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ईरानी डील: अमेरिका हटा, तो चीन को मिला खुला मैदान

१८ मई २०१८

ईरानी परमाणु डील से हटने के अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के फैसले से चीन को ईरान में और ज्यादा पांव पसारने का मौका मिल गया है. कैसे, बता रहे हैं डीडब्ल्यू के फ्रांक सिएरेन.

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China Zug der China Railway Express fährt nach Iran
तस्वीर: picture-alliance/dpa/Imaginechina/T. Zhe

ईरानी परमाणु डील से हटने की राष्ट्रपति ट्रंप की घोषणा के दो दिन बाद ही उत्तरी चीन से एक ट्रेन तेहरान के लिए रवाना हुई. इस पर 1,150 टन सूरजमुखी के बीज लदे थे. ईरान और चीन को जोड़ने वाली रेलवे लाइन पर यह किसी ट्रेन का पहला सफर था. इसके जरिए चीन के इनर मंगोलिया इलाके से सामान को 20 दिन में ईरान पहुंचाया जा सकेगा. समुद्री मार्ग के मुकाबले इसमें बहुत कम समय लगेगा. यह ट्रेन झंडों से सजी थी और स्पष्ट रूप से यह सांकेतिक मिशन पर थी कि चीन ईरान के लिए कहीं ज्यादा भरोसेमंद साझीदार होगा.

ईरान के साथ रिश्ते

परमाणु डील से हटने और ईरान के खिलाफ नए प्रतिबंध लगाने के अमेरिकी राष्ट्रपति के फैसले के बाद दुनिया के समीकरण तेजी से बदल रहे हैं. रूस, जर्मनी, ब्रिटेन, फ्रांस और चीन ने कहा है कि अमेरिकी दबाव के बावजूद वे डील पर कायम रहेंगे. चीन तो ईरान के साथ अपने सहयोग और बढ़ाना चाहता है. जब दो साल पहले ईरान के खिलाफ प्रतिबंधों में ढील दी गई तो चीन और ईरान ने अपने आपसी व्यापार को दस साल में दस गुना बढ़ाकर 600 अरब डॉलर तक ले जाने पर सहमति जताई थी. उम्मीद है कि इस योजना में कोई बदलाव नहीं होगा.

Frank Sieren *PROVISORISCH*
डीडब्ल्यू के फ्रांक सिएरेन तस्वीर: picture-alliance/dpa/M. Tirl

चीन मध्य पूर्व में स्थिरता चाहता है. यही वजह है कि उसने क्षेत्र में परमाणु हथियारों की रेस को रोकने के लिए ईरान के साथ समझौते पर दस्तख्त किए. इसके अलावा, चीन की सिल्क रूट परियोजना भी ईरान के बिना पूरी नहीं होगी. दोनों देशों के बीच व्यापार 2006 से अब तक दोगुना हो चुका है. ईरान में ऐसे बहुमूल्य संसाधन हैं जिनकी चीन को जरूरत है. दुनिया के कुल तेल संसाधन का 10 फीसदी ईरान में है और चीन ईरानी तेल का सबसे बड़ा खरीदार है. पिछले साल तो चीन ने तेल आयात करने के मामले में अमेरिका को भी पीछे छोड़ दिया.

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अमेरिका के पीछे हटने के बाद ईरान के साथ कूटनीतिक रिश्तों में जो जगह खाली हुई है, चीन उसे भरेगा और "पेट्रोयुआन" के अपने सपने के और करीब पहुंचने की कोशिश करेगा. अब तक दुनिया का सारा तेल कारोबार अमेरिकी डॉलर में होता रहा है. 1970 के दशक से चली आ रही इस व्यवस्था के कारण भी दुनिया में अमेरिकी मुद्रा का दबदबा रहा है. लेकिन चीन चाहता है कि भविष्य में तेल का लेन देन उसकी मुद्रा युआन में हो. इससे विनियम दर पर होने वाला खर्च बचेगा और युआन अंतरराष्ट्रीय मुद्रा के तौर पर मजबूत होगा. जितने ज्यादा देश युआन को इस्तेमाल करेंगे, अमेरिकी डॉलर उतना ही कमजोर होगा. ऐसे में, अमेरिका का राजनीतिक प्रभाव भी घटेगा. यही नहीं, इससे चीनी सामान और निवेश की मांग भी बढ़ेगी. ईरान, वेनेजुएला और रूस पहले ही चीन को युआन में तेल बेच रहे हैं. ईरान के खिलाफ अमेरिकी प्रतिबंध के बाद अन्य देश भी अमेरिकी वित्तीय तंत्र की बजाय चीन का रुख कर सकते हैं.

अमेरिका से दूरी

चीन ईरान के खिलाफ और प्रतिबंध लगाने का समर्थन नहीं करेगा. चीन की सरकार को समझ आ गया है कि बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था में इस तरह के कदम प्रभावी नहीं हैं. पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा को भी इस बात का अहसास हो गया था. लेकिन मौजूदा राष्ट्रपति ट्रंप अलग तरह से सोचते हैं. उन्हें शायद अंदाजा नहीं हैं कि इसकी कितनी बड़ी कीमत उन्हें चुकानी पड़ सकती है. जलवायु परिवर्तन और अमेरिका के साथ व्यापारिक विवाद के बाद अब ईरान भी एक और ऐसा मुद्दा बन गया है जिस पर यूरोपीय संघ को चीन और रूस के साथ मिलकर काम करना होगा.

हालांकि यह अभी साफ नहीं है कि इससे कुछ हासिल होगा या नहीं. यूरोपीय संघ अमेरिका पर किसी चीज के लिए दबाव नहीं डाल सकता है. ट्रंप के लिए घरेलू मोर्चे पर कामयाबी विदेश नीति में अफरा तफरी से ज्यादा से अहम है. ईरान को अगर मुश्किलें पेश आती हैं तो ट्रंप इसे अपनी कामयाबी समझेंगे. और यह स्वीकार करना होगा कि उनकी कोशिशें पूरी तरह से फिजूल नहीं हैं.

फ्रांक सिएरेन 20 साल से ज्यादा से बीजिंग में रह रहे हैं.

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