अलग अलग भाषाओं में रोते हैं बच्चे!
१२ नवम्बर २००९दुनियाभर के देशों में भले ही माता-पिता को बच्चों के रोने की आवाज़ एक जैसी लगती है लेकिन वैज्ञानिकों का मानना है कि शिशु जन्म के पहले दिन से ही अपनी मां की ज़ुबान में रोता हैं. अंतरराष्ट्रीय दल में शामिल शोधकर्ताओं ने 60 शिशुओं पर शोध कर यह पाया कि बच्चे मां के गर्भ में ही मातृभाषा सीखना शुरू कर देते हैं.
मां की नकल
शोध की प्रमुख जर्मनी के वुर्ज़बर्ग विश्वविद्यालय की कैथलीन वेर्मके कहती हैं, "नवजात शिशु अलग-अलग अंदाज़ में रो सकते हैं लेकिन वे उस आवाज़ में रोते हैं जिस आवाज़ को उन्होंने गर्भावस्था में सुना था". 'करंट बॉयोलोजी' में छपे शोध में बताया गया है कि नवजात शिशु मां की नकल करने के लिए उसकी भाषा में रोने की कोशिश करते हैं. मां के गर्भ में ही शिशु पर उसके कानों तक पहुंचने वाली भाषा का असर शुरू हो जाता है. जन्म के बाद शिशु मां का ध्यान खींचने के लिए मां के सुर और आवाज़ की नकल करने की कोशिश करता हैं. नवजात शिशुओं के अलग-अलग ढंग से रोने की आवाज़ को आसानी से भाषा के अंतर से अलग किया जा सकता है. शोधकर्ताओं ने 60 स्वस्थ नवजात शिशुओं पर शोध किया जिसमें आधे शिशु जर्मन बोलने वाले परिवार से थे जबकि आधे शिशु फ़्रेंच बोलने वाले परिवार के थे.
भाषाओं का फेर
शोध के दौरान देखा गया कि इन नवजात शिशुओं में फ़्रेंच बोलने वाली मां के बच्चे तेज़ आवाज़ में रो रहे थे जबकि उनके पास ही बैठी जर्मन मां के शिशु शुरू में धीमी आवाज़ के बाद तेज़ आवाज़ में रो रहे थे. शोधकर्ताओं का तर्क है कि दोनों शिशुओं के रोने के ढंग में दोनों भाषाएं का लहज़ा साफ पता चलता है.
वैज्ञानिकों ने पहले ही साबित किया है कि गर्भावस्था के अंतिम तीन महीनों में शिशु बाहर की आवाज़ों, संगीत या मीठी धुनों को याद रख सकता है. इसके अलावा वोकल इमीटेशन स्टडी में यह भी पाया गया है कि तीन महीने का नवजात शिशु बड़ों से सुनी हुई आवाज़ की नकल कर सकता है.
रिपोर्ट: रॉयटर्स/ सरिता झा
संपादन: आभा मोंढे