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कच्चे तेल में स्नान से भगाएं बीमारी

३१ जनवरी २०१०

स्वास्थलाभ के एक ऐसे स्थान की, जहां कच्चे तेल में स्नान द्वारा लोग कुछेक चर्मरोगों से मुक्त हो जाते हैं. अज़रबैजान के नैफ़्थेलान क्लीनिक में इसी तरह की चिकित्सा होती है.

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पानी नहीं कच्चे तेल में स्नान से इलाजतस्वीर: DW-TV

अज़रबैजान की राजधानी बाकू से ढाई सौ किलोमीटर की दूरी पर बदमदर नाम की जगह है. यहां नैफ्थालान तेल के कुएं हैं और इसी जगह पर स्पा यानी इस तेल में स्नान की व्यवस्था है. इस इलाज को बैल्नियोट्रीटमेट कहा जाता है.

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तस्वीर: AP

डॉक्टरों का कहना है कि चालीस डिग्री गरम नैफ्थालान से भरे टब में लोगों को बिठाया जाता है. इस क्लीनिक के संस्थापक डॉक्टर का कहना है कि यह तेल एक्ज़िमा यानी दाद-खाज़-खुजली, हड्डियों के जोडों की बीमारी जैसे आर्थराइटिस, संधिवात यानी र्ह्युमेटिज़म और तंत्रिकाओं से जुड़ी सौ बीमारियों में मददगार होता है. यहां तक कि स्त्रीरोगों से जुड़ी बीमारियों में भी इससे मदद मिलती है. शोधकर्ताओं का कहना है कि नैफ्थेलान के तेल को शरीर पर लगाने से अल्ट्रासाउंड करने में आसानी होती है. आयुर्वेद के डॉक्टर महेश क्षीरसागर कहते हैं कि आयुर्वेद में तो कोई ऐसा तरीका नहीं है लेकिन नैफ्थेलान तेल सीधे शरीर में सोख लिया जाता है जिस कारण बीमारी में तुरंत राहत मिलती है.

अज़रबैजान के इस क्लीनिक में मध्यपूर्व से कुछ लोग आते हैं लेकिन यूरोप से आने वाले लोगों की संख्या कम है. यहां आने वाले अधिकतर मरीज़ पूर्व सोवियत संघ के देशों से आते हैं. क्योंकि सोवियत संघ के विघटन से पहले अस्सी के दशक में यह क्लीनिक बहुत मशहूर था और यहां बहुत लोग आते थे. अस्सी के दशक में यहां इलाज़ करवाने हर साल पचहत्तर हज़ार से ज़्यादा लोग आते थे.

जिस कच्चे तेल से यहां इलाज किया जाता है उसमें पचास फ़ीसदी नैफ्थेलान होता है जो कि एक तरह से ज़हर है और कार्सिनोजेनिक यानी कैंसर पैदा करने वाला है इसी कारण इसका यूरोप में इस्तमाल नहीं किया जाता. लेकिन नैफ्थेलान क्लिनिक के डॉक्टरों का दावा है कि उनका तेल कार्सिनोजेनिक नहीं है,हालांकि यह बात भी सही है कि जिसके शरीर में ट्यूमर है उन्हें यह ट्रीटमेंट नहीं दी जाती क्योंकि यह ट्यूमर बढ़ाता है.

यहां मरीज़ों का दस दिन इलाज किया जाता है और हर दिन आठ से बारह मिनट उन्हें इस चालीस डिग्री गरम कच्चे तेल में बिठाया जाता है. डॉक्टर इसमें स्वास्थ्य के लिए कोई ख़तरा नहीं देखते. नैफ्थेलान क्लीनिक के डॉक्टरों का कहना है कि आर्थराइटिस के जो मरीज़ दस दिन यह इलाज करवा लेते हैं उन्हें साल भर तक बीमारी तकलीफ़ नहीं देती और उन्हें किसी अतिरिक्त दवाई की भी ज़रूरत नहीं पड़ती. कुछ ऐसा ही कहना है आयुर्वेदिक डॉक्टर का, कि यह बीमारी ठीक नहीं करता बल्कि थोडे समय के लिए आराम देता है.

कच्चे काले चमकते तेल से इलाज़ करवाने के लिए कई लोग तीन हज़ार किलोमीटर का सफ़र करके भी यहां आते हैं. टब में बैठने के बाद कम से कम तीन दिन तक मरीज़ के पसीने से तेल निकलता है.

जो चिकित्सक और शोधकर्ता नैफ्थेलान ऑइल के शोध में लगे हुए हैं उन्हें इसमें इलाज़ की असीमित संभावनाएं दिखाई देती हैं जिसे समझने और बाज़ार में लाए जाने की ज़रूरत है.

Kaspisches Meer Aserbaidschan
तस्वीर: AP

नैफ्थेलान ऑइल के बारे में सबसे पहली जानकारी 6ठीं शताब्दी में मिली थी जब कारवां का एक ऊंट इन कुओं में नहा कर और धूप में बैठ कर ठीक हो गया था. उसके बाद ग्यारहवीं शताब्दी में अज़रबैजान के कवि और दार्शनिक निज़ामी गंजवी ने इन तेल कुओं के चिकित्सकीय गुणों के बारें में लिखा था. इसके बाद मार्को पोलो ने अपने यात्रा वृत्तांत में इस तेल के बारे में लिखा था. इसके बाद अठारह सौ नब्बे में एक जर्मन इंजीनियर इ आई एग्गर को इसके चिकित्सकीय गुणों के बारे में स्थानीय लोगों ने बताया. इसके बाद इसे कुछ कॉस्मेटिक उत्पादों को नर्म बनाने के लिए पैरिस में इसका उपयोग किया जाता था लेकिन सीधे तेल में स्नान अब भी सिर्फ़ अज़रबैजान में ही होता है.

रिपोर्टः आभा मोंढे

संपादनः राम यादव