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१९ दिसम्बर २०१०

'अस्पताल में इलाज के लिए दाखिल होना है तो पहले बाहर से किराये पर बिस्तर लाइए' पश्चिम बंगाल के माओवादी असर वाले पश्चिम मेदिनीपुर जिले के बेलपहाड़ी ग्रामीण अस्पताल की ऐसी दुर्दशा है.

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तस्वीर: DW

यह अस्पताल सरकारी है. लेकिन झाड़ग्राम सब डिवीजन में बने इस अस्पताल में हमेशा इतनी भीड़ रहती है कि मरीजों को बिस्तर मिलना लगभग असंभव होता है. इसमें सिर्फ 15 बिस्तरों की ही व्यवस्था है. ऐसे में लोगों के सामने दो ही विकल्प होते हैं, या तो मरीज को जमीन पर सुलाएं या फिर बाहर से चौकी और बिस्तर किराए पर ले आएं. वहां पच्चीस रुपये रोज की दर पर चौकियां और बिस्तर मिल जाते हैं.

Small room of hospital filled by people in West Midnapur
अस्पताल का हालतस्वीर: DW

राज्य में स्वास्थ्य सेवाएं पहले से ही बदहाल हैं. इसके खिलाफ अक्सर प्रदर्शन होते रहते हैं. लेकिन बेलपहाड़ी और आसपास के कई दर्जन गावों के बीच इस अकेले अस्पताल की हालत सुधर नहीं रही है. यहां ज्यादातर गरीब मरीज आते हैं. उनमें से कई तो इसलिए लौट जाते हैं कि वह बिस्तर के लिए रोजाना पच्चीस रुपये का किराया नहीं अदा कर सकते. इलाके में मलेरिया और पानी से होने वाली पेट की दूसरी बीमारियों का प्रकोप होने की वजह से अस्पताल में मरीजों की भारी भीड़ रहती है. स्वास्थ्य विभाग ने 15 बिस्तरों वाले इस अस्पताल को 50 बिस्तरों में बदलने की योजना तो बनाई थी. लेकिन अब तक इस दिशा में कोई काम नहीं हो सका है.

अस्पताल के एक डाक्टर नाम न बताने की शर्त पर कहते हैं, “यहां हमारे सामने कोई विकल्प नहीं है. क्या बिस्तरों की कमी की वजह से हम मरीजों का इलाज करना बंद कर दें? हम समस्याओं के बावजूद उनका इलाज करने का प्रयास करते हैं. इलाज कराने के लिए मरीजों को बाहर से बिस्तर किराए पर लेना पड़ता है.”

People are protesting against health service in West Midnapur,
रंग नहीं ला पा रहा है विरोधतस्वीर: DW

कांटापहाड़ी के धनेश्वर मुर्मू कहते हैं, “हम बेहद गरीब है. बिस्तर का किराया चुकाना भारी पड़ता है. लेकिन मजबूरी है.” मुर्मू कहते हैं कि यहां आने वाले ज्यादातर लोग गरीब होते हैं. इसलिए बिस्तर का किराया एक बोझ बन जाता है. बेलपहाड़ी जंगली इलाका है. इसलिए लोग अस्पताल में फर्श पर सोने की बजाय किराए पर बिस्तर लेने में ही भलाई समझते हैं.

झारखंड पार्टी (नरेन) की स्थानीय विधायक चुन्नी बाला हांसदा कहती हैं, “मैंने ऐसे किसी अस्पताल के बारे में नहीं सुना है जहां मरीजों को बाहर से किराए पर बिस्तर लेना पड़ता हो.” वह कहती हैं कि सरकार आदिवासी इलाकों के विकास के लंबे-चौड़े दावे करती है. लेकिन यह अस्पताल उन दावों की पोल खोलता है. इस अस्पताल में चिकित्सकों और दूसरे कर्मचारियों की भी भारी कमी है.

A patient inside anti mosquito cover
तस्वीर: DW

पश्चिम मेदिनीपुर जिले के मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ नृपित राय कहते हैं, “हमने बेलपहाड़ी अस्पताल में बिस्तरों की तादाद बढ़ा कर पचास करने का फैसला किया था. लेकिन कुछ अनजान वजहों से यह काम ठप हो गया. हम जल्दी ही इसे शुरू करने की कोशिश कर रहे हैं. बिस्तरों की संख्या बढ़ने के बाद वहां और चिकित्सकों और दूसरे कर्मचारियों की बहाली की जाएगी.”

स्वास्थ्य मंत्री सूर्यकांत मिश्र भी मानते हैं कि खासकर ग्रामीण इलाकों में कुछ समस्याएं हैं. वे कहते हैं कि सरकार ऐसे तमाम अस्पतालों में आधारभूत ढांचा मजबूत करने का प्रयास कर रही है.

रिपोर्ट: प्रभाकर, कोलकाता

संपादन: ओ सिंह