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कश्मीर के पिघते ग्लेशियर, बढ़ती चुनौती

सौजन्यः वेबदुनिया (संपादनः ए कुमार)२९ दिसम्बर २००९

कोपेनहेगन जलवायु बैठक की पूर्व संध्या पर कश्मीर के विश्व प्रसिद्ध स्की रिसॉर्ट में अमेरिकी रॉक स्टार टेरा नयोमी ने जब अपना मशहूर गीत 'से इट पॉसिबल.' गाया तो कश्मीर में तेजी से पिघल रहे ग्लेशियरों की ओर इशारा किया.

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सियाचिन पर भी ख़तरातस्वीर: APTN

नयोमी कश्मीर की ख़ूबसूरती की कहानियां सुनकर कश्मीर आईं लेकिन ग्लेशियरों की दशा देख-जान कर उन्हें बहुत दुख पहुंचा है. वह कश्मीर की ओर दुनिया का ध्यान आकर्षित करने की मुहिम छेड़ चुकी हैं, क्योंकि एशिया का वाटर टावर कहे जाने वाले कश्मीर को बचाना उनकी नजर में अब दुनिया की ज़िम्मेदारी है. नयोमी के प्रयास कहां तक कामयाब होंगे यह तो समय ही बताएगा लेकिन इतना ज़रूर है कि कश्मीर के तेज़ी से बदलते मौसम और पिघलते ग्लेशियरों को बचाने का प्रयास अभी तक सामने नहीं आया है.

प्रमुख ग्लेशियर तेज़ी से पिघल रहे हैं. कश्मीर में पानी का मुख्य स्रोत और सबसे बड़ा ग्लेशियर कोल्हाई पिछले 30 सालों में 18 प्रतिशत तक पिघल चुका है तो दुनिया का सबसे ऊंचा युद्धस्थल - सियाचिन ग्लेशियर भी अगले कुछ वर्षों में अंतिम सांसें लेना शुरू कर दे, क्या पता?

कोल्हाई के पिघलने की रफ़्तार नहीं थामी गई तो साफ़ पानी के लिए भारत-पाक के बीच एक और युद्ध को टाला नहीं जा सकता क्योंकि पाकिस्तानियों का जीवन भी इसी ग्लेशियर से जुड़ा हुआ है. कश्मीर में सबसे अधिक ग्लेशियर पहलगाम के आगे लिद्दर घाटी में हैं.

कश्मीर के रिसर्च स्कॉलर अर्जिमंद तालिब हुसैन द्वारा बनाई गई रिपोर्ट पर अगर विश्वास करें तो आने वाले दिनों में मौसम इस क़दर बिगड़ जाएगा कि कश्मीर बर्फ़ के लिए तरसेगा. कश्मीर में लगातार कम होती बर्फ़बारी और साल में नौ महीने बंद रहने वाले जोजिला दर्रे का दिसंबर के पिछले दिनों तक खुला रहना इस चेतावनी की पूर्व चेतावनी ही तो है.

हमेशा 20 फुट बर्फ़ से ढंके जोजिला दर्रे का साल के दौरान खुले रहने का लगातार बढ़ता समय ख़तरनाक संकेत हैं. पिछली बार तो इसे पूरी तरह बंद इसलिए नहीं किया जा सका कि भारी बर्फ़बारी ही नहीं हुई थी. ग्लोबल वॉर्मिंग का सीधा असर झेल रहा कश्मीर सिर्फ़ बर्फ़ से वंचित ही नहीं हो रहा बल्कि मौसम की अनजानी करवटों से यहां कुछ सालों बाद खाद्य सामग्री की भी क़िल्लत हो सकती है.

'इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज' के अनुसार, वर्ष 2035 तक हिमालय के ग्लेशियर 1,93,051 वर्ग मील से सिकुड़कर 38 हजार वर्ग मील रह जाएंगे जिसमें धरती का तीसरा पोल कहा जाने वाला सियाचिन ग्लेशियर भी शामिल है. वर्ष 1984 तक शीत और शांति का अकेला गवाह सियाचिन ग्लेशियर भारत-पाक सैनिकों द्वारा फैलाई जा रही गंदगी, उनके केरोसिन की तपिश और चीता हेलीकॉप्टरों की गड़गड़ाहट के बीच कराह रहा है.