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आग में घी का काम कर सकता है तेल प्रतिबंध

६ सितम्बर २०१७

उत्तर कोरिया के छठे परमाणु परीक्षण के बाद नये प्रतिबंधों की चर्चा में तेल आपूर्ति पर प्रतिबंध सबसे ऊपर है. विश्लेषकों का कहना है कि यह अर्थव्यवस्था को तो पंगु बना सकता है, लेकिन इसका हथियार कार्यक्रम पर नहीं होगा असर.

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USA - Trump zu Nordkoreakonflikt
तस्वीर: picture alliance/AP/dpa/P. Martinez Monsivais

इस पर संदेह है कि प्योंगयांग का मुख्य साथी चीन सुरक्षा परिषद की इस मांग को मानने और उस पर अमल के लिए तैयार होगा. चीन के पास वीटो शक्ति है और वह सुरक्षा परिषद के प्रतिबंधों के आदेश को रोक सकता है. उत्तर कोरिया के पास अपना तेल भंडार नहीं है. वह अपने नागरिकों और सैनिकों के यातायात के लिए तेल के आयात पर निर्भर है. चीन उसका सबसे बड़ा कारोबारी साझेदार है. उत्तर कोरिया के विदेश व्यापार में उसका हिस्सा 90 प्रतिशत है.

उत्तर कोरिया के खिलाफ लगातार लगने वाले प्रतिबंधों के बीच चीनी कस्टम ने 2014 से उत्तरी कोरिया को बेचे जाने वाले कच्चे तेल के आंकड़े जारी नहीं किये हैं. अमेरिकी ऊर्जा सूचना दफ्तर का कहना है कि अनुमान के अनुसार प्योंगयांग हर दिन करीब 10,000 बैरल तेल का आयात करता है. इस तेल का तकरीबन सारा हिस्सा चीन से आता है और यह सब उसकी एकमात्र रिफायनरी पोंघवा केमिकल फैक्टरी को भेजा जाता है. 

इसके अलावा अंतरराष्ट्रीय ट्रेड सेंटर के आंकड़ों के अनुसार, उत्तर कोरिया ने पिछले साल चीन से 11.5 करोड़ डॉलर के मूल्य के रिफाइंड तेल उत्पादों का आयात किया है. इसमें पेट्रोल और एयरक्राफ्ट ईंधन शामिल है. रूस से 17 लाख डॉलर का आयात किया गया. नॉटिलस थिंक टैंक की रिपोर्ट के अनुसार, इस आयात पर रोक लगाने का उत्तर कोरिया के आम लोगों पर अत्यंत बुरा असर होगा. "लोग पैदल चलने या कहीं न आने जाने या बसों पर चढ़ने के बदले उन्हें धक्का देने पर मजबूर हो जायेंगे."

Nordkorea Pjöngjang Militärplakat
तस्वीर: imago/Kyodo News

थिंक टैंक की रिपोर्ट का ये भी कहना है कि तेल उत्पादों पर प्रतिबंधों का मतलब उत्तर कोरिया में और जंगलों का कटना होगा, जिसका असर भूक्षरण, बाढ़ और सूखे के रूप में सामने आयेगा. रिपोर्ट में ये भी कहा गया है कि सोंगुन या पहले सेना की नीति पर चलने वाला उत्तर कोरिया आम लोगों के लिए आपूर्ति पर सबसे पहले रोक लगायेगा, इसलिए प्रतिबंधों का उसके मिसाइल या परमाणु कार्यक्रम पर या तो कोई असर नहीं होगा, या बहुत कम असर होगा. 

संयुक्त राष्ट्र में कूटनीतिक सूत्रों का कहना है कि अमेरिका अब सुरक्षा परिषद के अगले प्रतिबंधों में उत्तर कोरिया को होने वाले तेल की आपूर्ति, पर्यटन और विदेशों में काम करने वाले उसके मजदूरों को निशाना बनना चाहता है. ये उत्तर कोरिया के खिलाफ आठवां प्रतिबंध होगा. दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति मून जे इन ने भी तेल प्रतिबंधों पर गंभीरता से विचार करने का पक्ष लिया है जबकि जापान ने उसके खिलाफ सख्त कदमों की मांग की है.

चीन ने अभी तक कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है, जबकि रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने प्रतिबंधों को निरर्थक बताते हुए वैश्विक तबाही की चेतावनी दी है. बीजिंग को उत्तर कोरिया में सरकार के पतन और वहां के लोगों के भागकर चीन में आने का ही डर नहीं है, बल्कि उसे अपनी सीमा पर अमेरिकी सैनिक तैनात किये जाने की भी चिंता सता रही है. पेकिंग यूनिवर्सिटी के वांग डोंग का कहना है कि यदि चीन तेल की आपूर्ति को रोकता है "तो प्रायद्वीप पर स्थिति तेजी से बिगड़ सकती है."

एमजे/आरपी (एएफपी)