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इच्छामृत्यु पर सुप्रीम कोर्ट की विशेष पेनल

२५ जनवरी २०११

मानवाधिकार संगठनों का मानना है कि यदि कोई दिमागी तौर पर मृत हो तो उसे मशीनों द्वारा जीवित रखना प्रताड़ना जैसा है. लेकिन अदालत किसी भी दलील पर किसी की जान लेने के खिलाफ रही है. भारत में पहली इच्छा मृत्यु के लिए अपील.

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तस्वीर: AP

सुप्रीम कोर्ट ने एक बलात्कार पीड़िता को इच्छामृत्यु देने के मुद्दे पर तीन चिकित्सकों की एक विशेष पेनल बनाई है और उनसे रिपोर्ट देने को कहा है.

अरुणा शानबाग नाम की यह महिला 1973 में किंग एडवर्ड मेमोरिअल अस्पताल में नर्स हुआ करती थी जब एक क्लीनर ने उसका बलात्कार किया. तब से वह इसी अस्पताल में भर्ती है. 2009 में अरुणा की दोस्त पिंकी विरानी ने सुप्रीम कोर्ट से अपील की कि अस्पताल उसकी मशीनें हटा दे और उसे तरल खाना खिलाना बंद कर दे.

पिंकी विरानी ने बताया कि अरुणा पिछले 38 साल से दिमागी तौर पर मृत है और देख, सुन नहीं सकती. हालांकि डॉक्टरों का कहना है कि उसे खाना खाने में कोई तकलीफ नहीं है और जब उसे किसी चीज की जरूरत होती है तो वह अपने चहरे के हाव भाव से उसे व्यक्त कर पाती है.

चूंकि पिंकी विरानी की अपील और डॉक्टरों का बयान बहुत अलग अलग है इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने मामले की जांच के लिए डॉक्टरों की विशेष टीम गठित की है जो अदालत को अपनी रिपोर्ट सौंपेगी. कोर्ट के लिए यह मामला बेहद संवेदनशील है क्योंकि इच्छामृत्यु देश में कानूनी तौर पर मान्य नहीं है. दुनिया भर की अदालतें इच्छामृत्यु के मुद्दे पर विचार कर रही हैं.

रिपोर्ट: पीटीआई/ईशा भाटिया

संपादन: आभा एम

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