एक बेटी की यादें-फ़ातिमा भुट्टो
१६ अप्रैल २०१०एक कहानी, जो मेहनत, अपने देश के लिए प्रेम और अनुशासन, भ्रष्टाचार, साज़िशों और सत्ता में रहने के लिए लालच के साथ जुडी हुई है.
ऐतिहासिक घराना
उनके दादा जुल्फ़िकार अली भुट्टो पाकिस्तान के मशहूर राजनेता और देश के प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति रहे हैं. उनकी बुआ बेनजीर भुट्टो दो बार पाकिस्तान की प्रधानमंत्री बनीं. उनके पिता मुर्तजा भुट्टो, जिनकी हत्या अपनी बहन बेनजीर के शासनकाल में ही कर दी गई. यह बात है 27 साल की फ़ातिमा भुट्टो की. उनका नाता है, उस भुट्टो परिवार से, जिसका रुतबा पाकिस्तान में ठीक वैसा ही है जैसे भारत में गांधी नेहरू परिवार का. पिछले दिनों ही फ़ातिमा की तीसरी किताब आई है- सॉन्ग्स ऑफ ब्लड ऐंड स्वोर्ड - एक बेटी की यादें. और इस किताब में फातिमा ने अपने अद्भुत खानदान के किस्से बयान किए हैं. इनमें मेहनत, अपने देश के लिए प्यार, अनुशासन, भ्रष्टाचार, राजनीतिक साज़िशें और सत्ता में रहने के हथकंड़े, सभी कुछ शामिल है.
प्रभावी व्यक्तित्व
लेखक, कवि और पत्रकार. और योग की शौकीन भी. पाकिस्तान और दुनिया की हलचलों पर रखती हैं पैनी नजर. साथ ही अत्याचारों के खिलाफ भी वह करती हैं अपनी आवाज़ बुलंद - फ़ातिमा भुट्टो के कई रूप हैं. पतली दुबली, कभी जीन्स में तो कभी सलवार कमीज़ में नजर आने वाली फातिमा बहुत खूबसूरत हैं, हालांकि वो फैशन या मेक-अप पर ज़्यादा ध्यान नहीं देतीं. काबुल में 1982 में जन्मी फातिमा ने अमेरिका और लंदन में अपनी पढ़ाई डिस्टिंकशन से पूरी की.
पिताजी के करीब
फ़ातिमा अपने पिता के बहुत करीब थीं. इतना कि जब वो सुबह शेविंग करने या मुंह हाथ धोने जाते थे, तब भी फ़ातिमा उनके पीछे पीछ जाती थीं.
जिस तरह से भारत में गांधी परिवार की छोटी बहू मेनका गांधी और उनके बेटे वरुण गांधी ने भी सोनिया गांधी और उनके बच्चे राहुल और प्रियंका से अलग होकर अपना एक रास्ता चुना, उसी तरह फातिमा को भी भुट्टो परिवार की राजनीतिक विरासत से अलग एक रास्ता अपनाना पड़ा. वो तो बेनज़ीर पर कई संगीन आरोप लगाती रही हैं.
फ़ातिमा की पहली की दो किताबें, विस्पेर्स ऑफ ड डेसर्ट और 8.50 एऐम 8 अक्टूबर 2005 को लोगों ने खूब पसंद किया. अब उनकी नई किताब सॉन्ग्स ऑफ ब्लड ऐंड स्वोर्ड पर दुनिया की नज़रें टिकी हैं. फ़ातिमा उस दिन को याद करती हैं जब वो 14 साल की थी. 20 सितंबर 1996 की रात को, जब अपने ही घर के सामने उनके पिता की खुलेआम हत्या कर दी गई. " मेरे पिताजी संसद के चुने हुए सदस्य थे. वे बेनाज़ीर के छोटे भाई थे लेकिन उन्हीं की पुलिस ने 1996 में मेरे पिता की हत्या की. यह बेनज़ीर के दूसरे शासनकाल की बात है. इस घटना को दबाने में बेनजीर ने काफी सक्रिय भूमिका निभाई. मेरे पिताजी को कई गोलियां लगीं. वह बच सकते थे. लेकिन आखरी गोली बहुत करीब से उनकी गर्दन पर दागी गई. यानी उनकी हत्या की गई. और फिर उन्हें और उनके छह साथियों को यूं ही सड़क पर छोड़ दिया और उनका खून बहता रहा."
बेनाज़ीर पर आरोप
फ़ातिमा बताती हैं उस वक्त इस घटना की जांच के लिए जो विशेष अदालत बनाई गई, उसने भी माना कि पुलिस ने हद से कई गुना ज़्यादा क्रूरता दिखाई. वैसे यह अदालत बेनज़ीर के कहने पर ही गठित की गई.
फ़ातिमा कहती हैं कि घायलों को बहुत देर से मदद दी गई और तब तक बहुत देर हो चुकी थीं. सब जानते थे कि वर्तमान राष्ट्रपति और बेनज़ीर के पती असिफ अली ज़रदारी और मुर्तज़ा भुट्टो में बिल्कुल नहीं बनती थी. फ़ातिमा कहतीं हैं कि "अदालत का यह भी मानना था कि देश के सबसे ऊंचे पद पर बैठे व्यक्ति के आदेश के बिना ऐसा काम नहीं किया जा सकता था. तो इसलिए मैं यह पूछना चाहती हूं कि प्रधानमंत्री कार्यालय से बड़ा कौन है."
कई अफवाहें
जिस तरह भारत में गांधी परिवार या अमेरिका में कैनडी परिवार के साथ मानो, एक शाप जुड़ा है, ठीक यही बात पाकिस्तान में भुट्टो परिवार के बारे में कही जा सकती है. 1979 में जुल्फिकार अली भुट्टो को फांसी देने के लगभग 28 साल बाद 2007 में उनकी बेटी बेनज़ीर की भी हत्या की गई. तबसे फ़ातिमा को लेकर भी अटकलें चल रही हैं कि अब वो भी राजनीति में आना चाहेंगी. लेकिन वह कहती हैं कि पाकिस्तान के राजनीतिक हालात को देखते हुए वह अपने लेखन से ही ज़्यादा बदलाव ला सकती हैं. वैसे वो पाकिस्तान पीपल्स पार्टी की शहीद भुट्टो ग्रुप विंग का समर्थन ज़रूर करती हैं.
हालांकि 2008 में हुए चुनावों में पीपीपी का यह धड़ा एक भी सीट हासिल करने में सफल नहीं रहा. फ़ातिमा का मानना है कि वह लोकतंत्र में विश्वास रखती हैं, किसी के नाम पर राजनीति नहीं होनी चाहिए. प्रतिभा और गुण ही एक व्यक्ति को योग्य बनाते हैं. फ़ातिमा मई में 28 साल की होने जा रहीं हैं. अब वो कहतीं हैं कि जितना समय यानी 14 साल उन्हें अपने पिता के साथ मिले थे, उतना ही समय अब उनको खोए हुए हो गया है. अपने भविष्य के बारे में फ़ातिमा कहतीं हैं कि वह भी शादी और बच्चे चाहतीं हैं, लेकिन शादी का फैसला वह कभी किसी दबाव में नहीं लेंगी. ऐसा तभी होगा जब उन्हें किसी से वाकई प्यार हो जाएगा.
रिपोर्टः प्रिया एसेलबॉर्न
संपादनः आभा मोंढे