कंप्यूटर के कबाड़ से कबाड़ा
२३ फ़रवरी २०१०बिजली से चलने वाले ख़राब उपकरणों से जमा होने वाले कबाड़े के लिए एक नए शब्द का इस्तेमाल हो रहा हैः ई-वेस्ट या इलैक्ट्रॉनिक कूड़ा. इसमें कंप्यूटर के अलावा टेलीविज़न, फ्रिज, प्रिंटर, टेलीफ़ोन और कई घरेलू उपकरण शामिल हैं. हर साल विश्व भर से 4 करोड़ टन ई-वेस्ट पैदा होता है. ख़तरा इससे तब पैदा होता है जब कूड़े का हिस्सा बने इन ख़राब उपकरणों को जला कर सोना और तांबा जैसी क़ीमती धातुएं बरामद करने की कोशिश की जाती है.
संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूनेप) के कार्यकारी निदेशक आख़िम श्टाइनर ने कहा है कि इस रिपोर्ट में ई-वेस्ट के व्यवस्थित तरीक़े से निपटारे पर ज़ोर दिया गया है. चीन के अलावा भारत, ब्राज़ील, मोक्सिको और कई और देशों में ई-वेस्ट की वजह से पर्यावरण को नुक़सान पहुंच सकता है और अगर इसे कूड़ा जमा करने वालों के हवाले किया जाए तो स्वास्थ्य के लिए भी हानिकारक हो सकता है.
यूनेप के साथ स्विट्ज़रलैंड की संस्था ईएमपीए, यूमीकोर कंपनी और संयुक्त राष्ट्र विश्वविद्यालय ने भी इस रिपोर्ट पर काम किया है. उनका मानना है कि दुनिया में सबसे ज़्यादा सालाना 30 लाख टन ई-वेस्ट अमेरिका में पैदा होता है. दूसरे स्थान पर 23 लाख टन के साथ चीन है. कंप्यूटर ही नहीं, सेलफ़ोन का भी ई-वेस्ट में बहुत बड़ा योगदान है. चीन में 2007 के मुक़ाबले 2020 में लगभग 7 गुना ज़्यादा सेलफोन कबाड़ा पैदा होगा जब कि भारत में यह आंकड़ा 18 गुना के क़रीब होगा.
इंडोनेशिया के पर्यावरण मंत्री गुस्ती मोहम्मद हाता ने कहा है कि ख़तरनाक ई-वेस्ट की तस्करी से उनके देश को ख़तरा है. ग़ैर सरकारी संस्था बासेल ऐक्शन नेटवर्क के जिम पकेट के मुताबिक़, "हाल ही में अमेरिका से एक जहाज़ इंडोनेशिया भेजा गया. इसमें टेलीविज़न के पुराने ट्यूब और कंप्यूटरों के स्क्रीन भरे थे. यह सब ऐसी चीज़ें हैं जिन्हें लोग अब नहीं चाहते क्योंकि आजकल फ़्लैटस्क्रीन का ज़माना है."
रिपोर्ट में इस तरह के आंकड़े तो हैं लेकिन समस्या को सुलझाने के लिए भी सुझाव पेश किए गए हैं. अगर ग़रीब देशों से बैटरी और बिजली की तारें और सर्किट बोर्ड विकसित देशों को भेजे जाते हैं तो इन्हें वहां संभाला जा सकता है. संयुक्त राष्ट्र विश्वविद्यालय के कॉनराड ओस्टरवाल्डर का कहना है कि अगर इस तरह के कूड़े का ठीक तरह निपटारा किया जाए तो फ़ायदा हो सकता है. इस दिशा में राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर क़ानून बनाए जाएं, तो नई नौकरियां भी पैदा हो सकती हैं.
रिपोर्टः रॉयटर्स/ एम गोपालकृष्णन
संपादनः ए कुमार