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असम के जंगलों में गैंडों की बढ़ती तादाद पर सवाल

प्रभाकर मणि तिवारी
२७ मार्च २०१८

पूर्वोत्तर राज्य असम के काजीरंगा नेशनल पार्क में एक सींग वाले गैंडों की गिनती का काम चल रहा है. एक गैर-सरकारी संगठन ने अधिकारियों पर गैंडों की तादाद बढ़ा-चढ़ा कर पेश करने का आरोप लगाया है.

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तस्वीर: picture alliance/dpa/Blickwinkel

सोमवार और मंगलवार को हुई इस दो-दिवसीय कवायद पर विवाद भी पैदा हो गया है. दुनिया में एक सींग वाले गैंडों का यह सबसे बड़ा बसेरा इन जानवरों की बढ़ती तादाद की बजाय उनके अवैध शिकार के बढ़ते मामलों की वजह से सुर्खियों में रहा है. पूरी दुनिया में एक सींग वाले गैंडों की आबादी का दो-तिहाई हिस्सा इसी पार्क में रहता है. सरकार की तमाम कोशिशों के बावजूद इस पार्क में सींग के लिए मारे जाने वाले इन गैंडों की तादाद कम नहीं रही है. इस साल अब तक तीन गैंडों की हत्या हो चुकी है.

गिनती

काजीरंगा नेशनल पार्क में हर तीन साल पर एक सींग वाले गैंडों की गिनती की जाती है. इससे पहले राज्य के पबित्रा वन्यजीव अभयारण्य में इन गैंडों की गिनती की जा चुकी है. वहां 102 गैंडे हैं. वर्ष 2012 से इस अभयारण्य में छह गैंडे शिकारियों के हाथों मारे जा चुके हैं जबकि 20 अन्य की मौत प्राकृतिक वजहों से हुई है. काजीरंगा में इससे पहले वर्ष 2015 में हुई गिनती के दौरान यहां 2,401 गैंडे पाए गए थे. यह तादाद वर्ष 2012 में हुई गिनती के मुकाबले ज्यादा थी.  गैंडों की गिनती के लिए 430 वर्गकिलोमीटर में फैले पार्क को 74 हिस्सों में बांटा गया है. इस कवायद में 40 हाथियों के अलावा 17 वाहनों का भी इस्तेमाल किया गया है. सरकारी और गैर-सरकारी संगठनों के तीन सौ कर्मचारी इस कवायद में जुटे हैं. राज्य की वन व पर्यावरण मंत्री प्रमिला रानी ब्रह्म कहती हैं, "हमें काजीरंगा में गैंडों की आबादी बढ़ने की उम्मीद है." प्रमिला ने विधानसभा के बजट अधिवेशन के दौरान बताया था कि वर्ष 2015 से अब तक काजीरंगा में 74 गैंडे मारे जा चुके हैं. इसके साथ ही 2015-17 के दौरान वन कर्मचारियों ने 316 शिकारियों को गिरफ्तार किया है. इस पार्क में वर्ष 2015 में 21, 2016 में 22 और 2017 में नौ गैंडे मारे गए थे.

काजीरंगा में गैंडों की गिनती

शिकार

राज्य सरकार ने अपने स्तर पर इन गैंडों का शिकार रोकने की दिशा में कई ठोस कदम उठाए हैं. इसके तहत वन विभाग के अधिकारियों को शिकारियों को गोली मारने के भी अधिकार दिए गए हैं. वर्ष 2015 में कई शिकारियों को गोली मार दी गई थी. बावजूद इसके अक्सर यहां गैंडों के शिकार के मामले सुर्खियां बनते हैं. बरसात के सीजन में पार्क के बाढ़ के पानी में डूबने पर शिकार की घटनाएं ज्यादा होती हैं. 

अब सरकार ने मानसून के सीजन में पार्क में अवैध शिकारियों की गतिविधियों पर निगरानी रखने के लिए यहां ड्रोन तैनात करने का फैसला किया है. राज्य के प्रमुख वन्यजीव संरक्षक एनके वासु कहते हैं, "बाढ़ के समय जानवरों की निगरानी के लिए सभी पांच फॉरेस्ट रेंज में ड्रोन तैनात किए जाएंगे." फिलहाल काजीरंगा में विभिन्न इलाके में एक ड्रोन और सात कैमरे लगाए गए हैं. बाढ़ के समय पार्क का ज्यादातर हिस्सा पानी में डूबा होने की वजह से जमीनी रास्ते से जानवरों की निगरानी संभव नहीं हो पाती. पानी से बचने के लिए बाहर निकलने वाले जानवर आसानी से घात लगाए शिकारियों के हत्थे चढ़ जाते हैं. ड्रोन के जरिए हालात पर निगाह रखने में आसानी हो जाएगी.

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शिकारियों के हत्थेतस्वीर: BIJU BORO/AFP/GettyImages

विवाद

लेकिन काजीरंगा में गैंडों की आबादी के आंकड़ों पर भी विवाद पैदा हो गया है. असम के एक गैर-सरकारी संगठन स्वराज असम ने दावा किया है कि विदेशी धन हासिल करने के लिए गिनती के आंकड़ों को बढ़ा-चढ़ा कर पेश किया जाता है. संगठन ने सूचना के अधिकार के तहत मिली जानकारियों के हवाले से गैंडों की गिनती के लिए और पारदर्शी प्रक्रिया अपनाने की मांग की है. स्वराज असम के संयोजक भवेन हैंडिक कहते हैं, "फिलहाल इस बात की पुष्टि का कोई तरीका नहीं है कि एक ही गैंडे की गिनती दो या तीन बार नहीं की गई है." भवेन और वन्यजीव कार्यकर्ता तरुण चंद्र डेका ने बीते सप्ताह पबित्रा वन्यजीव अभयारण्य में गैंडों की आबादी के आंकड़ों पर भी सवाल उठाया है. हैंडिक कहते हैं, "पार्क में पिछली गिनती में 93 गैंडे थे. उनमें से विभिन्न वजहों से 26 की मौत के बाद बीते तीन साल में इस जानवर की तादाद 35 बढ़ गई है." उन्होंने इस आंकड़े की जांच किसी तटस्थ एजेंसी से कराने की मांग की है.

इस संगठन का आरोप है कि इंडियन राइनो विजन 2020 के तहत तीन हजार गैंडों के लक्ष्य तक पहुंचने के लिए ही आबादी के आंकड़ों को बढ़ा-चढ़ा कर पेश किया जा रहा है ताकि अंतरराष्ट्रीय संरक्षण एजेंसियों से अच्छी-खासी रकम मिल सके. हैंडिक ने केंद्र सरकार से जीपीएस या दूसरी तकनीक का इस्तेमाल करते हुए इन आंकड़ों की पुष्टि करने और गिनती की मौजूद प्रक्रिया की जांच की मांग की है. उनकी दलील है कि मौजूदा प्रक्रिया में  किसी गैंडे के एक से दूसरे इलाके में जाने पर उसके दोबारा गिने जाने की संभावना बनी रहती है.

लेकिन वन अधिकारियों ने इन  आरोपों का खंडन किया है. वन मंत्री प्रमिला रानी कहती हैं, "हमने गिनती की कवायद में शामिल कर्मचारियों को इस काम में अधिकतम पारदर्शिता बरतने का निर्देश दिया है."