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एक ही साल में कितना बदल गया जर्मनी

वेरिचा स्पासोव्स्का/एमजे१ सितम्बर २०१६

जर्मनी विभाजित है. पहले की ही तरह बहुत से लोग मैर्केल के कहे वाक्य हम कर लेंगे का समर्थन करते हैं, लेकिन चांसलर की शरणार्थी नीति की आलोचना बढ़ रही है. वेरिचा स्पासोव्स्का का कहना है कि एक साल में जर्मनी बदल गया है.

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Deutschland Bundeswehr bildet Flüchtlinge aus Von der Leyen mit einem Flüchtling aus Syrien
तस्वीर: Getty Images/AFP/C. Stache

कई सारी चीजें हैं जो जर्मनी में पिछले एक साल में बदल गई हैं. सबसे पहले नकारात्मक बातें. जर्मनी में नस्लवाद बढ़ा है. अति दक्षिणपंथी पार्टी एएफडी जो शरणार्थी संकट से पहले समर्थन खो रही थी, जर्मनों के डर से फायदा उठा रही है. इस बीच सर्वेक्षणों में उसे 15 प्रतिशत का समर्थन मिल रहा है. पिछले संसदीय चुनाव के समय उसे 5 प्रतिशत मत नहीं मिले थे और वह संसद में नहीं पहुंच पाई थी. अब स्थिति बदल गई है. विदेशियों से द्वेष जर्मनी में स्वीकार्य हो चला है.

हालांकि इस तथ्य को यूरोपीय तुलना में देखा जाना चाहिए. फ्रांस और बुल्गारिया में अतिदक्षिणपंथी पार्टियां 20 प्रतिशत मतों के साथ संसद में हैं. हंगरी और पोलैंड में वे सरकार चला रही हैं. ब्रिटेन में विदेशी विरोधी पार्टी यूकिप ने देश के यूरोपीय संघ से बाहर निकलने की चिंगारी भड़काई. अत्यंत राष्ट्रवादी पूर्वी यूरोपीय देशों की तुलना में जर्मनी अभी भी राजनीतिक मध्यमार्ग और स्थिरता का गढ़ है.

चांसलर के साथ जर्मनों के रिश्ते बदल गए हैं. उनकी लोकप्रियता का ग्राफ नीचे आ गया है. बहुत से जर्मनी शरणार्थी संकट के समाधान से असंतुष्ट हैं. दूसरी ओर सत्ताधारी यूनियन पार्टियों का ग्राफ स्थिर है. विदेश नीति में चांसलर की छवि अभी भी अच्छी है. भले ही बहुत से देशों में उनकी शरणार्थी नीति का समर्थन न होता हो, ब्रेक्जिट जैसे निर्णायक मुद्दों पर उनकी बात मायने रखती है. शरणार्थियों के साथ हमदर्दी की सिर्फ अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा जैसे नेता ही तारीफ नहीं करते, उन्हें अफ्रीका और मध्यपूर्व के लोगों का भी समर्थन मिल रहा है. क्योंकि जर्मनी मुश्किल में फंसे लोगों को देश के अंदर आने दिया है.

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वेरिचा स्पासोव्स्का

शरणार्थियों के प्रति जर्मनों का रवैया बदल गया है. हमदर्दी और मदद के शुरुआती दौर के बाद मोहभंग का दौर आया है. नए साल की रात महिलाओं पर हुए हमलों और अंसबाख और वुर्त्सबुर्ग में इस्लाम प्रेरित हमलों से लोगों में इस्लामी आतंक का डर पैदा हुआ है. हालांकि दोनों हमलावर सीमा खोले जाने से पहले ही जर्मनी आ गए थे और कोलोन में नए साल की रात हमला करने वाले कम ही लोग शरणार्थी के रूप में जर्मनी आए थे.

आज हमें ये भी पता है कि इस्लामी कट्टरपंथियों ने शरणार्थियों की अनियंत्रित लहर का यूरोप आने के लिए फायदा उठाया है. लेकिन यदि सीमा बंद रही होती तो लाखों जरूरतमंद लोगों की मदद नहीं हो पाती.

सारी असुरक्षा के बावजूद पिछले साल सर्दियों में जर्मनी में दिखी मदद की तैयारी आज भी महसूस होती है. जर्मन लोग जहां संभव है मदद कर रहे हैं. वे शरणार्थी बच्चों को जर्मन सिखा रहे हैं, नाबालिग शरणार्थियों को अपने घर पर रख रहे हैं, या फिर नौकरी खोजने में मदद दे रहे हैं. हजारों नागरिकों के अवैतनिक काम के बिना बहुत कुछ इतना संगठित नहीं होता. जर्मनी में किसी शरणार्थी को सड़क पर नहीं सोना पड़ा. जर्मनी आए ज्यादातर शरणार्थियों की हालत पहले से बेहतर है. मुश्किलजदा लोगों को खुले दिल से शरण देने को जर्मनी कामयाबी का सबूत मान सकता है.

लेकिन असली चुनौती बाकी है. शरणार्थियों को शरण देने वाले समाज को उन्हें समाज में समाहित करने के कदम भी उठाने होंगे ताकि बच्चों को स्कूल में दाखिल किया जा सके और बड़ों को नौकरी दिलायी जा सके. इसके लिए धन की जरूरत है और उसकी वजह से डाह की स्थिति पदा हो रही है जो सामाजिक समरसता को नुकसान पहुंचा सकती है.

लेकिन साथ ही शरणार्थी संकट समाज के मूल्यों का आत्मविश्वास के साथ प्रतिनिधित्व करने का मौका भी है. ये स्वाभाविक होना चाहिए कि यहां रहने वाले शरणार्थी जर्मन सीखें, लोकतांत्रिक समाज के मूल्यों का आदर करें, संविधान को बाइबल, कुरान तथा दूसरे पवित्र ग्रंथों से ऊपर रखें और पुरुषों और महिलाओं की समानता को मानें. कानून तोड़ने वालों को तुरंत सजा मिलनी चाहिए और अपराधी विदेशियों को जल्द से जल्द वापस भेजा जाना चाहिए.

हां, शरणार्थी संकट ने जर्मनों को अपने आरामदेह कोने से बाहर खींच लिया है और उनसे बहुत सारी मांगें कर रहा है. वह उनके सामने नई चुनौती पैदा कर रहा है, लेकिन नए मौके भी दे रहा है. अच्छी बात ये है कि संस्कृतियों की बहुलता में भारी क्षमता छिपी है, शर्त ये है कि हमें शरणार्थियों को यह अहसासा देने में सफलता मिले कि वे समाज का हिस्सा हैं. तभी वे समाज में सकारात्मक योगदान दे पाएंगे. अकेले वह राशि जो शरणार्थी अपने घर भेज रहे हैं, वह उससे कहीं ज्यादा है जो जर्मनी विकास सहायता के रूप में दे रहा है. यदि जर्मन शरणार्थियों को समस्या की तरह नहीं देखेंगे, और जब पाएंगे कि एकजुटता समाज को ताकत देती है, तब हम कभी बोल पाएंगे, अच्छा है कि जर्मनी बदल गया है.