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मिसाल बनी जर्मनी में इस्लाम की पढ़ाई

१९ जनवरी २०१३

जर्मनी में तीन साल पहले शुरू हुई इस्लामी धर्मशास्त्र की पढ़ाई बहुत सफल रही है. मूल्यांकन करने पर पता चला है कि यह इतनी कामयाब है कि पूरे यूरोप के लिए मिसाल बन सकती है.

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तस्वीर: picture-alliance/dpa

इस्लामी धर्मशास्त्र विषय जर्मन विश्वविद्यालयों में लगातार जड़ें जमा रहा है. जर्मन शिक्षाशास्त्री इसे दूसरे यूरोपीय देशों के लिए आकर्षण बता रहे हैं. स्विट्जरलैंड के बैर्न यूनिवर्सिटी में इस्लाम शास्त्र पढ़ाने वाले प्रोफेसर राइनहार्ड शुल्से कहते हैं, "इस तरह का कोर्स अभी यूरोपीय विश्वविद्यालयों में नहीं है." जर्मन संसद के शिक्षा आयोग में जर्मनी की दूसरी यूनिवर्सिटियों के प्रोफेसरों ने उम्मीद जताई कि जल्द ही इस्लाम की पढ़ाई का विस्तार होगा.

समानता का तकाजा

हालांकि नेताओं की उम्मीद से कहीं ज्यादा तारीफ हो रही है, लेकिन पहले की ही तरह काफी समस्याएं भी हैं, जिसके पीछे धर्म पर जर्मनी का संवैधानिक प्रावधान है. ईसाई या यहूदी समुदाय के विपरीत जर्मनी में मुसलमानों के साथ सहयोग के नियम तय नहीं हैं. पिछले दिनों में हैम्बर्ग और ब्रेमेन जैसे प्रांतों ने पहला कदम उठाया. लेकिन वहां भी मुस्लिम संगठनों और समुदायों को सार्वजनिक सहयोग का दर्जा नहीं मिला है. यह सरकार के सहयोग और सब्सिडी का आधार है.

फिर भी लंबे समय से इस्लाम विद्या के अध्ययन की जरूरत महसूस की जा रही है. केंद्र सरकार का मानना है कि स्कूलों में इस्लाम की शिक्षा शुरू करने पर 2,200 नए शिक्षकों की जरूरत होगी.इसके अलावा जर्मनी में 1,000 से ज्यादा इमाम हैं जिन्होंने कभी कोई ट्रेनिंग नहीं ली है. उन्हें भी प्रशिक्षित किए जाने की जरूरत है.

इस्लामी धर्मशास्त्र सेंटर

विश्वविद्यालयों में इस्लामी धर्मशास्त्र के विभाग खोलने की पहल 2010 में वैज्ञानिक परिषद ने की. यह जर्मनी में विज्ञान और शोध के मुद्दों पर सबसे अहम सलाहकारी संस्था है. विश्वविद्यालयों में धर्मशास्त्र पर तीन साल के बहस के बाद इस्लाम का मुद्दा आया. इस परिषद से जुड़े राइनहार्ड शुल्से कहते हैं, "शुरू में इस्लाम अध्ययन या इस्लामी धर्मशास्त्र कोई मुद्दा ही नहीं था. वह अकादमिक धर्मशास्त्र पर कारगर बहस का तार्किक नतीजा था."

अंत में शिक्षा मंत्री अनेटे शवान ने चार विश्वविद्यालयों में इस्लामी धर्मशास्त्र का विभाग बनाने का सुझाव दिया. 2010 और 2011 में मुंसटर/ओस्नाब्रुक, ट्युबिंगेन, फ्रैंकफर्ट/गीसेन और न्यूरेनब्रग/एरलांगेन में इस्लामी धर्मशास्त्र केंद्र बने.

भाषा की समस्या

नया विभाग बनाने में कई तरह की बाधाएं आईं. उनमें सिर्फ कट्टरपंथी धर्मप्रचारकों जैसे गैरपेशेवर मौलवियों की ही समस्या नहीं थी. कटाजान अमीरपुर हैम्बर्ग में एक विश्व धर्म अकादमी का समर्थन कर रहे हैं जहां मुसलमान ईसाईयों, बौद्धों, हिंदुओं और दूसरे धर्म के लोगों के साथ संवाद कर सकते हैं. बहुत से दूसरे लोग इस्लाम के अंदर विभिन्न धाराओं को एक साथ संवाद में लाने की वकालत करते हैं.

Islamischer Religionsunterricht
तस्वीर: picture-alliance/dpa

इस क्षेत्र में सालों से सक्रिय रोहे बहुत से नए पदों के लिए उचित उम्मीदवार खोजने की मुश्किल के बारे में बताते हैं. लेकिन इस बीच सभी जगहों पर इसमें सफलता मिल गई है. हालांकि शुरुआती मुश्किलें बनी हुई हैं, लेकिन वे उम्मीद की किरण देखते हैं. एक और समस्या ऐसे लोगों को ढूंढने की है जिन्हें जर्मन और अरबी भाषा का एक जैसा ज्ञान हो.

संसदीय आयोग की बैठक में प्रोफेसरों के अलावा सांसदों के साथ पहले सेमेस्टर का एक छात्र भी बैठा था. एनेस एरदोआन के लिए नए पाठ्यक्रम के साथ एक सपना साकार हुआ है. उसकी जीवनी नए विषय का आयाम दिखाती है. "बर्लिन नौएकोलोन से ओस्नाब्रुक जाना मेरे लिए जीवन का पहला ट्रांसफर था." अपने मोहल्ले में उसने धर्म के बारे में जानकारी नहीं होने के कारण बहुत सारे अनुभव किए. "लोग धर्म को जीवन में बड़ा महत्व देते हैं, लेकिन हकीकत में उसके बारे में बहुत नहीं जानते." एरदोआन को पता नहीं है कि पढ़ाई खत्म करने के बाद उसे कौन नौकरी देगा, लेकिन उसे लगता है कि वह इस इलाके में काम कर सकता है.

अत्यंत रोमांचक

विशेषज्ञों की चर्चा में भाग लेने वाले मंत्रालय में राज्य सचिव थोमस राखेल इस्लामी धर्मशास्त्र की पढ़ाई को ऐतिहासिक आयाम वाला बताया. उन्होंने 500 साल पहले धर्मसुधार के बाद इवांजेलिक धर्मशास्त्र से इसकी तुलना की. डॉयचे वेले के साथ बातचीत में उन्होंने कहा कि इसके साथ इस्लामी धर्मशास्त्र जर्मन विश्वविद्यालयों और उसके साथ जर्मन समाज के साथ भी जुड़ रहा है.

राखेल ने कहा कि अत्यंत रोमांचक बात यह भी है कि जर्मन यूनिवर्सिटियों में इस्लामी धर्मशास्त्र की पढ़ाई शुरू करने के फैसले ने दूसरे देशों के छात्रों को भी आकर्षित किया है. शुल्से का कहना है कि स्विट्जरलैंड के अलावा अंग्रेजी भाषी देशों और फ्रांस से छात्र पढ़ने के लिए जर्मनी आ रहे हैं. इतना ही नहीं एशिया के इस्लामी देशों में भी जर्मनी में पढ़ाए जाने वाले नए विषय के लिए दिलचस्पी बढ़ रही है.

रिपोर्ट: क्रिस्टॉफ श्ट्राक/एमजे

संपादन: ए जमाल

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