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असुरक्षित महसूस करते, सुरक्षित देश के लोग

८ मई २०१८

जर्मनी के अपराधिक आंकड़ें कहते हैं कि जर्मनी दुनिया के सुरक्षित मुल्कों में से एक है. लेकिन हैरानी की बात है कि यहां के लोगों को अब देश कम सुरक्षित महसूस हो रहा है.

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Schatten Mann mit Messer
तस्वीर: Fotolia/lassedesignen

ऐसा शायद ही किसी ने सोचा होगा कि जर्मनी किसी दिन अपराध से जुड़े आंकड़ें पेश करेगा. लेकिन रिफ्यूजी संकट के बाद से जर्मनी के भीतर काफी कुछ बदल गया है. विशेषज्ञ मानते हैं जर्मनी के लोगों के भीतर असुरक्षा घर कर रही है. विशेषज्ञों के मुताबिक इसका एक बड़ा कारण मीडिया है जो खराब खबर को ही अच्छी खबर मान कर पेश करता है. आज जर्मनी के लोग भले ही देश को असुरक्षित मान रहे हो, लेकिन आंकड़ें इसे सुरक्षित कहते हैं. जर्मनी में साल 2017 के दौरान करीब 57 लाख आपराधिक मामलें दर्ज किए गए. जो पिछले साल की तुलना में 10 फीसदी कम हैं.

जर्मनी के मशहूर अपराधविज्ञानी क्रिश्टियान प्फाइफर इस असुरक्षा के लिए मीडिया समेत कई कारणों को दोष देते हैं. डीडब्ल्यू से बातचीत में क्रिश्टियान कहते हैं, "अगर आप टीवी पर दिखाए जाने वाले कार्यक्रमों पर ध्यान दें तो आपको सारी बात समझ आ जाएगी. हर रात टीवी पर अपराध से जुड़ी फिल्में दिखाई जाती हैं. जिनमें हत्याएं, खून-खराबा साफ नजर आता है. ऐसे में जाहिर है लोग अधिक चिंता करने लगते हैं. फिर चाहे अपराध दर घटी ही क्यों न हो, लोगों की मनोस्थिति तो प्रभावित होती ही है." उन्होंने कहा कि जर्मनी में असुरक्षा की भावना इसलिए पैदा हो रही है क्योंकि यहां काफी विदेशी आ गए हैं. इसलिए लोगों के भीतर से "मेरे गृहक्षेत्र" वाली भावना कम होती जा रही है.

Infografik Zahl der erfassten Straftaten ENG

क्रिश्टियान कहते हैं, "जर्मनी एक प्रक्रिया से गुजर रहा है. यह ठीक वैसा ही महसूस कर रहा है जैसे कि कोई अन्य देश बहुत सारे रिफ्यूजियों या प्रवासियों के आने के बाद करता." उन्होंने कहा कि असुरक्षा की भावना सबसे अधिक बड़े शहरों में हैं. जहां बीते सालों में प्रवासियों की संख्या में जबरदस्त इजाफा हुआ है. लेकिन इसकी वजह अपराध का बढ़ना नहीं बल्कि गृहक्षेत्र या अपनी जमीं जैसी भावना का कम होना है. क्रिश्टियान के मुताबिक गृहक्षेत्र एक ऐसी भावना होती है. जिससे लोग मानसिक रूप से जुड़े से होते हैं.

आप्रवासियों का मुद्दा

हालांकि अब पुलिस आपराधिक मामलों में आप्रवासियों की बजाय विदेशियों पर अधिक ध्यान देती है. अब यहां शरणार्थियों को भी आप्रवासी कहा जाने लगा है. शरणार्थी वे लोग हैं, जिन्हें अभी जर्मनी सिर्फ इसलिए रख रहा है, क्योंकि उन्हें फिलहाल वापस नहीं भेजा जा सकता. वे लोग भी शरणार्थी ही कहलाते हैं जो बिना किसी कानूनी अनुमति के यहां रह रहे हैं या जिन्हें इसलिए सुरक्षा दी गई है क्योंकि उनके अपने देशों में युद्ध चल रहा है. इसके अलावा वे भी शरणार्थी हैं जिन्हें अंतरराष्ट्रीय सहायता कार्यक्रम के तहत रखा यहां गया है. पुलिस रिकॉर्डों के मुताबिक आप्रवासी पृष्ठभूमि के लोग जेब-काटना, बलात्कार, यौन शोषण, चोरी, डकैती जैसे अपराधों में अधिक शामिल होते हैं. क्रिश्टियान कहते हैं कि इसका एक कारण ये भी है कि विदेशियों पर जर्मन लोगों की तुलना में आरोप लगाने के मामले दोगुने होते हैं.

युवाओं पर होता है संदेह

शरणार्थी संकट के पहले भी युवाओं के चलते परेशानियां पैदा होती थी. क्रिश्टियान के मुताबिक, "14-30 साल के जवान लड़कों वाले समूह को साल 2014 में रिफ्यूजी संकट शुरू होने से पहले भी समस्याएं पैदा करने वाले माना जाता था." क्रिश्टियान कहते हैं कि हर चार में से एक शरणार्थी युवा है. उत्तरी अफ्रीका से आने वाले अप्रवासियों में यह आंकड़ा हर दो पर एक है. इन युवाओं के जर्मनी में रहने के आसार बेहद ही कम हैं क्योंकि वह पीछे अपनी पत्नियां और गर्लफ्रेंड छोड़ कर आए हैं. क्रिश्टियान यहां महिलाओं की कमी को बेहद अहम मानते हैं. वह कहते हैं कि महिलाएं कई मुद्दे बातचीत से हल कर लेती हैं. ऐसे में जब वे यहां नहीं हैं तो हो सकता है कि पुरुषों का व्यवहार हाथ से निकल जाए. लेकिन क्रिश्टियान ये भी मानते हैं कि जर्मनी की भी अपनी सीमाएं हैं. सामाजिक लाभ को लेकर भी सरकार एक हद तक ही काम कर सकती है.

कम मदद, अधिक निवेश

लेकिन क्रिश्टियान के लिए जर्मनी के वित्त मंत्री ओलाफ शॉल्त्स की सहायता राशि घटाने वाली योजना को समझना मुश्किल है. लेकिन वह विकास मंत्री गेर्ड म्यूलर की योजना को बेहतर मानते हैं. क्रिश्टियान कहते हैं कि म्यूलर की योजना अच्छी है. हाल में जर्मनी के अखबार आउसबुर्गर आलगेमाइने ने म्यूलर के हवाले से कहा था कि सरकार, इराक, नाइजीरिया, ट्यूनीशिया और अफगानिस्तान जैसे देशों में रोजगार और व्यावसायिक प्रशिक्षण कार्यक्रमों को वित्तीय सहायता देने के लिए करीब 50 करोड़ डॉलर का खर्च करेगी. क्रिश्टियान के मुताबिक इन योजनाओं के चलते रिफ्यूजियों को उनके अपने देशों में नई संभावनाएं दिखेंगी. साथ ही जर्मनी के अपराध आंकड़ों के लिए भी यह अच्छा होगा. 

ऑलिवर पीपर/एए