आदमी नहीं, औरत के हक में पाक अदालत का फैसला
४ नवम्बर २०१७पाकिस्तान में महिला अधिकार कार्यकर्ता ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट अली जव्वाद नकवी के फैसले से खुश हैं. लाहौर की एक निचली अदालत ने दूसरी शादी करने वाले व्यक्ति को छह महीने की कैद और दो लाख पाकिस्तानी रुपये के जुर्माने का फैसला सुनाया.
पाकिस्तान में यह पहला मामला जब अदालत ने 2015 के फैमिली लॉ के तहत किसी महिला के हक में फैसला सुनाया है. अदालत में दाखिल अपनी याचिका में आयशा बीबी ने कहा कि उसके पति शहजाद ने उसे बताया बिना दूसरी शादी कर ली. आयशा बीबी का कहना है, "अपनी पत्नी को बताये बिना दूसरी शादी कर लेना कानून का उल्लंघन है."
अदालत ने शहजाद की इस दलील को खारिज कर दिया कि उसे इस मामले में पहली पत्नी की इजाजत लेने की कोई जरूरत नहीं है, क्योंकि इस्लाम में किसी भी पुरुष को चार शादियां करने की अनुमति है.
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पाकिस्तान की इस्लामी नजरियाती काउंसिल अकसर पत्नियों की इस मांग की आलोचना करती है कि दूसरी शादी करने के लिए किसी पुरुष को अपनी मौजूदा पत्नी की लिखित अनुमति लेनी चाहिए. यह काउंसिल पाकिस्तान में बनने वाले कानूनों पर सरकार मशविरा देती है कि वे इस्लाम के मुताबिक हैं या नहीं. हालांकि काउंसिल की सिफारिशें कानूनी रूप से बाध्य नहीं होतीं.
महिला अधिकार कार्यकर्ताओं ने लाहौर की निचली अदालत के फैसले का स्वागत किया है. एक गैर सरकारी संगठन पीस एंड डेवेलपमेंट फाउंडेशन की प्रमुख रोमाना बशीर कहती हैं कि महिला सशक्तिकरण के लिए यह एक अच्छा फैसला है.
पंजाब प्रांत में महिला आयोग की प्रमुख फौजिया विचार भी इस फैसले से खुश हैं. उनका कहना है कि इससे पाकिस्तान के रुढ़िवादी समाज में महिलाओं के हाथ मजबूत होंगे. वह कहती हैं, "इस फैसले ने एक मिसाल कायम की है. इससे एक से ज्यादा शादी करने के मामले कम होंगे और महिलाएं अपने मामलों को अदालत तक ले जाने के लिए प्रोत्साहित होंगी. इससे लोगों में, और खास तौर से महिलाओं में जागरूकता पैदा होगी. परेशान महिलाएं के कानून का इस्तेमाल करने से उनका सशक्तिकरण होगा."
वैसे पाकिस्तान में एक से ज्यादा शादियां करने का ज्यादा चलन नहीं है. इस बारे में कोई आंकड़े भी मौजूद नहीं हैं. इस्लामाबाद स्थित एक शोध संस्थान इंस्टीट्यूट ऑफ पॉलिसी स्टडीज का कहना है कि ग्रामीण इलाकों में एक से ज्यादा शादियां करने का चलन है. जिन परिवारों में बेटा नहीं होता, वहां दूसरी शादी के मामले देखने को मिलते हैं. इसके अलावा विवाहेत्तर प्रेम संबंध भी कई बार दूसरी शादी की वजह बनते हैं. लेकिन शहरों से शायद ही ऐसा होता है.
लाहौर की अदालत के फैसले को चुनौती देने का आधिकार शहबाज के पास है. लेकिन वह ऐसा करेगा या नहीं, यह स्पष्ट नहीं है.
एके/ओएसजे (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन)