ओमान की खाड़ी में अब नहीं रहना चाहती मछलियां
१६ मार्च २०१७एल्गी का अध्ययन कर रहे वैज्ञानिकों के मुताबिक इन सूक्ष्म जीवों के लिये जलवायु परिवर्तन बेहद फायदेमंद साबित हो रहा है. लेकिन एल्गी यानि शैवालों की यह वृद्धि स्थानीय खाद्य श्रृंखला को प्रभावित कर सकती है. एल्गी के इस फैलाव को समुद्री जीवन के लिये खतरा माना जा रहा है.
ओमान यूनिवर्सिटी में समुद्र जीवविज्ञानी खालिद अल-हाशमी बताती हैं कि 30 साल पहले तक ओमान की खाड़ी में एल्गी नजर भी नहीं आती थीं लेकिन अब इनका आकार इतना बढ़ गया है कि इन्हें उपग्रहों से भी देखा जा सकता है.
एल्गी की यह वृद्धि पूरे पारिस्थितिकी तंत्र को प्रभावित कर रही है. मछलियों और अन्य जीवों को ऑक्सीजन की कमी महसूस हो रही है क्योंकि एल्गी ऑक्सीजन सोखती हैं. पिछले कुछ समय में एल्गी के विषाक्त पदार्थों के चलते अटलांटिक और प्रशांत महासागरीय क्षेत्रों में व्हेल मछलियां, कछुए और अन्य जीवों की जान चली गयी है. यूएन साइंस एजेंसी के मुताबिक विषैले पदार्थ समुद्री खाद्य श्रृंखला में घुसपैठ कर चुके हैं और कुछ मामलों में यह इंसानी जीवन के लिये भी खतरा साबित हुये हैं.
उत्तरी अमेरिका, थाईलैंड और सेशेल्स की झीलों में ये शैवाल हरे रंग के हैं. फ्लोरिडा में लाल, उत्तरी अटलांटिक में ये चॉक की तरह सफेद हैं, तो अमेरिका के पुगेन साउंड में नारंगी हैं. आयरिश भाषा में इसे "समुद्री भूत" कहा जाता है, और ताइवान में इसके फूलों को "नीले आंसू (ब्लू टियर्स)" कहते हैं.
अमेरिकी स्पेस एजेंसी में काम करने वाली पाउला बोंटमपी कहती हैं कि नासा इन शैवालों पर उपग्रह के जरिये नजर बनाये हुये हैं. उन्होंने बताया कि ये देखने में सुंदर नजर आते हैं लेकिन कुछ झीलों में इनके कारण बहुत बुरी गंध आती है.
कोलंबिया यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों के मुताबिक ओमान के इन शैवालों के अंश हिमालयी क्षेत्रों में भी पाये हैं. अल-हाशमी और अन्य वैज्ञानिकों के मुताबिक अरब सागर में भी ऐसे शैवाल देखे गये हैं. एक अन्य समुद्र विज्ञानी ने बताया कि पहले ये शैवाल धीरे धीरे बढ़ते थे और इन्हें दसियों साल लग जाते थे, लेकिन अब देखते ही देखते यह काफी बढ़ते जा रहे हैं.
शैवालों का फैलाव ओमान के समुद्री कारोबार, खासकर मछली-पालन, को भी प्रभावित कर सकता है. साथ ही गोताखोरों को भी इससे समस्या हो सकती है. देश में जिन पाइपों के जरिये पानी रिफाइन करके भेजा जाता है शैवाल उन पर भी असर डाल सकते हैं.
गोताखोरों के प्रशिक्षक ओली क्लार्क ने बताया कि इन शैवालों से शार्क और व्हेल जैसी बड़ी और खतरनाक मछलियां आकर्षित होती है इसलिये अब पर्यटक भी यहां आने से कतरा रहे हैं.
शोधकर्ताओं ने इसके खतरे को कम करने के लिये कुछ तरीके भी सुझाये हैं लेकिन कुछ विशेषज्ञ ये भी मान रहे हैं कि जितना नुकसान होना था हो चुका है. मछलियां ऑक्सीजन की कमी के चलते या तो मर चुकी हैं या किसी और जगह का रुख कर रही हैं.
एए/आरपी (एपी)