इंसानी सीने में सूअर का दिल
८ अप्रैल २०१६जल्द ही ऐसा मुमकिन है. हृदय रोगियों को इस तकनीक से एक नई जिंदगी मिल सकती है. क्रॉस स्पीशीज ऑर्गन ट्रांस्प्लांटेशन यानि अलग अलग किस्म के जीवों के आपस में अंग प्रत्यारोपण के क्षेत्र में काम कर रहे वैज्ञानिकों का कहना है कि इस दिशा में एक बड़ी सफलता हाथ लगी है.
दुनिया भर में अंग दान करने वालों की भयंकर कमी है. इसके चलते इंसान की जान बचाने के लिए जानवरों के दिल, फेफड़े और लिवर का इस्तेमाल कर पाना मेडिकल साइंस के लिए हमेशा से यक्ष प्रश्न रहा है.
प्रत्यारोपण के दौरान अंगों का बेकार हो जाना इस दिशा में सबसे बड़ी दिक्कत रही है. लेकिन अब अमरीका और जर्मनी के वैज्ञानिकों ने कहा है कि वे सूअर के हृदय को लंगूर में जोड़कर ढाई साल से भी अधिक समय के लिए जीवित अवस्था में रखने में कामयाब हो गए हैं. उन्होंने इसके लिए जीन मॉडिफिकेशन और रोगप्रतिरोधी क्षमताओं को रोकने वाली दवाओं का इस्तेमाल कर अपना तरीका तैयार किया है.
लंगूर में हुआ सफल प्रयोग
मैरीलैंड के नेशनल हार्ट, लंग एंड ब्लड इंस्टीट्यूट के मोहम्मद मोहिउद्दीन भी इस शोध का हिस्सा रहे हैं. वे कहते हैं, ''यह बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि इससे हम मानव शरीर में जानवरों के अंग प्रत्यारोपण की दिशा में एक कदम और आगे आ गए हैं.'' उन्होंने बताया कि अगर इंसानों में भी यह ट्रांसप्लांट संभव हो जाता है, तो इससे हर साल हजारों लोगों की जिंदगी बचाई जा सकेगी.
इस प्रयोग के दौरान पांच लंगूरों से जोड़ा गया सूअर का हृदय 945 दिनों तक जिंदा रहा था. लंगूरों में हृदय को प्रत्यर्पित नहीं किया गया था, बल्कि उसे लंगूर के पेट से दो बड़ी रक्त नलियों के जरिये संचार तंत्र से जोड़ा गया था. इस हृदय की धड़कन सामान्य हृदय की तरह ही थी लेकिन लंगूर का हृदय भी लगातार खून को पंप कर रहा था.
सूअर ही क्यों?
इन जानवरों की इंसानों से जेनेटिक तौर पर बेहद करीबी होने से बीमारियों के आपस में फैलने का भी एक बड़ा खतरा हो सकता था. इसलिए सूअरों को एक बेहतर विकल्प के तौर पर चुना गया क्योंकि उनके हृदय का आकार भी लगभग इंसानी दिल की ही तरह होता है. साथ ही उनके साथ रोगों के संक्रमण का खतरा भी कम है. इनका विकास भी कम समय में हो जाता है और ये आसानी से उपलब्ध भी हैं.
आरजे/आईबी (एएफपी)