इराकी चुनाव में मलिकी का भविष्य
३० अप्रैल २०१४वह लोगों में ये साबित करने की कोशिश कर रहे हैं वह उनके साथ खड़े हैं. पिछले हफ्ते अपने एक भाषण में उन्होंने जिक्र किया, "ये जो दफ्तरों के बाहर खड़े हैं, वे बुरी तरह परेशान हो रहे हैं. दफ्तर के अंदर एयर कंडीशन कमरों में बैठे लोगों को उनके बारे में चिंता नहीं होती."
मलिकी 2006 से इराक के प्रधानमंत्री हैं और इस दौर में वहां जबरदस्त हिंसा हुई है. फिर भी वह इस चुनाव में सबसे आगे चल रहे हैं. उनके विपक्षी एकजुट नहीं हो पाए हैं और इसका फायदा मलिकी को मिल रहा है. अल कायदा के नेतृत्व में सुन्नी चरमपंथियों का गुट राजधानी के करीब पहुंच रहा है और शिया उग्रवादी देश के सुरक्षा बल के साथ मिल कर सुन्नी समुदाय से बदला लेने की कोशिश करते हैं. इनके बीच मलिकी जो भी सुलह संधि की कोशिश करते हैं, वह टूट जाती है.
इराक यानि हिंसा
सिर्फ मार्च के महीने में बगदाद में 180 लोग मारे गए और 477 घायल हुए. इस साल अब तक इराक में करीब 2000 लोगों की जान हिंसा में जा चुकी है.
मलिकी आम तौर पर दीवारों के पीछे से सुरक्षा कवच में भाषण देते हैं. इस बार वह कह रहे हैं कि सबसे ज्यादा मुश्किल लगातार हमलों से हो रही है, जो "उनके खिलाफ साजिश" है. हाल के दिनों में इराक में एक बार फिर से हिंसा बढ़ी है. उन्होंने प्रधानमंत्री रहते हुए रक्षा, गृह और सुरक्षा के मंत्रालय अपने पास रखे हैं, जो उन्हें देश का सबसे शक्तिशाली आदमी बनाता है. अपने अधिकारों का इस्तेमाल करते हुए उन्होंने पिछले साल सुन्नी उग्रवादियों के खिलाफ भारी भरकम अभियान चलाया था.
लेकिन उनकी शक्ति की वजह से शिया, सुन्नी और कुर्द सभी तबकों में उनके दुश्मन भी तैयार हो गए हैं और उनका कहना है कि वे मलिकी के खिलाफ संघर्ष में मजहबी भेद भाव से ऊपर उठेंगे.
अनबार में संघर्ष
मलिकी अब अनबार प्रांत में लोगों को बताते हैं कि वे सुन्नी चरमपंथियों से उन्हें बचाना चाहते हैं, तो दूसरी जगह पड़ोसी सीरिया के शियाओं से भी सुरक्षा देने का दावा करते हैं. उनके भाषणों में जबरदस्त अंतर्विरोध है. पिछले चुनाव के दौरान 2010 में उन्होंने धर्मनिरपेक्षता की बात कही थी, जो इस बार के भाषणों में नजर नहीं आ रही है. पिछले चुनाव के कुछ दिन बाद अमेरिकी सेना ने इराक छोड़ दिया था.
मलिकी ने पिछले महीने एक सभा में कहा कि अनबार प्रांत में चल रहे संघर्ष को कम करके आंका जा रहा है. इराकी सुरक्षा में लगे लोगों का कहना है कि वहां 1000 से ज्यादा शिया लड़ाके मारे जा चुके हैं और हजारों ने सेना छोड़ दी है. शिया सैनिकों का कहना है कि उनका नेतृत्व मदद नहीं कर रहा है. मलिकी ने कहा, "यह कितने दुख की बात है कि जिस समय हमारी सेना इन हत्यारों और अपराधियों का मुकाबला कर रही है, उसी समय कुछ नेता उनकी पीठ में छुरा भोंक रहे हैं."
मलिकी नहीं तो कौन..
इराक में मुश्किल यह है कि मलिकी का कोई विकल्प नहीं दिख रहा है. लोगों के मुताबिक मलिकी "बुरों में सबसे अच्छे" हैं. उनके समर्थकों का कहना है कि अनबार प्रांत में अल कायदा के सहयोगी संगठन इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक एंड लेवांट (आईएसआईएल) के खिलाफ उनका अभियान उन्हें फायदा पहुंचा सकता है. उनके एक सलाहकार कहते हैं, "अनबार से पहले शिया समुदाय उनसे संतुष्ट नहीं था. अनबार के बाद लोग उन्हें एक मजबूत शख्सियत के तौर पर देख रहे हैं. उन्हें लगता है कि इन लोगों के खिलाफ सेना का इस्तेमाल करके वह ठीक कर रहे हैं. इसमें सामुदायिक पुट है."
उत्तरी बगदाद के एक शिया नेता ने चेतावनी दी कि जिस वक्त आईएसआईएल राजधानी बगदाद से सिर्फ 25 किलोमीटर की दूरी पर है, किसी भी तरह का नेतृत्व परिवर्तन सेना को दोबारा खड़ा करने में मुश्किल पैदा कर सकता है क्योंकि इराक की सेना बहुत हद तक मलिकी पर निर्भर है. पर उनके विरोधी संगठन अल मुवातीन का कहना है कि अगर मलिकी रह गए, तो इराक टुकड़ों में बंट जाएगा.
छिटपुट विरोध
उनके खिलाफ जो प्रतिद्ंवद्वी मैदान में हैं, उनमें बायान जाबोर भी हैं, जिनका कहना है कि मलिकी ने युद्ध में गलत तरीका अपनाया, "अब हम लोग 2014 में हैं और आठ साल पहले की बात नहीं कर सकते हैं. मुझे लगता है कि मौजूदा नेतृत्व में इराक का कोई भविष्य नहीं है."
कुर्द और सुन्नी विरोधी भी आरोप लगाते हैं कि इन आठ बरसों में मलिकी ने किसी तरह सत्ता नहीं बांटी. दूसरे काल में यह तय हुआ था कि दूसरे समुदाय के लोगों के साथ सत्ता का बंटवारा होगा. उन पर यह भी आरोप है कि जैसे ही अमेरिकी सेना ने इराक छोड़ा, उन्होंने अपने सुन्नी उप प्रधानमंत्री के खिलाफ वारंट जारी कर दिया और उन्हें इराक छोड़ना पड़ा.
उनके विरोधियों ने 2012 में उन्हें सत्ता से हटाने की मुहिम चलाई थी. हालांकि वह नाकाम रहा लेकिन ये विरोधी एक बार फिर एकजुट हो रहे हैं. दक्षिणी इराक में खुद शिया समुदाय के लोग उनके खिलाफ हो रहे हैं.
मलिकी के सामने सबसे बड़ी मुश्किल यह है कि देश के शिया धर्मगुरु उनके खिलाफ बोल रहे हैं. इराक के चार सबसे बड़े आयातुल्लाह में एक बशीर नजाफी ने पिछले हफ्ते ही कहा कि लोगों को मलिकी को वोट नहीं देना चाहिए क्योंकि वे अनबार में नाकाम रहे हैं और उनकी सरकार पर भ्रष्टाचार के आरोप हैं. हालांकि मलिकी अब तक अपने विरोधियों को चुप कराने में कामयाब होते आए हैं.
एजेए/एएम (रॉयटर्स)