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आखिर प्यार से इतना डरते क्यों हैं हम?

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ईशा भाटिया सानन
१२ अप्रैल २०१६

फिल्मों में तो बहुत अच्छा लगता है लेकिन असल जिंदगी में शायद कुछ गलत है प्यार में. नहीं तो कभी मां बाप, तो कभी समाज से इसे छिपाने की जरूरत क्यों पड़ती है?

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Liebespaar in Indien
तस्वीर: DW

ऐसा नहीं है कि प्यार पर पूरी तरह मनाही है. आप अपने माता पिता से, भाई बहन से, अपने बच्चों से प्यार कर सकते हैं और करना भी चाहिए, यह आपका धर्म है. बस साथी से प्यार मत कीजिए और अगर गलती से कर लिया है, तो उसे छिपा कर रखिए. अब आप ही बताइए, भला प्यार भी कोई दिखाने की चीज है?

हां, बच्चे को प्यार प्यार में चूम लिया, कोई बात नहीं लेकिन पति को सब के सामने कैसे चूम सकते हैं? और बॉयफ्रेंड को तो कतई नहीं. अरे शिष्टाचार भी कोई चीज होती है आखिर! और फिर शर्म का क्या? हां भई, वही शर्म जो औरत का गहना होती है. यह तो आप जानते ही है कि हम हिंदुस्तानियों को गहनों से कितना प्यार है. बिना गहने के तो औरत अधूरी है, ऐसे में शर्म का गहना तो कभी नहीं उतारना चाहिए.

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ईशा भाटिया

हां, फिल्मों तक ठीक है. वो क्या है ना, गर्लफ्रेंड के करीब आने का तो मौका मिलता ही नहीं है. और अब अगर फिल्मों में इमरान हाशमी भी किस करना छोड़ देगा, तो लोग क्या करेंगे? कम से कम कल्पना तक तो इन भावनाओं को रहने ही दे सकते हैं. क्योंकि कल्पना शर्म के दायरे में थोड़े ही आती है.

प्यार कर ही लिया, तो डरना क्या?

हालांकि कुछ लोग तो इतने बेशर्म हो जाते हैं कि बिना शादी किए ही साथ रहने की जुर्रत करने लगते हैं. किसी सभ्य समाज में ऐसा होता है क्या भला? शादी किए बिना किसी के साथ संबंध? तौबा!

आखिर राम और सीता हमारे आदर्श हैं. हमें उनके जीवन से सीख लेनी चाहिए. बस एक छोटी से उलझन है मेरी. जिस तरह मंदिरों में राम और सीता साथ खड़े दिखते हैं, उसी तरह कृष्ण और राधा भी तो साथ ही होते हैं. क्या राधा कृष्ण की शादी हुई थी? नहीं ना! क्या कभी कृष्ण के साथ पत्नी रुकमणि का नाम सुना है आपने? हमेशा राधेकृष्ण ही क्यों कहा जाता है?

मैं जानती हूं आप अब क्या कहेंगे, वो प्यार था, वासना नहीं. कुछ सालों पहले मैंने कृष्ण और राधा पर एक प्रदर्शनी देखी. (वहां लगे बहुत से चित्रों में से कुछ आध आप यहां देख सकते हैं.) ये चित्र राधा और कृष्ण के प्रेम के पलों के हैं. दोनों के ही शरीर पर कपड़े नहीं हैं (हां, गहने जरूर हैं). कृष्ण का हाथ राधा के स्तन पर है. ये वही पल हैं जिनके बारे में बात करते हुए हम बहुत घबराते हैं. (यहां यह बताना जरूरी है कि ये चित्र 12वीं सदी में जयदेव नामक कवि द्वारा लिखे गए मशहूर काव्य "गीता गोविंद" पर आधारित हैं, ये आज के जमाने की उपज नहीं हैं!)

लेकिन यह कैसा पाखंड है कि भगवान की लीला पर कोई सवाल नहीं उठाता और इंसानों के प्यार को पाप और हराम जैसे शब्दों में बांध दिया जाता है? मैं इस दोहरेपन को नहीं स्वीकारती. राधा ने कृष्ण से प्यार किया था, बिना डरे, इसीलिए आज उसे पूजा जाता है. प्यार पूजनीय है, पाप नहीं. पता नहीं फिर भी, प्यार से इतना डरते क्यों हैं हम!

ब्लॉग: ईशा भाटिया

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