कंप्यूटर की क्लिक पर रिश्तों की बहार
१ मार्च २००९शादी से जुडी वेबसाइटों ने तो जीवन साथी चुनने का काम ही आसान बना दिया है. बस बटन दबाइये और आपके सामने आ जाता हैं सैकड़ों लोगों का ब्यौरा जिसमें से आप अपनी पसंद के व्यक्ति को चुन सकते हैं. भारत में आज ऐसी लगभग सौ वेबसाइटें चल रही हैं. इनमें शादी डाट काम और भारत मैट्रिमनी डाट कॉम सबसे लोकप्रिय हैं. शादी डाट काम की कामयाबी का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इस पर एक करोड़ लोग रजिटर्ड हैं.
इन बड़ी साइटों के अलावा हाल ही में कुछ ऐसी छोटी छोटी साइटों का भी चलन बढ़ा है जो कि समाज के विभिन्न वर्गों की अलग अलग ज़रूरतों को ध्यान में रखकर बनाई गई हैं. नई दिल्ली स्थित स्ट्राइकवन एडवरटाइजिंग ने ऐसी कई साइटें 2006 में शुरू कीं. मिसाल के तौर पर थट्टी प्लस शादी डाट काम नाम की एक साइट तीस की उम्र पार कर चुके लोगों के लिए ख़ासकर बनाई गई है. इस साइट के ज़रिए ऐसे लोग अपना हमउम्र तलाश कर विवाह के बंधन में बंध सकते हैं.
इसके अलावा कॉल सेंटर में काम करने वालों के लिए बीपीओ शादी डॉट कॉम नाम की एक साइट भी शुरू की गई है. भारत में पिछले चार पांच सालों से कॉल सेंटरों का चलन बढ़ा है. चूंकि वहां काम करने वाले लोग विदेशी ग्राहकों के संपर्क में रहते हैं, उन्हें अकसर रात को काम करना पड़ता है. इसीलिए वे ऐसा जीवन साथी चाहते हैं जिसका रहन सहन उनसे मिलता जुलता हो.
स्ट्राइकवन एडवरटाइजिंग के सीईओ संजीव पाहवा विस्तार से समझाते हैं, " जब हमने बाज़ार का विश्लेषण किया, तो मालूम हुआ कि बड़ी साइटें मार्केट में खूब नाम कमा रही हैं. हमें लगा कि अगर हम उनको सीधी टक्कर दिए बिना कुछ अलग तरीक़े की ऐसी साइटें शुरू करें जो लोगों की की अलग अलग ज़रूरतों को पूरा कर सकें, तो हम भी मार्केट में अपनी साख बना सकते हैं.''
शादी की इन वेबसाइटों का मक़सद सिर्फ़ मुनाफ़ा कमाना नहीं है. कुछ ऐसी वेबसाइटें भी हैं जो समाज सुधार की कोशिश में लगी हैं. पॉजिटिव साथी डाट काम नाम की एक ऐसी ही अनूठी साइट एचआईवी पॉजिटिव लोगों के लिए बनाई गई है. ऐसे लोगों को अकसर समाज की उपेक्षा झेलनी पड़ती है. यह साइट इन लोगों को संपर्क का एक माध्यम देती है, ताकि वे भी वैवाहिक जीवन का आनंद उठा सकें. इस साइट की शुरूआत 2008 में महाराष्ट्र के अनिल कुमार वलीव ने की थी जो सरकारी सेवा में हैं. वलीव को इस साइट को शुरू करने की प्रेरणा अपने एक एचआईवी पॉजिटिव दोस्त के जीवन के अनुभवों से मिली थी.
भारतीय संस्कृति में विवाह हमेशा से एक सामाजिक आयोजन रहा है. ऐसे में आज भी शादी चाहे इंटरनेट से तय हो या पारंपरिक तरीक़े से, जीवन साथी चुनने में मां बाप की अहम भूमिका ज्यों की त्यों बनी हुई है. दिल्ली स्थित कॉल सेंटर कर्मचारियों राहुल और मेघना के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ. दोनों बीपीओ शादी के ज़रिए विवाह सूत्र में बंधे. दोनों ने एक दूसरे को पसंद ज़रूर किया लेकिन शादी की सारी बातचीत मां बाप ने ही की. अपनी और मेघना की मुलाक़ात को राहुल कुछ इस तरह बयान करते हैं, " दरअसल मैंने रेडियो पर बीपीओ शादी डॉट कॉम के बारे में सुना. फिर मैंने इस साइट पर लॉग इन किया और अपना प्रोफ़ाइल बनाया. काफ़ी प्रोफ़ाइलों को देखने के बाद मुझे मेघना का प्रोफ़ाइल पसंद आया. बस मैंने दिलचस्पी ज़ाहिर की और फिर मां बाप ने शादी की सारी बातचीत की."
इन इंटरनेट साइटों ने भारत में विवाह के पारंपरिक स्वरूप को तो नहीं बदला है लेकिन आज के युवक युवतियों को विवाह सूत्र में बंधने के पहले एक दूसरे को जानने समझने का एक मंच ज़रूर दे दिया है.