आम लोगों ने चमका दिया मुंबई का एक बीच
५ मई २०१७अरब सागर पर एक खूबसूरत महानगर और उसके कई किलोमीटर लंबे बीच, सन बाथ का न्योता देते हैं, लेकिन सिर्फ दूर से. दो साल पहले अफरोज शाह ने अपना सपना पूरा किया. उन्होंने समुद्र तट की ओर खुलता एक अपार्टमेंट खरीदा. लेकिन फिर अचंभे में डालने वाला सच उनके सामने आया. पेशे से वकील शाह के मुताबिक, "मैंने जब खिड़की से बाहर झांका तो मुझे ढेर सारा कचरा दिखा. मेरी आंखों को तकलीफ होने लगी. वकील होने के नाते में मैं महापालिका में शिकायत कर सकता था, लेकिन फिर मैंने कहा, तुम नागरिक हो और इसके लिए तुम भी जिम्मेदार हो. तुम्हें खुद कुछ करना चाहिए."
यानि कि बीच की सफाई का काम. हर शनिवार और रविवार को दो घंटे के लिए. कुछ पड़ोसी भी अफरोज शाह की मदद करते हैं. अफरोज शाह कहते हैं कि "शुरू के महीनों में बहुत मुश्किल हुई. हम सिर्फ चार पांच लोग थे. लेकिन मैं कोई बड़ा संगठन नहीं बनाना चाहता था."
अब करीब 100 वॉलिंटीयर्स अफरोज शाह की नक्शे कदम पर चल रहे हैं और कचरा इकट्ठा करते हैं और प्लास्टिक के टुकड़ों को रेत से बाहर निकालते हैं. उनका साथ देने के लिए बॉलीवुड के स्टार भी आते हैं. अभिनेता नरेश सूरी कहते हैं, "मैं 70 हफ्ते से आ रहा हूं. मेरा घर दरवाजे पर शुरू नहीं होता. यह शहर से शुरू हो जाता है, देश से शुरू हो जाता है. ऐसा नजरिया होना चाहिए. तभी कुछ बदलेगा."
धीरे धीरे सपना पूरा होने के करीब आ रहा है. तीन किलोमीटर लंबे बीच को साफ करने का सपना. लेकिन मुंबई में बहुत से दूसरे बीच भी हैं. और गंदी नाले भी जो कचरे को लगातार समुद्र तक पहुंचा रहे हैं. भारत की वित्तीय महानगरी में हर दिन लाखों टन कचरा पैदा होता है. उसे जमा कर सही तरीके से निबटाने के ठिकाने ज्यादा नहीं हैं. मुंबई तीन तरफ से समुद्र से घिरा है, यहां जगह की भारी कमी है.
इसका असर शहर के पर्यटन उद्योग पर भी पड़ रहा है. ट्रैवल एजेंसी के लोग शिकायत करते हैं कि कचरे की वजह से विदेशी पर्यटक मुंबई नहीं आते. लेकिन समस्या आसान नहीं. बहुत से गरीब कचरे से रोजी रोटी कमाते हैं. ताराबाई उस तबके से आती हैं जिसे अछूत माना जाता है, लेकिन परंपरागत रूप से उन पर कचरे की सफाई की जिम्मेदारी रही है. कचरा उठाने की आधुनिक व्यवस्था आने के साथ परंपरागत रूप से कचरे की सफाई करने वालों की जिंदगी भी आसान नहीं रह गई है.
कूड़े के संकट को शिक्षा के जरिये निबटाना, यह नताशा डी कोस्टा का सपना है. वह फिर से इस्तेमाल हो सकने लायक कचरा खरीदती है और स्कूल के बच्चों को दिखाती है कि उसकी मदद से क्या क्या किया जा सकता है. रिसाइक्लिंग प्रोजेक्ट कलर ड्रामा की नताशा डी कोस्टा कहती हैं, "यही भारत की खूबसूरती है. हम रिसाइक्लिंग में बहुत अच्छे हैं. यह हमारी संस्कृति का हिस्सा है. दिक्कत यह है कि इस समय हम बहुत सारा कचरा पैदा कर रहे हैं. हमें यह सीखना होगा कि जिन चीजों को हम फेंक देते हैं वह कितनी कीमती हैं."
लेकिन समुद्र में पहुंचने वाला सारा कचरा कला के लिए इस्तेमाल नहीं हो सकता. खासकर इंसान द्वारा पैदा कचरा नहीं. जिनके पास घर नहीं वे बीच का इस्तेमाल टॉयलेट की तरह करते हैं. प्लास्टिक हटाने के बाद अफरोज शाह की ये अगली चुनौती है. अफरोज कहते हैं, "गरीबों के सामने और कोई चारा नहीं है. सार्वजनिक टॉयलेट बहुत गंदे हैं. उन पर कार्रवाई की जा सकती है, लेकिन मैंने टॉयलेट्स की सफाई करने का फैसला किया है."
आज का काम खत्म हुआ. जमा किये गये कचरे को ट्रांसपोर्ट किया जा रहा है. लोगों ने जिम्मेदारी अपने हाथों में ले ली है. एक बीच साफ हो रहा है और शहर बदल रहा है. लेकिन ये काम आसान नहीं. हर वीकएंड धूप नहीं होती है. कभी कभी अफरोज और उनके साथी वॉलिंटीयरों को बरसात में भी काम करना पड़ता है.
(कैसे हैं भारत के स्वच्छ शहर)
रिपोर्ट: मार्कुस श्पीकर/एमजे