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इसरो को थैंक यू

२५ सितम्बर २००९

चंद्रयान मिशन पहला ऐसा मिशन है जिसने चांद में पानी मिलने के पुख़ता सबूत दिए हैं. नासा इस खोज का शुक्रगुज़ार है.

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चांद में पानी की खोज से खुशतस्वीर: dpa/picture-alliance

"अगर वो न होते तो हम शायद यह खोज कभी नहीं कर पाते". नासा की चांद की सतह को जांच करने वाली टीम की प्रमुख कारला पीटर्स ने इसरो को चंद्रयान के लिए धन्यवाद देते हुए कहा. पीटर्स ने अपने खोज जानी मानी विज्ञान पत्रिका साइंस में प्रकाशित किए हैं. इसरो प्रमुख जी माधवन नायर ने कहा कि इससे पहले चांद को भेजे गए किसी भी मिशन से इस तरह का सकारात्मक नतीजा नहीं निकला है और न ही किसी मिशन ने चांद में पानी की उपस्थिति के पुख्ता सबूत दिए हैं.

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चांद पर पानी मिलने की पुष्टितस्वीर: picture-alliance/ dpa

पीटर्स का कहना है कि मून मिनेरॉलजी मैपर यानी एम3,ने चांद की ऊपरी सतर में पानी के कणों को पाया है. इसे चंद्रयान के साथ भेजा गया था. वैज्ञानिकों का मानना है कि चांद में एक टन मिट्टी में से लगभग 1 लीटर पानी बरामद होने की संभावना है. पीटर्स की टीम को चांद के अलग अलग सूर्य से प्रकाशित क्षेत्रों में पानी के कण मिले जिनकी मात्रा चांद के इक्वेटर से दूर जाने पर और बढ़ गई.

चंद्रयान-1 के साथ रेडियों संपर्क टूटने के बाद मिशन ख़त्म होने की घोषणा कर दी गई थी. लेकिन उससे पहले ही जो आंकड़े मिले हैं, उनसे चांद के धरातल पर पानी होने के अब तक के सबसे पुख़्ता सबूत मिले हैं. मिशन के प्रधान माइलसामी अन्नादुरई ने इस सिलसिले में कहा कि "बच्चा अपना काम पूरा कर चुका था". हालांकि अभी इन आंकड़ों की विस्तार से जांच बाकी है. लेकिन यह चांद पर वैज्ञानिक खोज के सिलसिले में मील का पत्थर साबित हो सकता है. बैंगलोर में पत्रकारों से बात करते हुए उन्होंने कहा कि चांद के धरातल पर पानी की खोज इस मिशन का एक सबसे अहम लक्ष्य था.

चंद्रयान-1 का मिशन तय वक्त से पहले ख़त्म होने पर इसकी कामयाबी पर सवाल उठाए जा रहे थे. लेकिन भारतीय अंतिरक्ष अनुसंधान संस्थान इसरो कई बार कह चुका है कि चंद्रयान ने कम वक्त में ही अपना 90 प्रतिशत काम कर दिया था.

1960 के दशक में अपोलो मिशनों में लाए गए चांद की धरती के नमूनों में भी पानी के अवशेष मिले थे. लेकिन जिन डिब्बों में उन्हें लाया गया था, वे पूरी तरह सीलबंद नहीं थे. इसलिए इन नमूनों पर भरोसा नहीं किया गया.

अमेरिका के टेनेसी विश्वविद्यालय के लैरी टेलर का कहना है कि किसी हद तक वे झांसे में पड़ गए थे. उन्हें लगा कि वायुमंडल के साथ संपर्क से पानी के ये कण आ गए हैं.

अब तक वैज्ञानिकों का कहना था कि चांद के ध्रुवों पर हमेशा अंधेरे में रहने वाले क्रेटरों में बर्फ़ का अस्तित्व हो सकता है. लेकिन बाकी धरातल पूरी तरह से सूखा है. चांद के पत्थरों और वहां की मिट्टी में लगभग 45 प्रतिशत ऑक्सीजन है, लेकिन हाइड्रोजन के स्रोत के बारे में पूरी जांच अभी बाकी है. टेलर और उनके साथियों का मानना है कि सौर हवा के नाम से जाने जाने वाले खगोलशास्त्रीय प्रतिभास के कारण हाइड्रोजन के अणु चांद तक पहुंचे. उनका अनुमान है कि चांद की धरती में प्रति टन 25 प्रतिशत पानी हो सकता है.

रिपोर्ट- एजेंसियां/ए जमाल

संपादन-आभा मोंढे