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एर्दोवान नहीं होने देंगे जर्मन-तुर्क पत्रकार यूचेल को रिहा

१४ अप्रैल २०१७

तुर्क राष्ट्रपति रेचेप तैयप एर्दोवान ने कहा है कि जैसे जर्मनी उसके नागरिकों को उसे नहीं सौंप रहा है वैसे ही वे पत्रकार डेनिस यूचेल को नहीं छोड़ेंगे. रेफरेंडम में जीत के बाद और ताकतवर हो जाएंगे एर्दोवान.

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Deutschland Mahnwache für Deniz Yücel in Flörsheim
तस्वीर: picture-alliance/dpa/A. Dedert

जर्मन-तुर्क पत्रकार डेनिस यूचेल को हनीमून मनाने के लिए अभी लंबा इंतजार करना पड़ सकता है. जर्मन दैनिक "डी वेल्ट" में काम करने वाले यूचेल की नयी नयी शादी हुई थी. उन्हें फरवरी के मध्य से ही तुर्की में बंदी बनाकर रखा गया है. तुर्क राष्ट्रपति रेचेप तैयप एर्दोवान ने साफ साफ कहा है कि उनके सत्ता में रहते तो यूसेल कभी रिहा नहीं किये जाएंगे.

इस्तांबुल शहर में टीवी चैनल टीजीआरटी को दिये इंटरव्यू में एर्दोवान ने यूचेल को जर्मनी वापस भेजने की संभावना पर कहा, "जब तक मैं सत्ता में हूं, कभी नहीं." अपने इस फैसले का कारण एर्दोवान ने जर्मनी के एक कदम को बताया. हाल ही में जर्मनी ने अपने यहां आतंकवाद के आरोप में पकड़े गये कुछ तुर्की नागरिकों को तुर्की को ना लौटाने के फैसले को अपने रुख की वजह बताया. जर्मन सरकार कई बार यूचेल को तुरंत मुक्त किए जाने की मांग कर चुकी है. उन्हें बंदी बनाये जाने के कारण जर्मनी और तुर्की में तनाव काफी गहरा गया है.

तुर्क राष्ट्रपति ने यूचेल पर लगाये गए आरोपों को दोहराते हुए कहा कि उसके प्रतिबंधित कुर्दिस्तान वर्कर्स पार्टी (पीकेके) के साथ संबंध थे. एर्दोवान ने इस बात के प्रमाण के तौर पर कुछ ऐसी तस्वीरें मिलने की बात कही, जिससे साफ होता है कि वह पत्रकार एक "एजेंट" और "आतंकवादी" है. हालांकि इस आरोप को साबित करने वाले ऐसे किसी सबूत को एर्दोवान या तुर्की के जांच अधिकारियों ने पेश नहीं किया है.

यूचेल को पीकेके के समर्थन में आतंकी प्रोपेगैंडा करने और घृणा फैलाने के आरोप में पकड़ा गया है. उन पर प्रतिबंधित इस्लामिक मौलवी फेतुल्ला गुलेन से भी जुड़े होने का आरोप है, जिन्हें एर्दोवान जुलाई 2016 में उनका तख्तापलट करने की साजिश रचने वाला मास्टरमाइंड मानते हैं. उस असफल तख्तापलट के बाद से एर्दोवान ने देश में यूचेल समेत करीब 150 पत्रकारों को जेल में डाल दिया.

तुर्की में 16 अप्रैल को एक जनमत संग्रह में यह फैसला होगा कि जनता देश में राष्ट्रपति शासन व्यवस्था चाहती है या नहीं. इस मुद्दे पर मतदाताओं की सहमति मिलने से राष्ट्रपति के रूप में एर्दोवान की शक्तियां और बढ़ जाएंगी और वे केवल राष्ट्र प्रमुख ही नहीं सरकार प्रमुख भी बन जाएंगे. आलोचकों को लगता है कि ऐसा होने से तुर्की में तानाशाही व्यवस्था आ जाएगी.

क्रिस्टीना बुराक/आरपी