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उल्फ़ा में ही मतभेद, बातचीत खटाई में

५ दिसम्बर २००९

अलगाववादी संगठन उल्फ़ा के साथ भारत सरकार की शांतिवार्ता शुरू होने से पहले ही खटाई में पड़ गयी है. बातचीत को लेकर दो धड़ों में बंटा उल्फा. टॉप कमांडर परेश बरुआ ने बातचीत के लिए कठिन शर्त रखी.

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तस्वीर: AP

शुक्रवार को  बांग्लादेश की सुरक्षा एंजेंसियों ने अल्फ़ा के अध्यक्ष अरविन्द राजखोवा और उसकी सैनिक शाखा के उप कमांडर राजू बरुआ समेत दस व्यक्तियों को भारत के सीमा सुरक्षा बल को सौंप दिया. यह ख़बर आने के बाद केंद्रीय गृह सचिव जी. के. पिल्लै ने यह दावा किया  कि राजखोवा और राजू बरुआ  को उनके द्वारा आत्मसमर्पण करने के बाद गिरफ्तार कर लिया गया है. उन्हें अदालत में पेश किया जाएगा.

इसके पहले यह माना जा रहा था कि अरविन्द राजखोवा सरकार से बात करने के लिए तैयार हो गए हैं और सरकार ने उन्हें सुरक्षित भारत आने देने का वादा किया है. लेकिन अब इस आशय की ख़बरें भी आ रही हैं कि राजखोवा असम की सम्प्रभुता के मुद्दे पर चर्चा के बिना सरकार के साथ वार्ता को तैयार नहीं हैं. इसके साथ ही यह भी माना जा रहा है कि उल्फ़ा के शीर्ष नेतृत्व में फूट पड़ गयी है और उसकी सैनिक शाखा के चीफ कमांडर परेश बरुआ वार्ता के पक्ष में नहीं हैं. उल्फ़ा की मांग है कि असम को भारत से अलग एक संप्रभु राष्ट्र का दर्ज़ा मिलना चाहिए.

राजनीतिक विश्लेषक वबासिर हुसैन का मानना है कि यदि अरविन्द राजखोवा ने असम की जनता की शान्ति के लिए कामना को देखते हुए आत्मसमर्पण किया है तो इससे स्पष्ट है कि उल्फ़ा का शीर्ष नेतृत्व बंट गया है. 

इसी बीच खबर मिली है कि परेश बरुआ ने पीपुल्स कंसल्टेटिव ग्रुप के सदस्य हिरण्य सैकिया से फ़ोन पर बात की. सैकिया का कहना है कि परेश बरुआ संवाद के ख़िलाफ़ नहीं है लेकिन वह असम की संप्रभुता की केन्द्रीय मांग पर चर्चा के बगैर वार्ता के लिए नहीं बैठेगा. संप्रभुता का मुद्दा एक ऐसा मुद्दा है जिस पर भारत सरकार किसी भी अलगाववादी संगठन से बात नहीं कर सकती. इसलिए फिलहाल असम में शान्ति-प्रक्रिया का शुरू होना मुश्किल लग रहा है. बल्कि अब ऐसी आशंका व्यक्त की जा रही है कि गुस्से में उल्फ़ा आतंकवादी हमलों में तेज़ी ला सकता है.

रिपोर्ट: कुलदीप कुमार, नई दिल्ली

संपादन: ओ सिंह