ओपेल: खराब किस्मत की मारी, बढ़िया गाड़ी
भारतीय कार ब्रांड एम्बैसडर को खरीदने के बाद फ्रांसीसी कंपनी अब जर्मन कार ओपेल को खरीदना चाहती है. एक नजर ओपेल के सिलाई मशीन से कार बनाने तक के सफर पर.
सिलाई से साइकिल तक
जर्मन कस्बे रोसेल्सहाइम के स्थानीय निवासी आडम ओपेल ने अपने कारोबार की शुरुआत सिलाई मशीन बनाने से की. लेकिन उनके पांच बेटे पिता से लगातार साइकिल बनाने की जिद करते रहे. बच्चों की इच्छा मानते हुए आडम ओपेल ने साइकिलें बनाना शुरू किया.
पहली कार
साइकिल निर्माण शुरू होने के कुछ ही साल बाद 1895 में आडम ओपेल ने दुनिया को अलविदा कह दिया. इसके बाद उनके बेटों ने कार बनाना शुरू किया. 1899 में बग्घी जैसी दिखती कार लॉन्च की गई. इसके साथ ही ओपेल मर्सिडीज के बाद जर्मनी की दूसरी कार कंपनी बन गई.
पहला बड़ा मुकदमा
19वीं शताब्दी के अंत में ओपेल ने मेंढक जैसी दिखने वाली कार बनाई. इसका मॉडल फ्रांसीसी कंपनी सिट्रॉन 5CV से मिलता था. सिट्रॉन ने ओपेल पर मुकदमा कर दिया. दोनों कंपनियों के मॉडल में सिर्फ रंग का फर्क था. सिट्रॉन पीली थी तो ओपेल हरी. यह जर्मनी में बनाई जाने वाली पहली कार थी.
सफलता के बाद झटका
1928 में ओपेल जर्मनी की सबसे बड़ी कार कंपनी बन गई. बाजार में उसकी हिस्सेदारी 44 फीसदी थी. लेकिन 1929 की विश्वव्यापी मंदी ने ओपेल की हालत खस्ता कर दी. कंपनी ने बड़ी हिस्सेदारी अमेरिकी कंपनी जनरल मोटर्स को बेच दी. जीएम ने प्रोडक्शन में इजाफा किया.
जबरदस्त ट्रक
1930 में ओपेल ने पिकअप ट्रक ब्लित्ज (कड़कती बिजली) का प्रोडक्शन शुरू किया. फोर व्हील ड्राइव वाला यह ट्रक जर्मन सेना का सबसे अहम वाहन बन गया. इसके साथ ही कंपनी का लोगो भी बदला, यह लोगो आज भी ओपेल की पहचान है.
कैप्टन
ओपेल को सबसे ज्यादा सफलता अपनी "कैप्टन" नाम की कार से मिली. 1938 से 1969 तक यह कार बनाई गई. इसमें मर्सिडीज जैसी सारी सुविधाएं थीं. लेकिन यह मर्सिडीज के मुकाबले सस्ती थी.
घर घर ओपेल
1970 के दशक में आई ओपेल रेकॉर्ड भी दुनिया भर में काफी मशहूर हुई. इस कार ने कंपनी की इमेज भी चमकायी. ओपेल आम लोगों के लिए भरोसेमंद कार बनाने वाली कंपनी कहलाई जाने लगी.
मांटा
1970 में स्पोर्ट्स कारें लोकप्रिय होने लगीं. रफ्तार के रिकॉर्ड बनने लगे. ओपेल ने इस बाजार में मांटा के साथ छलांग लगाई. इस कार पर बहुत चुटकुले भी बने, लेकिन हंसी मजाक के बावजूद ओपेल ने 10 लाख से ज्यादा मांटा बेचीं.
नया बाजार
1996 में ओपेल भारतीय बाजार में सीधे आने वाली पहली जर्मन कार बनी. फिल्म स्टार से लेकर नामी लोग ओपेल कोर्सा और एस्ट्रा के ग्राहक बने. लेकिन जर्मनी में आई कारोबारी मुश्किल के चलते कोर्सा का उत्पादन बंद हो गया. पार्ट्स भी मुश्किल से मिलने लगे. बढ़िया शुरुआत के बावजूद ओपेल एक बार फिर नाकाम हो गई.
आगे क्या
एक बार मंदी के चलते बिकने वाली ओपेल अब घाटे के कारण बिकने को तैयार है. जनरल मोटर्स भी अब ओपेल को सेल्स की पार्किंग में खड़ा कर चुका है. ओपेल के भविष्य के साथ कई भावनाएं भी अधर में हैं.