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'आयोजित और अनुशासित हैं जर्मन'

२५ जुलाई २०१२

भारत इस समय जर्मनी में भारत महोत्सव मना रहा है. पिछले साल भारत में जर्मन महोत्सव हुआ. जर्मनी में भारत की राजदूत सुजाता सिंह से श्टुटगार्ट इंडियन फिल्म फेस्टिवल के दौरान डॉयचे वेले ने दोनों देशों के रिश्तों पर चर्चा की.

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तस्वीर: DW

इस साल जर्मनी में भारतवर्ष मनाया जा रहा है. क्या क्या हुआ है अब तक इस संदर्भ में?

इस साल भारत और जर्मनी के बीच राजनयिक संबंधों की 60वीं वर्षगांठ है. पिछले साल यह भारत में शुरू हुआ. वहां भारत में 'इयर ऑफ जर्मनी' मनाया गया और यहां जर्मनी में 'डेज ऑफ इंडिया'. 11 मई को हैम्बर्ग में बंदरगाह की 823वीं वर्षगांठ मनाई गई. इस अवसर पर हमारा युद्ध पोत आईएनएस तेग वहां आया और एल्ब नदी में उसने जर्मन युद्ध पोत के साथ परेड में हिस्सा लिया. हमारे वाणिज्य मंत्री आनंद शर्मा भी इस मौके पर मौजूद थे. बर्लिन आ कर उन्होंने जर्मनी के व्यापार मंत्री से मुलाकात भी की. हैम्बर्ग में कई कार्यक्रम आयोजित किए गए थे. वहां इंडिया पवेलियन भी लगाया गया. इसी तरह हम अगले साल भी जर्मनी के सभी राज्यों में कुछ करना चाहते हैं. हम यूनिवर्सिटी में कार्यक्रम करना चाहते हैं. सांस्कृतिक कार्यक्रम भी होंगे और साथ ही आर्थिक सहयोग और विज्ञान और तकनीक पर भी प्रकाश डालेंगे.

आम तौर पर जब इस तरह के वर्ष मनाए जाते हैं तो आर्थिक सहयोग के बढ़ने की उम्मीद की जाती है. इस दिशा में क्या क्या हुआ है?

आर्थिक सहयोग काफी बढ़ रहा है. हमने इस साल बीस अरब यूरो का लक्ष्य रखा था और हमारा लक्ष्य पूरा भी हो रहा है. आप देख सकते हैं कि जर्मनी में भी भारतीय निवेश तेजी से बढ़ रहा है. जर्मनी और भारत के बीच सहयोग बहुत अच्छी तरह चल रहा है और इसमें प्रगति हो रही है.

वीजा को ले कर जिस तरह के कानून हैं, क्या उनमें कोई बदलाव आ पाया है? बहुत से लोग हैं जो काबिलियत होने के बावजूद यहां आ कर काम नहीं कर सकते क्योंकि नियम उसकी इजाजत नहीं देते. जर्मनी में रहना है तो जर्मन सीखना जरूरी है. क्या इस बारे में कुछ हो पाया है?

अगर जर्मनी में काम करना है तो जर्मन तो सीखनी ही होगी. उनकी कुछ शर्तें हैं और हमें उनका सम्मान करना चाहिए. लेकिन अभी एक दो महीने पहले ही उन्होंने नियमों में सख्ती को थोड़ा कम किया है, क्योंकि वे भी मानते हैं कि उनके लिए जरूरी है कि बाहर से प्रशिक्षित लोग उनके पास आएं. हम उनसे इस बारे में काफी बात भी कर रहे हैं. मेरे ख्याल से पिछले दो तीन सालों से काफी कुछ बेहतर हो गया है.

सांस्कृतिक लिहाज से दोनों देशों में एक दूसरे को ले कर काफी धारणाएं हैं. यहां बॉलीवुड फिल्म फेस्टिवल चल रहा है. लोगों को लगता है कि भारत यही है. भारत में हर महिला साड़ी और चूड़ियां पहनती है. या भारत में भी 'फिरंग' को ले कर धारणाएं हैं. क्या लोगों की सोच में कोई बदलाव आ पा रहा है?

मेरे ख्याल से तो बदलाव आ रहा है. जब मैं तीस साल पहले जर्मनी में थी तब लोग हाथियों और सपेरों की बातें किया करते थे. थोड़ा बहुत बदलाव तो आया है. आईटी के क्षेत्र में भारत का नाम हुआ है. सब लोग जानते हैं कि हमारे प्रधानमंत्री अर्थशास्त्री हैं, हमारा देश नौ प्रतिशत के सकल घरेलू उत्पाद के साथ उन्नति कर रहा है. इस बीच कई सारे जर्मन निवेशक भारत गए हैं और कई भारतीय निवेशक जर्मनी आए हैं. तो इस तरह से हमारी पहचान भी बदल रही है.

आपने कुछ समय पहले ही राजदूत का पद संभाला है. आप किन लक्ष्यों पर काम कर रही हैं?

मुझे अभी सिर्फ चार ही महीने हुए हैं. 34 साल पहले मैं बॉन में थी. तब मैंने यहां आ कर भाषा सीखी. जब उस वक्त की आज से तुलना करती हूं तो पाती हूं कि भारत की छवि कितनी बदल गई है. भारत में भी पिछले तीस साल में कई बदलाव आए हैं. इस बीच वीजा को ले कर कई सुधार हुए हैं, लेकिन अभी और सुधारों की जरूरत है. उन पर मैं काम करूंगी. मैं विश्वविद्यालयों के साथ काम करना चाहती हूं ताकि हमारे और भी स्टूडेंट यहां आ सकें. वे यहां आ कर जर्मन सीखें. मेरा मानना है कि जब तक आप जर्मन नहीं सीखते आप जर्मनी को समझ नहीं सकते. जर्मनी को इंजीनियरिंग के क्षेत्र में महारत हासिल है. हमारे लोग यहां आ कर यह सीख सकते हैं. व्यावसायिक प्रशिक्षण के क्षेत्र में भी मैं कुछ करना चाहती हूं. ताकि हम इस देश से सीख सकें कि यहां के लोग किस तरह से काम करते हैं. हमारे लोगों को यहां इंटर्नशिप मिल सके. भारतीय स्टूडेंट तीन या छह महीने कुछ जर्मन कंपनियों में काम करें और यहां से यह सीख कर वापस जाएं कि यहां काम कैसे होता है. मेरे ख्याल में हम जर्मनी से बहुत कुछ सीख सकते हैं. जर्मनी के लोग बहुत ही आयोजित और अनुशासित हैं. इसी तरह जर्मनी भी भारत से बहुत कुछ सीख सकता है. भारत के लोग लचीले हैं, वे एक समय पर कई काम कर सकते हैं. इस आदान प्रदान से हम दोनों को ही फायदा होगा.

इंटरव्यूः ईशा भाटिया

संपादन: महेश झा

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