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एक तरफ ब्राजील, दूसरी तरफ सब

अनवर जे अशरफ़ (संपादनः आभा मोंढे)७ जून २०१०

वर्ल्ड कप फुटबॉल में जो एक चीज़ कभी नहीं बदलती है वो है ब्राजील. ब्राजील इकलौती ऐसी टीम है, जो अब तक के सारे वर्ल्ड कप खेल चुकी है. हर बार पीली जर्सी की ये टीम सबसे फेवरेट टीम होती है.

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तस्वीर: picture-alliance/ dpa

वर्ल्ड कप दुनिया के किसी भी हिस्से में खेला जाए, ग्राउंड कैसा भी हो ब्राजीली सितारों को कोई फर्क नहीं पड़ता. विश्व कप शुरू होने के साथ ही ब्राजील की अपनी समांतर कहानी शुरू हो जाती है, जिसका अंत ज्यादातर जीत के साथ होता है.

लंबी सुखांत फिल्मों की तरह ब्राजील के सितारे एक एक कर वर्ल्ड कप बटोरते रहते हैं और अब तक सबसे ज़्यादा पांच बार दुनिया के सबसे बड़े खेल खिताब पर ब्राजील की परत चढ़ चुकी है. अबकी बार कोच डुंगा के सामने चुनौती इस खिताब को एक बार फिर हथियाने की है. कप्तान के तौर पर 16 साल पहले वो ये करिश्मा कर चुके हैं, उनकी अगुवाई में ब्राजील ने 1994 का अमेरिकी वर्ल्ड कप जीता था.

Pele und Beckenbauer
फुटबॉल के भगवान...पेले!तस्वीर: AP

लेकिन 16 साल में फुटबॉल की दुनिया बहुत बदली है. नई ताकतवर टीमें उठ खड़ी हुई हैं और वे ब्राजील और अर्जेंटीना जैसी फुटबॉल की ऐतिहासिक इमारतों को टक्कर देने लगी हैं. पैसे ने ग्राउंड के बाहर बड़ा खेल खेला है और इसका असर मैदान के अंदर साफ साफ दिखता है.

ब्राजील की बात करते ही 10 नंबर की वह चमत्कारी जर्सी जहन में कौंध जाती है जिसे फुटबॉल के महान धरोहर पेले ने दुनिया भर में लोकप्रिय बनाया. और जिनकी टांगों से टकराती इठलाती गेंदें पता नहीं कितनी बार जाल को चूमती रहीं.

1960-70 के दशक में हर तरफ पेले का जलवा था और यही वक्त था जब ब्राजील ने फुटबॉल की दुनिया में ऐसा मुकाम हासिल कर लिया, जहां तक पहुंच पाना किसी दूसरी टीम के बस की बात नहीं. वो पेले थे जो मैदान पर किसी बिजली की तरह कौंधते थे और बूट से फुटबॉल के मिलते ही बेचैन प्रेमी की तरह उसमें उलझ जाते, चैन तब मिलता था जब यह प्रेम गोल के रूप में परवान चढ़ चुका होता.

BdT Ronaldinho FIFA Weltfußball des Jahres 2006
तस्वीर: AP

पेले के बाद कभी रोमारियो कभी रोनाल्डो तो कभी रोनाल्डिनियो ने इस परंपरा को जारी रखा और अगर 1980 के दशक को छोड़ दिया जाए तो पिछले 60 सालों में हर दशक में फुटबॉल की चमचमाती ट्रॉफी एक बार रियो द जनेरो जरूर पहुंची. वर्ल्ड कप की शुरुआत तो 1930 में ही हो गई थी लेकिन ब्राजील को पहला खिताब जीतने में 28 साल लग गए. पहली बार 1958 में विश्व कप जीतने वाली टीम ने इसके बाद 1962, 1970, 1994 और 2002 में खिताब पर कब्जा किया.

ऐसे मौके कम ही याद आते हैं जब ब्राजील ने फुटबॉल की दुनिया में निकम्मा प्रदर्शन किया हो. लेकिन बार बार 1998 विश्व कप फाइनल का जिक्र जरूर होता है जब रोनाल्डो जैसे सितारे के होने के बावजूद जिनेदिन जिदान ने पैरिस में तहलका मचा दिया था. ब्राजील वो फाइनल तीन गोल से हार गया वरना आज उसके नाम फुटबॉल वर्ल्ड कप की हैट ट्रिक भी होती.

यूरोपीय फुटबॉल से बिलकुल अलग ब्राजीलियन फुटबॉल की अपनी परंपरा है, अपनी संस्कृति है और खेलने की अपनी शैली है. छोटे छोटे सुंदर पास से गेंद कब रक्षा पंक्ति से निकल कर बीच ग्राउंड और फिर बीच ग्राउंड से निकल कर विपक्षी रक्षा पंक्ति को भेद जाती है पता ही नहीं चलता. पता तो तब चलता है जब विरोधी खेमे का गोलकीपर हताश और निराश हो कर जाल से लिपटी गेंद को उठाता है और साइड लाइन के पास तीन या चार पीली जर्सी वाले हल्के हल्के सांबा की धुनों पर थिरक उठते हैं. ब्राजील का फुटबॉल भी सांबा की ही तरह है जो पूरे 90 मिनट तक स्टेडियम के 90 हज़ार लोगों को हर मूवमेंट पर थिरकाता रहता है, नचाता रहता है.

WM 2006 - Japan - Brasilien - Fan
तस्वीर: AP

ब्राजीली खिलाड़ियों को फायदा इस बात का मिलता है कि वे यूरोपीय लीग में खेलते रहते हैं और यूरोपीय शैली से परिचित रहते हैं. आम तौर पर पैसे के चक्कर में यूरोपीय फुटबॉलर कोपा अमेरिका या दूसरे लातिन अमेरिकी लीग मुकाबलों में नहीं खेलते और इस वजह से भी उनके खेल से महरूम रहते हैं.

इस बार सबकी नज़र काका और रोनाल्डेनियो पर होगी. ये दोनों बेहतरीन स्ट्राइकर किसी भी रक्षा पंक्ती को तोड़ सकते हैं और कोच डुंगा की कोशिश अपने खिलाड़ियों को संभाल कर रखने की होगी ताकि वे इस सदी का दूसरा विश्व कप घर ले जा सकें.