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आजादी और भुखमरी है मिस्र की क्रांति की सौगात

२४ जनवरी २०१२

एक साल पहले मिस्र में क्रांति की मशाल जली और लोगों की आंखों में उम्मीद की रोशनी चमकी तो जो क्रांति का नाम तक नहीं जानते थे वो भी आहुति देने घर से निकल पड़े. अब उन्हीं रोशन आंखों से निराशा के मोती छलक रहे हैं.

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मिस्र की नई संसदतस्वीर: picture-alliance/dpa

पेशे से मैकेनिक हानी शाबान ने सुना कि काहिरा के तहरीर स्क्वेयर पर मुफ्त में खाना बंट रहा है. सायदा आयशा की गरीब गलियों को छोड़ शाबान तहरीर स्क्वेयर पहुंच गए और क्रांतिकारियों के साथ होस्नी मुबारक की सत्ता उखाड़ने के लिए नारे लगाने लगे. शाबान को यहां खाना बंटता तो नहीं दिखा लेकिन बुनियादी सुविधाओं के लिए संघर्ष करती बहुसंख्यक जनता के लिए मुट्ठी भर अमीर लोगों के खिलाफ जोशीले भाषणों, चौराहे पर उत्साह से भरी भीड़ ने उन्हें यहां रोके रखा.

शाबान को यहां आने के पहले तक इस अरब क्रांति के बारे में कुछ पता नहीं था. शाबान कहते हैं, "जब मैं प्रदर्शनकारियों के बगल में खड़ा हुआ तब मुझे पता चला कि ये लोग मेरे अधिकारों के बारे में बात कर रहे हैं, तब मुझे अहसास हुआ कि अभिव्यक्ति की आजादी का असल में मतलब क्या है और तब मैंने यहां रुकने का फैसला किया."

Ägypten Parlament zusammengetreten in Kairo Eröffnung
संसद में कुछ महिला सदस्यतस्वीर: Reuters

एक साल बीत चुके हैं. होस्नी मुबारक पद से हट कर मुकदमों का सामना कर रहे हैं और छह दशकों में पहली बार चुनाव भी हो चुका है. नई संसद का नेतृत्व कर रही इस्लामी पार्टियां गरीब लोगों के लिए काम करने का वादा कर रही हैं और हक की लड़ाई लड़ने वाले उत्साह में भर कर सत्ताधारी जनरलों को सामाजिक न्याय का पाठ पढ़ा रहे हैं.

यह सब तो हो रहा है लेकिन जिन गरीबों के गुस्से ने इतनी बड़ी क्रांति को जन्म दिया उनमें निराशा भर रही है. क्रांति ने लोगों की आंखों में एक आसान जिंदगी का सपना बोया था वो अब बिखरने लगा है. खाने पीने की चीजों की कीमत अब भी आसमान छू रही है, दिहाड़ी मजदूरों को काम नहीं मिल रहा, वर्कशॉप बंद पड़े हैं और कर्मचारियों की छुट्टी करने वाली फैक्टरियां अब भी नियुक्ति नहीं कर रही हैं.

8 करोड़ की आबादी वाले मिस्र में मुबारक की विरासत ऐसी है कि 20 फीसदी लोगों को हर दिन 100 रूपये कमाने के लिए भी भारी मशक्कत करनी पड़ती है. इनमें से ज्यादातर लोग ऐसे कामों में हैं जहां काम की कोई गारंटी नहीं. राजनीतिक उठापटक ने देश के पर्यटन और कारोबार को भारी नुकसान पहुंचाया है और भुखमरी, लोकतंत्र की नई राह पर बढ़ने वाले मिस्र की नई मुश्किल बन के उभरी है. शाबान कहते हैं, "पहले मैं हफ्ते में एक बार दाढ़ी बनवाता था पर अब मैं उस 10 पाउंड को बचाता हूं. मुझे दाढ़ी बनवाने या खाना खाने के बीच में से किसी एक चुनना होता है."

Ägypten Demonstration auf Tahrir Platz in Kairo
तहरीर स्क्वेयर पर प्रदर्शनतस्वीर: dapd

आखों में निराशा के आंसू

राजधानी काहिरा के बीचोबीच बसा सायदा आयशा समुदाय अपने कुशल कामगारों की वजह से जाना जाता है जो देश के निर्माण उद्योग को अपनी सेवाएं दे कर अपना पेट पालते हैं. यहां प्लास्टिक की ट्रे में रोटियां बेच रहे 60 साल के एक बुजुर्ग से जब उनका हाल पूछा तो अपनी कहानी सुनाते हुए उनकी आंखों में आंसू आ गए. 48 साल के अहमद अब्देल खलीक ने कहा, "लोगों को नौकरी से हटाया जा रहा है, बस खाली बैठे हैं और कोई काम नहीं. क्रांति जिंदगी को आसान बनाने के लिए होनी चाहिए. इसे फिर से बनाना होगा. जब से क्रांति हुई है मुझे मेरी रोटी के भी लाले पड़ गए हैं."

देश की 1000 से ज्यादा फैक्टरियां जिनका काम निर्माण उद्योग से चलता था फिलहाल बंद पड़ी हैं और कर्मचारियों को नाम मात्र की तनख्वाह देकर फिलहाल छुट्टी पर भेज दिया गया है. काहिरा का मध्यवर्ग भी इन मुश्किलों से अछूता नहीं है. जब मिस्र में सारे काम बंद हो गए तो 55 साल के इंजीनियर मुस्तफा हुसैन की उनकी रियल इस्टेट कंपनी ने छुट्टी कर दी. वो कहते हैं, "मेरे पास अब कमाई का कोई जरिया नहीं और मुझे तीन बच्चे पालने हैं जिनमें से एक विकलांग भी है. मैंने सब जगह काम तलाशा लेकिन कहीं कुछ नहीं मिला. अब परिवार पालने के लिए मेरे पास बस एक ही रास्ता है कि मैं अपना मकान बेच दूं."

Ägypten Unruhen in Kairo Frau im blauen BH als Symbol des Widerstand Demonstration
सुरक्षा बलों की बर्बरतातस्वीर: Reuters

महंगाई की मार

कमाई हो नहीं रही और ऐसे कहीं संकेत भी नहीं दिख रहे कि कंपनियां लोगों को नौकरी देंगी. लेकिन इनके बीच महंगाई सारी हदें पार कर रही है. सिर्फ खाने पीने की चीजों की कीमतों की वजह से पिछले 12 महीनों में शहरी उपभोक्ता कीमतों में बढ़ोत्तरी की दर 9.1 से 9.5 पर पहुंच गई है. देश का केंद्रीय बैंक सप्लाई और अलग अलग हिस्सों तक उनके पहुंचने में दिक्कतों को इनका जिम्मेदार मान रहा है. हालांकि कई सालों से लगातार बढ़ती आ रही महंगाई की दर को भी पिछले साल की क्रांति की एक बड़ी वजह माना जाता है. ऐसी आशंका बन रही है कि कीमतों को काबू करने में नाकाम रहने के बाद सरकार के लिए उन पर सब्सिडी देने का एकमात्र विकल्प रह जाएगा.

इन सब के बीच कुछ लोग बुधवार 25 जनवरी को एक बार फिर तहरीर स्क्वेयर पर पहुंचने की योजना बना रहे हैं. उस दिन क्रांति की शुरुआत की सालगिरह है. इस बार नए सत्ताधारी और सेना निशाने पर होंगे.

रिपोर्टः रॉयटर्स/एन रंजन

संपादनः महेश झा

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