कैसे बनते हैं हम इतने अलग
१३ अप्रैल २०१६पुरातत्ववेत्ताओं की स्टडी से हम आज इतना जान चुके हैं कि पहले इंसान अफ्रीका से आए और फिर शिकारियों और उसके बाद किसानों के रूप में पूरी दुनिया में फैले. शहरों और देशों का निर्माण तो बहुत बाद में हुआ. लेकिन आज हर देश की संस्कृति अलग है. अमेरिका या जर्मनी के बच्चे हों या कैमरून के ग्रामीण इलाकों में रहने वाले एनसो बच्चे हों या भारतीय बच्चे, सब अलग अलग ढंग से व्यवहार करना सीखते हैं. बच्चे अपने परिवेश के माहौल को बखूबी भांप लेते हैं और उसके मुताबिक व्यवहार करने लगते हैं. एक्सपर्ट्स बताते हैं कि बचपन के यही साल किसी के व्यक्तित्व के विकास में सबसे अहम होते हैं.
हाइपरजूम फोटोग्राफी
ब्रिटिश फोटोग्राफर जेफ टॉमकिंसन खास किस्म की शूटिंग 'टाइम लैप्स' के माहिर माने जाते हैं. उनके वीडियो इस मायने में हैरान करने वाले हैं कि उनमें बार बार नया इफेक्ट्स और भ्रम पैदा होते दिखते हैं. उनके ताजा वीडियो में हाइपर-जूम नाम का नया कमाल दिखा है, जिसे इंटरनेट पर खूब कामयाबी मिली है और हर कोई यही पूछ रहा है कि उन्होंने ऐसा इफेक्ट पैदा कैसे किया. जवाब जानने के लिए हम उनसे मिलने पहुंचे ऑस्ट्रिया.
सभ्यता की आखिरी पहचान जंगल
प्राचीन माया संस्कृति के पवित्र स्थलों में शामिल है ग्वातेमाला का वासाक्तून. करीब 1000 साल पहले तक इस इलाके में फलती फूलती माया संस्कृति अचानक खत्म हो गई. आज यह इलाका बेहद गरीब और पिछड़ा है. अपना जीवन स्तर सुधारने के लिए स्थानीय लोग 'माया बादाम' कहे जाने वाले एक मेवे की मदद ले रहे हैं, लेकिन माया बादाम के जंगलों पर मंडराता खतरा बड़ी चिंता बन गया है.
गौशाला का कायाकल्प
पुरानी गौशाला या जर्जर अस्तबल से आप क्या बना सकते हैं. ऐसा ही सवाल इटली के एक कारोबारी फाबियो मोरोनी के सामने भी था. आल्प्स पहाड़ियों की तलहटी में मोरोनी ने एक पुरानी गौशाला खरीदी. फर्नीचर और फिटिंग्स बेचने वाले फाबियो ने गायों के पुराने फॉर्म का ऐसा कायाकल्प किया, कि वो बन गई है उनकी सपनों की दुनिया. मंथन में करेंगे इस घर का दीदार.
शनिवार सुबह 11 बजे सिर्फ डीडी नेशनल पर.
ओएसजे/आईबी