1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

ऑस्ट्रेलिया की विदेश नीति में भारत अहम या चीन?

विवेक कुमार, सिडनी से
२७ नवम्बर २०१७

ऑस्ट्रेलिया ने विदेश नीति पर इस साल अपने श्वेत पत्र में अपनी प्राथमकिताओं को पेश किया है. इसमें किसको कितनी जगह मिली, जानिए.

https://p.dw.com/p/2oKIM
Bildergalerie Australien Homoehe Referendum Malcolm Turnbull
तस्वीर: Getty Images/S. Postles

पहले इंडोनेशिया और भारत के साथ ऑस्ट्रेलिया की तिकोनी व्यापारिक संधियों की कोशिश और फिर भारत, जापान और अमेरिका के साथ मिलकर चौकोर गठबंधन का प्रयास विदेश नीति पर ऑस्ट्रेलिया के श्वेत पत्र के जारी होने से पहले बड़े संकेत के रूप में दिखाई दे रहे थे.

ऑस्ट्रेलिया का इतना पेचीदा संकट कि मजाक बन गया

आतंकवाद समेत कई मुद्दों पर भारत-ऑस्ट्रेलिया के बीच समझौता

श्वेत पत्र के जारी होने से ऐन पहले इन दोनों घटनाओं का होना और दोनों ही में भारत की मौजूदगी से लगा था कि ऑस्ट्रेलिया की विदेश नीति में भारत की भूमिका और अहमियत पहले के मुकाबले ज्यादा हो सकती है. लेकिन श्वेत पत्र ऐसा कोई वादा नहीं करता. ऐसी कोई संभावना अगर नजर आती भी है तो फिलहाल संकेतमात्र ही क्योंकि 2017 का ऑस्ट्रेलिया का श्वेत पत्र चीन केंद्रित ही है. चीन ऑस्ट्रेलिया का सबसे बड़ा व्यापारिक सहयोगी है. 2016 में 62 अरब डॉलर के आयात और 93 अरब डॉलर के निर्यात वाले ऑस्ट्रेलिया का यह बड़ा व्यापारिक साझीदार ही उसकी विदेश नीति के केंद्र में दिखता है.

अगर भारत तस्वीर में कहीं है भी तो इतना ही कि ऑस्ट्रेलिया अपने बाकी विकल्प खुले रखना चाहता है ताकि चीन को किसी तरह का गुमां ना हो जाए. श्वेत पत्र को पढ़कर यह अहसास होता है कि लिखते वक्त कैनबरा के नौकरशाहों के जहन में एक झिझक रही होगी कि कहीं चीन नाराज ना हो जाए लेकिन ऑस्ट्रेलिया कमजोर भी नजर न आये. भारत का जिक्र आसियान, इंडोनेशिया, दक्षिण पूर्व एशिया, जापान या अमेरिका के साथ ही आता है.

"ऑस्ट्रेलिया में आईएस का संकेत नहीं"

श्वेत पत्र कहता है कि 2016 में आसियान देशों के साथ ऑस्ट्रेलिया का व्यापार देश के दूसरे सबसे बड़े व्यापारिक सहयोगी अमेरिका से ज्यादा रहा. इंडो-पैसिफिक इलाके में ऑस्ट्रेलिया अपना व्यापार फैलाना चाहता है. वह इंडोनेशिया, भारत और अन्य देशों के साथ नये समीकरण तलाश रहा है. लेकिन इस तलाश में ऑस्ट्रेलिया भारत का नाम पूरी ताकत के साथ नहीं लेता, सिर्फ जिक्र भर करता है. "अगले 15 सालों में क्रय शक्ति के लिहाज से दुनिया की सबसे बड़ी पांच अर्थव्यवस्थाओं में से चार एशिया में होंगी- चीन, भारत, जापान और इंडोनेशिया. एक अनुमान है कि 2030 तक 3.5 अरब मध्यवर्गीय लोग इसी इलाके में होंगे और उन्हें ऑस्ट्रेलिया से निर्यात की जरूरत होगी."

ऑस्ट्रेलिया को इस बात का अहसास भी है कि वैश्विक व्यवस्था बदल रही है और अमेरिका की भूमिका पहले से कमजोर हो सकती है और चीन की भूमिका पहले से बढ़ सकती है. और इसे श्वेत पत्र में स्पष्टता से कहा भी गया है. एक जगह पत्र कहता है, "सरकार इस बात को समझती है कि अमेरिका के भीतर ही वैश्विक नेतृत्व की अपनी भूमिका के फायदे-नुकसान पर बहस हो रही है."

एक अन्य जगह चीन की बढ़ती भूमिका को स्पष्टता से रखा गया है. "शक्तिशाली कारक इस तरह मिल रहे हैं कि इंटरनैशनल ऑर्डर बदल रहा है और ऑस्ट्रेलिया के हितों को चुनौती मिल रही है. द्वितीय विश्व युद्ध के बाद से अमेरिका हमारे क्षेत्र में प्रभावशाली शक्ति रहा है लेकिन अब चीन उसे चुनौती दे रहा है."

लेकिन इस बदलाव में ऑस्ट्रेलिया को अपनी भूमिका तलाशने में उलझन हो रही है. बदलाव के इस दौर में वह पूरा दांव एक ही घोड़े पर लगाने के बजाय रेस के हर घोड़े पर दांव का थोड़ा थोड़ा हिस्सा लगाए रखना चाहता है ताकि फायदा ना हो तो नुकसान भी ना हो. और इस पूरे परिप्रेक्ष्य में भारत में उसके लिए रेस के एक घोड़े से ज्यादा है, ऐसा श्वेत पत्र से तो नहीं लगता.