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उत्तर प्रदेश में घटती गायें

२९ नवम्बर २०१२

उत्तर प्रदेश में हर साल करीब दो लाख गायें मर रही हैं. इसके लिए प्लास्टिक, चारा की कमी और सड़क दुर्घटनाएं जिम्मेदार हैं. प्रदेश में पिछले 25 साल में 50 लाख गायों की जान गई.

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तस्वीर: DW

यूपी में करीब दो करोड़ गायें हैं. 1988 में यह संख्या करीब ढाई करोड़ थी. लेकिन दूसरी तरफ सरकारी आंकड़े बताते हैं कि दूध की उपलब्धता के मामले में राज्य देश में सबसे आगे होने के आलावा राष्ट्रीय औसत में भी आगे है. राष्ट्रीय स्तर पर प्रति व्यक्ति प्रति दिन दूध की उपलब्धता 245 मिलीलीटर है तो यूपी में ये 304 मिली है.

भैंस की बढ़ोत्तरी सबसे तेजी से हो रही है यानी 13 प्रतिशत से ज्यादा जबकि कुल घरेलू पशुओं की वृद्धि का प्रतिशत 8.2 है और गाए की वृद्धि चार फीसदी से कम है.

ये स्थिति तब है जब यूपी में धार्मिक उत्सव में गाए की पूजा होती है और गाए को खाना खिलाना पुण्य माना जाता है. धार्मिक कर्मकांडों में गौ दान आम है और गाए को गोधन भी कहा जाता है.

सरकार गायों की संख्या में वृद्धि की कोशिश कर रही है. प्रदेश की 390 गौ शालाओं को प्रदेश का गौ सेवा आयोग आर्थिक सहायता करता है. लखनऊ में एक आधुनिक कान्हा उपवन भी बनाया गया है. हालाँकि पूरे यूपी में सबसे ज्यादा गाएं होने का गर्व भी लखनऊ मंडल को ही जाता है. इसके बावजूद कि यहां पिछले 25 साल में करीब 6 लाख गाएं खत्म हो गईं.

गाय पर भैंस भारी

उत्तर प्रदेश में गाय मारने पर प्रतिबंध है और जब कभी ऐसी घटनाएं हुई हैं तो सांप्रदायिक दंगे भड़कने का खतरा पैदा हुआ है. इसीलिए गायों को पालना महंगा होता है. भैंस जब दूध देना बंद कर देती है तो उसे वधशालाएं खरीद लेती हैं. यानी भैंस से दोहरा लाभ संभव है, जबकि गाए केवल दूध देती है. दूध का धंधा करने वाले ये भी बताते हैं कि "भैंस के दूध में पानी मिलाने की ज्यादा संभावना होती है क्योंकि उसका दूध गाढ़ा होता है."

रिपोर्टः एस वहीद, लखनऊ

संपादनः ए जमाल

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