आंध्र में मुस्लिम आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट की मुहर
२६ मार्च २०१०भारतीय सुप्रीम कोर्ट ने आंध्र प्रदेश में शिक्षा संस्थाओं और नौकरियों में मुसलमानों के पिछड़े वर्ग के चार प्रतिशत आरक्षण को सही ठहराया है. अदालत का मानना है कि 2007 के आंध्र प्रदेश आरक्षण ऐक्ट में ज़िक्र की गई मुसलमानों की केवल 14 प्रतिशत श्रेणियों को कोटा दिया जाएगा. अब इस आदेश को वैधता की जांच के लिए संविधान पीठ के पास भेज दिया गया है जिसकी सुनवाई अगस्त में होगी.
केन्द्र सरकार ने इस फैसले का स्वागत किया है. न्याय मंत्रा वीरप्पा मोइली ने अदालत के आदेश पर खुशी ज़ाहिर करते हुए कहा कि कई छात्रों को दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा था और आशा है कि अब इस प्रकार की समस्या नहीं आएगी.
सुप्रीम कोर्ट के ऑर्डर का स्वागत करते हुए मजलिस इत्तेहादुल मुसलिमीन के अध्यक्ष असदुद्दीन उवैशी ने कहा कि यह आदेश उन लोगों की आंखें खोलेगा जो आरक्षण के खिलाफ थे. उनके अनुसार मुसलमानों के आरक्षण से हज़ारों मुसलमान युवाओं का भविष्य सुधर सकेगा और भारत सरकार को इस संदर्भ में रंगनाथ मिश्र कमेटी की रिपोर्ट पर अमल करना चाहिए.
आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री के रोसैया ने आश्वासन दिया है कि उनकी सरकार चार प्रतिशत के आरक्षण पर अमल करने में कोई कसर नहीं छोड़ेगी. वहीं आंध्र प्रदेश में विपक्षी तेलुगू देशम पार्टी के अध्यक्ष चंद्रबाबू नायडू ने भी इस आदेश का स्वागत किया और आशा जताई कि मुसलमानों के आरक्षण की रक्षा में सरकार अब कोई कसर नहीं छोड़ेगी.
इससे पहले आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट ने इसी फैसले को यह कह कर रद्द किया था कि राज्य सरकार ने आरक्षण के लिए सही प्रक्रिया का पालन नहीं किया है. वर्ष 2007 में आंध्र सरकार ने 14 पिछड़ी बिरादरियों को सरकारी नौकरियों और शिक्षा संस्थाओं में चार प्रतिशत आरक्षण देने का फ़ैसला किया था, जिसे वहां की हाई कोर्ट ने रद्द कर दिया था.
विशेषज्ञों की राय में हालांकि यह फैसला धर्म के आधार पर नहीं है लेकिन अन्य राज्यों में भी पिछड़ी बिरादरियों के आरक्षण के लिए यह एक उदाहरण साबित हो सकता है.
रिपोर्टः सुनंदा राव, दिल्ली
संपादनः ए जमाल