. उसका कहना है कि तालिबान जानबूझकर इस तरह की अफ़वाहें फैला रहा है.

कुछ समाचार माध्यमों ने स्थानीय अधिकारियों के हवाले से बताया कि तालिबान चरमपंथी इस अफ़वाह को हवा देने की कोशिश कर सकते हैं ताकि अमेरिका और नैटो सेनाओं के विरोध में और हवा भड़के.

राजधानी काबुल में रविवार को सैकड़ों छात्रों ने जुलूस निकाला. और अमेरिका की मौत के नारे लगाए. एक छात्र का कहना था कि हम अमेरिकियों को शर्मसार करते रहेंगे.सुरक्षा बलों के साथ भी प्रदर्शनकारियों की छिटपुट झड़प की ख़बरें हैं. अफ़ग़ान पुलिस ने भीड़ को तितर बितर करने के लिए हवा में गोलियां भी चलाईं. लेकिन प्रदर्शनकारियों का कहना है कि वे हार नहीं मानेंगे.

समाचार एजेंसियों के मुताबिक चार साल पहले इसी तरह का मामला भड़क गया था जब अमेरिका की एक समाचार पत्रिका में ख़बर छपी थी कि ग्वांटानामो बे में अमेरिकी सैनिकों ने कुरान का अपमान किया है. अफ़ग़ान शहरों में उस समय दंगे भड़क गए थे जिसमें क़रीब 20 लोग मारे गए थे. पत्रिका ने अपनी रिपोर्ट बाद में भले ही वापस ले ली लेकिन तब तक नुकसान हो चुका था. लोगों को लगा था कि अफ़ग़ानिस्तान में ये गुस्सा विदेशी सैनिकों की मौजूदगी की वजह से है लेकिन चार साल बाद भी लगता है ये आग बनी हुई है.

रिपोर्ट-एजेंसियां

संपादन-एस जोशी