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एक दीवार गिरी, बेशुमार फ़ासले मिटे

५ नवम्बर २००९

हथौड़े की पहली चोट ने उसे कमज़ोर बना दिया और अगली चोट और भी हिल दिया. फिर तो चोट पर चोट पड़ने लगी. इंसानी जज़्बात के आगे फ़ौलाद ने घुटने टेक दिए. बर्लिन की दीवार गिर गई. फ़ासलों को मिटे 20 साल पूरे.

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तस्वीर: AP

दूसरे विश्वयुद्ध ने दुनिया बांट दी थी और साथ ही बांट दिया था जर्मनी को. नाते रिश्तेदारों को और समाज को. लेकिन जब इससे भी मन नहीं भरा तो सरहद के साथ ईंट ग़ारे और इस्पात की दीवार खड़ी कर दी गई. जर्मनी की राजधानी बर्लिन 1961 में दो हिस्सों में बंट गई. शहर के बीचों बीच वह दीवार खड़ी हो गई, जो हमेशा नफ़रत और हिकारत भरी नज़र से देखी जाती रही.

मैं इधर, तुम उधर

20 Jahre Mauerfall Flash-Galerie
और आख़िरकार गिर ही गई दीवारतस्वीर: AP

बीच बीच में इनसानी जज़्बात हिलोरें मारता, तो दीवार कमज़ोर पड़ जाती. मां की ममता उस पार अपने बच्चे से मिलने को तड़प उठती या प्यार में डूबा कोई प्रेमी दीवार के इस पार अपनी प्रेमिका से मिलने को मचल जाता. ऐसे मौक़ों पर पता चलता कि इस दीवार में वह दम कहां.

शीत युद्ध के ज़माने में दुनिया को साफ़ तौर पर दो हिस्सों में बांटने का काम यही बर्लिन की दीवार करने लगी. पूर्वी जर्मनी पूरी तरह सोवियत संघ के इशारों पर चला करता था. उसकी मदद और उसी पूर्व सोवियत संघ की योजना से तैयार इस दीवार ने एक तरह से अमेरिकी नेतृत्व वाली पश्चिमी दुनिया को कम्युनिस्ट ब्लॉक से अलग कर रखा था. कहते हैं दीवार के इस पार अमेरिका का राज चलता था और उस पार सोवियत नेताओं का.

जान का जोखिम

Flash-Galerie Deutschland Mauerfall Jahrestag
दीवार गिरी तो लोगों की ख़ुशी का ठिकाना न थातस्वीर: AP

दीवार की रखवाली के लिए पूर्वी जर्मनी ने अत्याधुनिक हथियारों से लैस अपने जवान तैनात कर रखे थे, जिनकी बंदूक़ें तनी होती थीं और निशाना सधा होता था. लेकिन भला ज़माने को इससे क्या मतलब. वह कब सरहदों में बंधा है. उसे तो इस दीवार में सुराख़ करना ही होता था. हर क़ीमत पर. कई बार जान की क़ीमत पर भी. कहते हैं दीवार पार करने की पांच हज़ार से ज़्यादा कोशिशें हुईं और सौ से दो सौ लोगों को जान गंवानी पड़ी. दुनिया की इस शायद सबसे नापसंद दीवार ने पूर्वी जर्मनी के लोगों को सबसे ज़्यादा परेशान कर रखा था. इस बाधा से पहले दर्जनों सरकारी बाधाएं पार करनी पड़ती थीं. वीज़ा मिलना मुश्किल भरा काम होता था और चेकप्वाइंट चार्ली सीमा चौकी पर खड़ा कोई भी जवान बिना वजह बताए उसे उस पार जाने से मना कर सकता था.

इस दीवार को फाड़ दो.

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पूर्वी जर्मनों का पश्चिम में बड़ी गर्मजोशी से स्वागत हुआतस्वीर: AP

1960 और 70 के दशक में यह दीवार मौत की लकीर बन गई थी. कई बार तो दीवार पार करने की कोशिश करने वालों को गोली मार दी जाती थी और वह नो मैन्स ज़ोन में तड़प तड़प कर दम तोड़ देता था. डर के मारे कोई उसकी मदद को नहीं पहुंचता क्योंकि मदद करने वालों का भी वही हश्र हुआ करता. दीवार के उस पार जहां पूर्वी जर्मनी में कम्युनिस्ट राज था, वहीं इस पार पश्चिम जर्मनी में लोकतांत्रिक राजनीति. रहन सहन का स्तर दीवार के पश्चिम में बेहतर था और आज़ादी भी यहां ज़्यादा. यही वजह है कि लोग उस पार से भाग आना चाहते थे. दीवार गिराने की कोशिशें होती रहीं. इनसानों के बीच कृत्रिम पर्दे को उखाड़ फेंकने की दिशा में 1987 में अमेरिकी राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन ने जो बात कही, वह सबसे मारक समझी जाती है. उनके शब्द थे, मिस्टर गोर्बाचौफ़ इस दीवार को फाड़ दो.

मिटा फ़ासला

1989 में वह दिन भी आया, जब जनता के दबाव के आगे पूर्वी जर्मनी की सरकार ने लोगों के कह दिया कि वे जहां चाहें जा सकते हैं. इस बयान का मतलब जब तक समझ में आता, लाखों की तादाद में जनता ने बर्लिन की दीवार पर धावा बोल दिया. हथौड़े पर हथौड़े पड़ने लगे.

बर्लिन की वह दीवार अब बस एक याद है. इतिहास में संजो कर रखने की चीज़. संग्रहकर्ता इठलाते हुए इसके टुकड़े दिखाने में अपनी शान समझते हैं या फिर यह म्यूज़ियमों की शोभा बढ़ा रही है. लेकिन इस दीवार का हर टुकड़ा बार बार पूछ बैठता है, कि तुमने मुझे तो गिरा दिया, क्या नफ़रत की दीवार भी गिराओगे.

रिपोर्टः अनवर जे अशरफ़

संपादनः ए कुमार